Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

श्रीलाल शुक्ल पुण्यतिथि विशेष: हाथ में 'रागदरबारी' और होठों पर मुस्कान

श्रीलाल शुक्ल पुण्यतिथि विशेष: हाथ में 'रागदरबारी' और होठों पर मुस्कान

Saturday October 28, 2017 , 5 min Read

श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपनी मिसाल आप था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। वह अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के ज्ञाता थे।

श्रीलाल शुक्ल (फाइल फोटो)

श्रीलाल शुक्ल (फाइल फोटो)


यह भी कहा जा सकता है कि श्रीलाल शुक्ल ने जड़ों तक जाकर व्यापक रूप से समाज की छान बीन कर, उसकी नब्ज को पकड़ा है। इसीलिए यह ग्रामीण संसार उनके साहित्य में देखने को मिला है।

लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी. एल. जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। वर्ष 2008 में उनको पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। 

समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिए ख्यात उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल की आज (28 अक्तूबर) पुण्यतिथि है। उनका कहना था - 'कथालेखन में मैं जीवन के कुछ मूलभूत नैतिक मूल्यों से प्रतिबद्ध होते हुए भी यथार्थ के प्रति बहुत आकृष्‍ट हूँ पर यथार्थ की यह धारणा इकहरी नहीं है, वह बहुस्तरीय है और उसके सभी स्तर- आध्यात्मिक, आभ्यंतरिक, भौतिक आदि जटिल रूप से अंतर्गुम्फित हैं। उनकी समग्र रूप में पहचान और अनुभूति कहीं-कहीं रचना को जटिल भले ही बनाए, पर उस समग्रता की पकड़ ही रचना को श्रेष्‍ठता देती है। जैसे मनुष्‍य एक साथ कई स्तरों पर जीता है, वैंसे ही इस समग्रता की पहचान रचना को भी बहुस्तरीयता देती है।'

श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपनी मिसाल आप था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। वह अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के ज्ञाता थे। इसके साथ ही वह संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के मर्मज्ञ थे। एक वक्त में वह 'कथाक्रम' समारोह समिति के अध्यक्ष भी रहे। जीवन में उन्होंने गरीबी से भी दो-दो हाथ किया। वह नई पीढ़ी के लिए सबसे अधिक समझने और पढ़े जाने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। अपनी रचनाओं में वह जितने सहज थे, अपने व्यक्तित्व में भी। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे, लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहने से नहीं चूकते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में आइएएस रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली राग दरबारी जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।

वैसे तो उन्होंने दस उपन्यास, चार कहानी संग्रह, नौ व्यंग्य संग्रह, दो विनिबंध, एक आलोचना की पुस्तकें लिखीं लेकिन उन्हें 'रागदरबारी' उनका कालजयी उपन्यास रहा है, जो 1968 में प्रकाशित हुआ था और आज तक उसकी अदभुत पठनीयता के नाते अपार लोकप्रियता बनी हुई है। उनका पहला उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' 1957 में प्रकाशित हुआ। राग दरबारी का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। 'राग विराग' उनका आखिरी उपन्यास माना जाता है। उनकी रचनाओं का एक बड़ा हिस्सा गाँव के जीवन से संबंध रखता है। ग्रामीण जीवन के व्यापक अनुभव और निरंतर परिवर्तित होते परिदृश्‍य को उन्होंने बहुत गहराई से विश्‍लेषित किया है।

यह भी कहा जा सकता है कि श्रीलाल शुक्ल ने जड़ों तक जाकर व्यापक रूप से समाज की छान बीन कर, उसकी नब्ज को पकड़ा है। इसीलिए यह ग्रामीण संसार उनके साहित्य में देखने को मिला है। उनके साहित्य की मूल पृष्‍ठभूमि ग्राम समाज है परंतु नगरीय जीवन की भी सभी छवियाँ उसमें देखने को मिलती हैं। 'रागदरबारी' के शब्दों में पसरा भीना-भीना व्यंग्य इस कृति को बार बार पढ़ते रहने के लिए विवश करता है- 'यही हाल ‘राग दरबारी’ के छंगामल विद्‍यालय इंटरमीडियेट कॉलेज का भी है, जहाँ से इंटरमीडियेट पास करने वाले लड़के सिर्फ इमारत के आधार पर कह सकते हैं, सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देशी परंपरा में पाई है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं, हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है।'

इस ख्यात व्यंग्यकार को वर्ष 1969 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला लेकिन इसके बाद ज्ञानपीठ सम्मान पाने के लिए 42 साल तक उन्हें इंतज़ार करना पड़ा। इस बीच उन्हें बिरला फ़ाउन्डेशन का व्यास सम्मान, यश भारती और पद्म भूषण पुरस्कार भी मिले। लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी. एल. जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। वर्ष 2008 में उनको पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। वह भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की मानद फैलोशिप से भी सम्मानित थे।

श्रीलाल शुक्ल को पढ़ते हुए डॉ. प्रवीण तिवारी लिखते हैं - मेरे पिता जी मुझसे कहा करते थे - जिंदगी में कुछ पढ़ो, न पढ़़ो, लेकिन तीन किताबें जरूर पढ़ना- मक्सिम गोर्की की 'मां', रवींद्रनाथ टैगोर की 'गोरा' और श्रीलाल शुक्ल की 'राग दरबारी'। 'राग दरबारी' को एक बार हाथ में लिया तो फिर छोड़ने का मन नहीं किया। किताबें पूरी पढ़ने का क्या मजा है, इसी किताब ने सिखाया। श्रीलाल शुक्ल ने अपने लेखन को सिर्फ राजनीति पर ही केंद्रित नहीं होने दिया। शिक्षा के क्षेत्र की दुर्दशा पर भी उन्होंने व्यंग्य कसा। 'राग दरबारी' शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्तप विसंगतियों पर आधारित है।

यह भी पढ़ें: ग़ज़ल है हमारी गंगा-जमुनी तहजीब: असगर वजाहत