पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए देवेश्वरी ने छोड़ दी अवर अभियंता की नौकरी
विश्व महिला दिवस पर विशेष...
उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की इंजीनियर बिटिया देवेश्वरी बिष्ट अवर अभियंता की नौकरी छोड़कर अब ट्रैकिंग में अपना भविष्य रच रही हैं। उन्होंने इस उद्यम को इसलिए भी चुना कि उनसे प्रेरित होकर यहां के युवा अपने खूबसूरत पहाड़ों, झरनों, नदियों, फूलों के बाग-बगीचों को ही पेशा बनाएं, न कि यहां से पलायन करें।
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देवेश्वरी बिष्ट (फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया)
बेटियां जब लीक से हटकर खुद की बनाई राह पर चल पड़ती हैं तो उससे अनेकशः और लोगों की भी राह खुद ब खुद आसान हो जाती है। उत्तराखंड में 'ग्रेट हिमालयन जर्नी' नाम से अपनी बेबसाइट और फेसबुक पेज चला रहीं सीमांत जनपद चमोली की इंजीनियर बिटिया देवेश्वरी बिष्ट नौकरी छोड़कर ट्रैकिंग के पेशे में अपना भविष्य स्थापित कर चुकी हैं।
उनकी इस कोशिश से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल रहा है। ट्रैकिंग के साथ ही देवेश्वरी पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत को भी अपने कैमरे में बड़ी खूबसूरती से कैद कर लेती हैं। इसके बाद उन फोटो को देश-दुनिया के पर्यटकों को दिखाकर उन्हें पहाड़ आने के लिए आकर्षित करती हैं। आज वे एक अच्छी फोटोग्राफर के तौर पर भी अपनी पहचान बना चुकी हैं। देवेश्वरी बिष्ट ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है जिस पर देवभूमि को गर्व है।
इस राह पर चलने के लिए उन्होंने अपने पहाड़ी सुख-सौंदर्य से गहरा लगाव महसूस करते हुए इंजीनियर की अच्छी खासी नौकरी को अलविदा कह दिया। अब वह ट्रेकिंग के स्वरोजगार के साथ उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत भी संजो रही हैं। इस राज्य में एक महिला उद्यमी के रूप में वह अपनी तरह की ऐसी पहली पर्यटन पेशेवर हैं।
देवेश्वरी पिछले पांच वर्षों में एक हजार से अधिक लोगों को हिमालय की वादियों में पंचकेदार, पंचबदरी, फूलों की घाटी, हेमकुंड, स्वर्गारोहणी, कुंवारी पास, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा, पिंडारी ग्लेशियर, कागभूषंडी, देवरियाताल आदि से रू-ब-रू करा चुकी हैं। वह अपने हर ट्रैक के दौरान स्थानीय गाइड, पोर्टर के रूप में स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिला रही हैं। देवेश्वरी के पास पहाड़ों, पहाड़ी फूलों, बुग्यालों, नदियों, झरनों, लोक रंजक कार्यक्रमों का अदभुत 10 हजार से अधिक फोटुओं का कलेक्शन है।
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देवेश्वरी बिष्ट के कैमरे का एक खूबसूरत कमाल (फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया)
देवेश्वरी बताती हैं कि उनका अतीत बचपन से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने तक गोपीनाथ की नगरी गोपेश्वर में बीता। इसलिए उनकी भोलेनाथ पर अगाध श्रद्धा है। वह पिछले लगभग एक दशक से प्रतिवर्ष पंचकेदार, केदारनाथ, मद्दमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर दर्शन करने जरूर जाती हैं। उन्हें गोपेश्वर से दिखती नंदा की बर्फीली चोटी बचपन से ही आकर्षित करती रही है।
इस मनोहारी चोटी की एक खास विशेषता है कि ये हर मौसम में अलग-अलग आकृतियों में नजर आती है। इसके साथ ही तुंगनाथ की पहाड़ी और सामने बहती अलकनंदा की मनोरमता भी कुछ कम नहीं होती है। इस तरह देवेश्वरी को बचपन से ही अपनी माटी, थाती, पहाड़ के रीति-रिवाज, परम्पराएं सांस्कृतिक विरासत में मिले हैं।
देवेश्वरी का बचपन एक सामान्य परिवार में बीता है। उनकी दो बहनें और एक भाई है। उन्होंने 12वीं तक गोपेश्वर में ही पढ़ाई करने के बाद इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और 2009 में ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता परियोजना में जल संस्थान, गोपेश्वर में अवर अभियंता बन गईं। उसके कुछ साल बाद वह अवर अभियंता के रूप में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि में नौकरी करती रहीं।
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देवेश्वरी बिष्ट (फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया)
नौकरी के दिनो में उन्हे पहाड़ की डांडी, खेत-खलिहान, पंचकेदार, पंचबदरी और बुग्याल मानो अपने साथ विचरण के लिए बुलाते रहते थे। वह अपने मन को उसी दिशा में ले जाती रहीं, बीच-बीच में ट्रैकिंग भी करती रहीं, और अंततः 2025 में अवर अभियंता पद से इस्तीफा देकर खुद की राह बनाने के लिए पेशेवर तौर पर ट्रेकिंग पर निकल पड़ीं। उसके बाद से आज तक उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
यद्यपि आज भी उनके पास कमोबेश रोजाना ही इंजीनियर की नौकरी के बड़े-बड़े पैकेज ऑफर होते रहते हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने जब अवर अभियंता की सरकारी नौकरी छोड़ी तो सबसे पहले उन्हे आगे की राह तय करने के लिए अपने घर-परिवार से हौसला मिला। अब तो वह बेहद खुशनसीब बेटी हैं।
उन्होंने इस उद्यम को इसलिए भी चुना कि उनसे प्रेरित होकर आज के युवा अपने खूबसूरत पहाड़ों, झरनों, नदियों, फूलों के बाग-बगीचों को ही अपना पेशा बनाएं, न कि यहां से पलायन करें।