मां की बीमारी से लिया सबक, मेडिकल रिकॉर्ड्स ऐप बनाकर लाखों लोगों के लिए इलाज को बनाया आसान
बिहार के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वालीं शिखा सुमन, मेडिमोजो नाम से एक स्टार्टअप चला रही हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2015 में की थी। यह स्टार्टअप, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की तकनीक पर आधारित एक मेडिकल रिकॉर्ड्स प्लेटफ़ॉर्म है, जो मरीजों की सभी जानकारी एक जगह पर सुरक्षित रखता है।
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शिखा सुमन
शिखा ने बताया कि मेडिमोजो का आइडिया उनके जहन में तब आया, जब उनकी मां कोमा में थीं। इस दौरान उनके परिवार को उनकी मां के मेडिकल रिकॉर्ड्स व्यवस्थित रखने में काफ़ी जद्दोजहद का सामना करना पड़ा। इस दौर में ही उन्हें एहसास हुआ कि एक आम आदमी को इस तरह के कामों में कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।
अपनी मुसीबतों को अपनी प्रेरणा का सबब बना लेना। सुनने में यह बात किताबी लगती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो आदर्शों और सिद्धान्तों को अमल में लाने का जज़्बा रखते हैं। आज हम ऐसी ही एक शख़्सियत के बारे में बात करने जा रहे हैं। बिहार के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वालीं शिखा सुमन, मेडिमोजो नाम से एक स्टार्टअप चला रही हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2015 में की थी। यह स्टार्टअप, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की तकनीक पर आधारित एक मेडिकल रिकॉर्ड्स प्लेटफ़ॉर्म है, जो मरीजों की सभी जानकारी एक जगह पर सुरक्षित रखता है। मेडिमोजो बीटूबी स्ट्रैटजी के तहत क्लीनिक्स और हॉस्पिटल्स के साथ मिलकर काम करता है और मरीज़ो की मेडिकल हिस्ट्री की मदद से उन्हें बेहतर से बेहतर इलाज और सुविधाएं मुहैया कराने में मदद करता है।
शिखा ने बताया कि मेडिमोजो का आइडिया उनके जहन में तब आया, जब उनकी मां कोमा में थीं। इस दौरान उनके परिवार को उनकी मां के मेडिकल रिकॉर्ड्स व्यवस्थित रखने में काफ़ी जद्दोजहद का सामना करना पड़ा। इस दौर में ही उन्हें एहसास हुआ कि एक आम आदमी को इस तरह के कामों में कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा और साथ ही, ऐसी वजहों से ही ज्यादातर मरीजों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता। शिखा पहले से ही फ़ार्मा क्षेत्र से जुड़ी रही हैं और उन्हें हेल्थकेयर सेक्टर के तकनीकी पहलुओं की पर्याप्त जानकारी भी थी। इन सभी सकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शिखा ने मेडिमोजो को लॉन्च किया।
जब भी आपके सामने कोई समस्या आती है और आपके अंदर उसे सुलझाने और दूर करने की तीव्र इच्छा होती है, तब आपको भी इस बात का पूरा एहसास होता है कि आप फ़ेल नहीं होने वाले। शिखा अपने परिवार में पहली थीं, जिन्होंने एक इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़ाई की। हायर एजुकेशन के लिए भी शिखा को उनके परिवार से पूरा सहयोग मिला और उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। शिखा ने आईआईटी कानपुर से पीएचडी भी की।
उन्होंने अपने प्रोफ़ेशनल करियर की शुरूआत बतौर फ़्रीलांसर की थी और वह रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर काम करती थीं। शिखा ने फ़ार्मा कंपनियों के लिए सैंपलिंग रिसर्च नाम से एक मार्केट ऐनालिटिक्स और रिसर्च फ़र्म शुरू की। यह उनका पहला स्टार्टअप था। शिखा इस स्टार्टअप से 7 सालों तक जुड़ी रहीं और 2015 में उन्होंने सैंपलिंग रिसर्च से अलग होकर, उसी साल मेडिमोजो की शुरूआत की।
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मेडिमोजो की टीम
मेडिमोजो की सर्विसेज़ के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए शिखा ने बताया, "हम हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स की मदद करते हैं कि वे अपने मरीजों को अधिक से अधिक सुविधाएं दे सकें और इसके माध्यम से मरीज़ों का लैब्स और हॉस्पिटल्स पर भरोसा भी बढ़ता है।" मेडिमोजा का मुख्य केंद्र दिल्ली में है और स्टार्टअप से कुल 6 मुख्य सदस्य जुड़े हुए हैं। कंपनी मुख्य रूप से बीटूबी (बिज़नेस टू बिज़नेस) मॉडल के तहत अपना रेवेन्यू पैदा करती है। कंपनी प्रति मरीज़ के हिसाब से लैब्स और हॉस्पिटल्स से फ़ीस चार्ज करती है। शिखा बताती हैं कि उनके प्लेटफ़ॉर्म पर फ़िलहाल 1.5 मिलियन मरीज़ों के मेडिकल रिकॉर्ड्स दर्ज हैं।
शिखा ने अपने स्टार्टअप के सामने आने वाली चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए बताया कि हेल्थकेयर एक काफ़ी जटिल इंडस्ट्री है और इस वजह से ही एक साल की रिसर्च के बाद उनकी कंपनी प्रोडक्ट्स और सर्विसेज़ के एक निर्धारित मॉडल पर सहमति बना पाई। शिखा ने बताया कि उनके पास फ़ंडिंग का कोई बड़ा सपोर्ट नहीं था और इसलिए ही उन्होंने एक हेल्थ ऐप के साथ शुरूआत की थी और फिर बीटूबी क्लाइंट्स के साथ करार पर ज़ोर दिया। 2016 में द वॉल्ट नाम के एक टीवी शो में शिखा की कंपनी ने शिरकत की। यह शो एक पिचिंग प्रोग्राम था और इसके माध्यम से ही शिखा की कंपनी को हॉस्पिटल्स और क्लीनिक्स तक पहुंच बनाने में आसानी हुई।
शिखा मानती हैं कि सरकार को हेल्थकेयर में अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। उनका कहना है कि हेल्थकेयर स्टार्टअप्स के लिए फ़ंडिंग जुटाना एक बेहद मुश्किल काम है। उनका सुझाव है कि सरकार को स्टार्टअप्स की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में मौक़ों की संभावना को और बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।
भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए शिखा ने जानकारी दी कि फ़िलहाल वह भारत और दुबई की दो हॉस्पिटल चेन्स के साथ करार करने की जुगत में लगी हुई हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी का लक्ष्य है कि 2018 के अंत तक उनकी कंपनी के साथ 12 प्रोवाइडर्स जुड़ जाएं और उनके प्लेटफ़ॉर्म पर करीब 7 मिलियन मरीज़ों के हेल्थ रिकॉर्ड्स मौजूद हों।
शिखा मानती हैं कि भले ही उन्होंने इस स्टार्टअप की शुरूआत निजी मामलों से प्रेरित और प्रभावित होकर की थी, लेकिन उनकी सफलता की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह कभी भी सुपरविमिन बनने की कोशिश नहीं करतीं। शिखा बताती हैं कि वह रोज़ाना एक प्रायॉरिटी लिस्ट तैयार करती हैं और उस हिसाब से ही काम करती हैं। शिखा मशवरा देते हुए कहती हैं कि सफलता और असफलता, दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं और हमें दोनों को एक ही तरीक़े से लेना चाहिए।
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