Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

हर बच्चे के हाथ में हो किताब, 'प्रथम' का यही प्रयास

हर बच्चे के हाथ में हो किताब, 'प्रथम' का यही प्रयास

Monday August 17, 2015 , 4 min Read

सन 2004 में सुजैन सिंह ने रखी 'प्रथम 'की नीव...

सभी भारतीय भाषाओं में बच्चों के लिए हो किताबें ताकि हर बच्चे के हाथ में हो किताब...

11 सालों में 'प्रथम' ने 18 भाषाओं में 14 मिलियन किताबें प्रकाशित कीं...

'प्रथम' ने चलाया ' डोनेट अ बुक ' कैंपेन...


किसी भी देश व समाज की प्रगति के लिए सबसे महत्वपूर्ण हथियार है शिक्षा। जिस देश के बच्चे व युवा शिक्षित हैं उस देश का भविष्य काफी उज्जवल है। यह एक सत्य है। इस सत्य को सभी लोग मानते हैं इसलिए दुनिया की सभी सरकारें व संगठन बच्चों को शिक्षित करने की दिशा में लगे हुए हैं। यह प्रयास विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे हैं। कई सरकारें व एनजीओ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं तो कई सरकारें बच्चों को स्कूल आने पर विभिन्न सुविधाएं प्रदान करती हैं। कई संगठन बच्चों के पास जाकर उन्हें पढ़ा रहे हैं। कई जगह नवीनतम तकनीकों के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इन सभी का मकसद शिक्षा का विस्तार करना है व शिक्षा का स्तर सुधारना है। भारत में भी कई ऐसे संगठन हैं जो सरकार की मदद से व कई खुद अपने प्रयासों से इस काम को अंजाम दे रहे हैं। प्रथम बुक्स एक ऐसा ही संगठन है जो भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में जुटा हुआ है।

सुजैन सिंह

सुजैन सिंह


सन 2004 में सुजैन सिंह ने 'प्रथम' की नीव रखी। सुजैन ने देखा कि बच्चों के पढऩे की सामग्री तो काफी है लेकिन यह सामग्री प्राय: अंग्रेजी व हिंदी भाषा में ही उपलब्ध है। जबकि भारत का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो इन दोनों भाषाओं से थोड़ा दूर है। सुजैन ने सोचा क्यों न वे भारत में बोले जाने वाली विभिन्न भाषाओं में बच्चों के लिए किताबें निकालें ताकि भारत के हर बच्चे के हाथ में किताब हो। इन्होंने अपनी किताबों की कीमतें काफी कम रखीं। पिछले 11 सालों में प्रथम ने 18 भाषाओं में 14 मिलियन किताबें प्रकाशित कीं। जिसमें उन्होंने 6 आदिवासी भाषाओं को भी शामिल किया। गठन के आठ वर्षों तक उन्होंने अपनी किताबों की कीमत नहीं बढ़ाई। उनकी एक औसत किताब 25 रुपए में बाजार में उपलब्ध थी। अब यह 35 रुपए औसत हो गई है। 2008 में यह बच्चों के लिए पुस्तकें प्रकाशित करने वाले ऐसे प्रकाशक बनकर उभरे जिन्हें लाइसेंस प्राप्त था।

image


'प्रथम' बुक्स का मकसद हर बच्चे के हाथ तक किताब पहुंचाना था। इसके लिए इन्होंने बच्चों के भीतर पढऩे की आदत डेवलप करने के कई प्रयास किए। कई कहानी प्रतियोगिताएं आयोजित कराई। स्कूलों के साथ मिलकर कई अन्य प्रकार की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया। इनका कंटेंट इतना बढिय़ा था कि कई एनजीओ व संस्थाएं इनके पास आईं और मुफ्त में किताब देने का आग्रह किया। यह संस्थाएं बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही थीं। लेकिन मुफ्त में किताब दे पाना प्रथम के लिए भी मुमकिन नहीं था। अब इन्होंने सोचा ऐसा क्या उपाय निकाला जाए जिससे अधिक से अधिक बच्चों को हम अपनी पुस्तकें उपलब्ध करा सकें। फिर प्रथम बुक्स ने कई संगठनों के साथ मिलकर एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसका नाम है 'डोनेट अ बुक'। सुजैन बताती हैं कि भारत में तीन सौ मिलियन बच्चे हैं और प्रथम हर साल एक मिलियन किताबें बना रहा है। यह बहुत बड़ा गैप कैसे भरा जाए? यह बड़ी समस्या थी। इस बात पर इन्होंने सोचा कि मात्र बेहतरीन किताबें बनाना ही इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि हमें कुछ और नए कदम उठाने होंगे ताकि बच्चों तक किताबें पहुंचाने का मिशन पूरा हो सके। डोनेट अ बुक कैंपेन इसी कड़ी में एक कदम रहा। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो बच्चों की मदद करना चाहता है वो कुछ पैसे लेकर बच्चों की मदद कर सकता है। इच्छुक लोगों द्वारा दिए गए पैसों से प्रथम अपनी किताबों को उन एनजीओ तक भेजेगा। ताकि वे पुस्तकें बच्चों तक पहुंच सकें।

image


जिस भी एनजीओ के माध्यम से प्रथम पुस्तकें भिजवाता है उसे किताबें देने से पहले उक्त एनजीओ की भी पूरी जानकारी रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि किताबें सही व्यक्तियों द्वारा बच्चों के हाथों तक पहुंचें।

image


'प्रथम' ने अपने लिए कुछ लक्ष्य भी तय किए हैं। जैसे वे चाहते हैं कि बाल दिवस से पहले वे पचास हजार किताबों को इस कैंपेन के तहत बच्चों तक पहुंचा सकें। भारत में कई अच्छे एनजीओ हैं जो सुदूर गांवों में बच्चों को शिक्षित करने के कार्य में लगे हुए हैं। कई ऐसे पुस्तकालय भी हैं जो इन ट्रस्ट व संगठनों द्वारा सुदूर इलाकों में चलाए जा रहे हैं प्रथम उन तक अपनी पुस्तकों को पहुंचाता है।