सरकारी स्कूल में नहीं था टीचर, आईएएस की पत्नी ने उठाया पढ़ाने का जिम्मा
हम समय-समय पर अधिकारियों के अच्छे काम के बारे में आपको बताते रहते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानर से 100 किलोमीटर दूर सुबनसिरी जिला है। यहां एक तरफ बर्फ से ढंके पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां। कुल मिलाकर यह इलाका प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ है। इस इलाके में लगभग 83,000 लोग रहते हैं, जिसमें कई जनजातीय समुदाय भी शामिल हैं। लेकिन यहां के स्कूलों में पर्याप्त अध्यापक न होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है।
2016 में यहां आईएएस नियुक्त हुए दानिश अशरफ की पत्नी रूही ने स्कूल में अध्यापक की कमी को पूरा करने के लिए खुद बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया। 28 वर्षीय रूही बताती हैं कि यहां पर तीन स्कूल हैं, लेकिन हर स्कूल में स्टाफ की कमी है। इससे बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। बच्चों की पढ़ाई न प्रभावित हो इसलिए उन्होंने स्कूल में पढ़ाने का फैसला किया।
जिला मुख्यालय के पास दपोरिजो में सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में 12वीं के बच्चों को पढ़ाने के लिए पिछले पांच सालों से कोई फिजिक्स टीचर नहीं था। रूही ने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री पूरी ककी है। उन्होंने इस स्कूल के बच्चों को मुफ्त में फिजिक्स पढ़ाने का फैसला किया उनकी मेहनत रंग लाई और इस साल मार्च 2019 में जब रिजल्ट घोशित हुए तो 80 फीसदी से अधिक छात्र फिजिक्स में अच्छे नंबर्स से पास हुए। इससे पहले सिर्फ 20 फीसदी छात्र ही इस विषय में पास हो पाते थे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऊपरी सुबनसिरी इलाके में साक्षरता दर केवल 64 प्रतिशत है। इसके लिए स्कूलों में संसाधनों की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। स्कूलों में पर्याप्त अध्यापक न होने की वजह से साक्षरता का स्तर अच्छा नहीं है। रूही कहती हैं, 'मैं शुरू में थोड़ी नर्वस थी क्योंकि मैंने कभी बच्चों को पढ़ाया नहीं था। इसके अलावा मुझे सबके सामने स्टेज पर जाकर बोलने से घबराहट होती थी। मेरे लिए आसान नहीं थास लेकिन मैंने अपने सारे डरों को पीछे छोड़ते हुए बच्चों को पढ़ाने का फैसला कर लिया।'
रूही ने सबसे पहले बच्चों को एनसीआरईटी की किताबों से बुनियादी सिद्धांतों की जानकारी दी। बच्चों को प्रकाशिकी, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण और विकिरण जैसी अवधारणाओं से परिचित कराया गया। क्लास में कुल 94 स्टूडेंट्स थे। रूही को लगता था कि सारे बच्चे फिजिक्स के बुनियादी ज्ञान से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं थे।
वे बताती हैं, 'चूंकि छात्रों के पास लंबे समय से फिजिक्स के टीचर नहीं थे इसलिए उन्हें पढ़ने के लिए खुद पर निर्भर रहना पड़ता था। इन सब वजहों से उनकी अकादमिक प्रगति धीमी हुई और इसकी भरपाई करने के लिए मैंने एक्स्ट्रा क्लासेस लेनी शुरू कर दीं। मुझे ये जानकर खुशी होती थी कि बच्चे नई चीजों को सीखने के लिए काफी उत्सुक थे।' रूही ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बच्चों को नए तरीके से पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने प्रोजेक्टर और कंप्यूटर के जरिए बच्चों को शिक्षा दी।
गुरुत्वाकर्षण और गति जैसे विषय को समझाने के लिए रूही ने सुपरहीरोज की फिल्मों का सहारा लिया। हालांकि यह आसान नहीं था क्योंकि इंटरनेट केनक्टिविटी काफी खराब थी। इसलिए जब रूही बाहर होती थीं तो अच्छा इंटरनेट मिलने पर वे वीडियो डाउनलोड कर लेती थीं और फिर बच्चों को दिखाती थीं। उन्होंने बच्चों को पढ़ाई में लगाने के लिए उन्हें कई मॉड्यूल दिए और लगातार टेस्ट भी लेती रहीं।
रूही ने जब पढ़ाने की शुरुआत की थी तो शैक्षणिक सत्र शुरू हुए आधा साल बीत चुका था। परीक्षाएं करीब थीं इसलिए उन्होंने खुद से बच्चों के लिए नोट्स बनाने शुरू किए ताकि सही समय पर पूरे पाठ्यक्रम को समाप्त किया जा सके। रूही के पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था कि सारे बच्चे आसानी से उनसे जुड़ गए और वह बच्चों की सबसे पसंदीदा टीचर हो गईं।
गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल दोपोरीजो के 12वीं में पढ़ने वाले कीबी दुगी कहते हैं, 'रूही मैम ने पूरी सिलेबस खत्म करने के लिए काफी मेहनत की। वो इतने अच्छे से पढ़ाती थीं कि मुझे सबकुछ बड़ी आसानी से समझ में आ जाता था। बोर्ड परीक्षा से कुछ दिन पहले उन्होंने हमें कुछ नोट्स दिए थे जो काफी मददगार साबित हो गए उनकी वजह से मैं और मेरे जैसे कई बच्चे अच्छे नंबरों से पास हुए।'
रूही का कहना है कि सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक अनुप्रयोग के साथ संयोजित करने की वजह से छात्रों ने भी इस विषय में गहरी दिलचस्पी ली। योरस्टोरी से बात करते हुए वे कहती हैं, 'जनवरी में मैंने बच्चों को इलेक्ट्रोस्कोप की कार्यप्रणाली को समझाया था। अगले दिन एक छात्र कक्षा में इलेक्ट्रोस्कोप लेकर आया। उसने प्लास्टिक की बोतल और एल्युमिनियम की पन्नी से इसे तैयार किया था।' रूही कहती हैं कि उनकी वजह से किसी के जीवन में बदलाव आया इससे बढ़कर कोई खुशी नहीं हो सकती।
शुरुआत कैसे हुई
रुही के पति दानिश अशरफ ने 2016 में ऊपरी सुबनसिरी जिले के उपायुक्त के रूप में पदभार संभाला था। कुछ दिन बाद ही उनके पास कुछ छात्र आए और अपने स्कूल में फिजिक्स टीचर नियुक्त करने की बात करने लगे। दानिश बताते हैं, ' जब सरकारी स्कूल के छात्रों ने मुझसे मुलाकात की और बताया कि उनके स्कूल में फिजिक्स पढ़ाने के लिए कोई टीचर ही नहीं है तो मैं दंग रह गया। सबसे पहले मुझे रूही का ख्याल आया। मुझे लगा कि रूही से एक बार पूछना चाहिए कि क्या वह इन बच्चों को पढ़ा सकती है। मुझे पता था कि यहां पढ़ाने के लिए किसी अध्यापक को खोजना काफी मुश्किल काम होगा।' जब रूही बच्चों को पढ़ाने के लिए राजी हो गईं तो उन्हें काफी खुशी हुई। दानिश कहते हैं, 'मुझे अपनी पत्नी पर काफी गर्व है जो बच्चों का भविष्य संवार रही है।'
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