सतह से उठीं एसडीएम रोशनी यादव कहती हैं कि हक न मिले तो छीन लें बेटियां
आजमगढ़ (उ.प्र.) के एक के छोटे से गांव में जन्मीं सीतापुर की एसडीएम रोशनी यादव कहती हैं, उनके सपनों को पंख मेहनत और हौसलों से मिले। वह राजनेता बनना चाहती थीं, इसीलिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव लड़ीं पर राह प्रशासन की ओर मुड़ चली। वह कहती हैं, बेटियों को हक न मिले तो उसे छीन कर आगे बढ़ें।
'मिलता जरूर है, चाहे जहां-कहीं मिलता, हौसला हो तो क्या नहीं मिलता', अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी एवं इन दिनों सीतापुर (उ.प्र.) में डिप्टी कलेक्टर, फूलपुर (आज़मगढ़) की रहने वाली रोशनी यादव की कामयाबियों पर यही बात तो चरितार्थ होती है, मौजू लगती है।
कुछ साल पहले जब वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही थीं, छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से भी पीछे नहीं हटीं। बीए की पढ़ाई के बाद उन्होंने बीटीसी किया।
सिद्धार्थनगर (उ.प्र.) की बासी तहसील स्थित जाजर मठिया प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक की नौकरी करने लगीं। साथ ही, पहले ही अटैम्प्ट में पीसीएस-2016 की मेरिट में उन्होंने 27वीं रैंक भी हासिल कर ली और उनको पहली तैनाती मिली सीतापुर में। उनके पिता अरविंद सिंह यादव व्यवसायी और मां पुष्पा देवी गृहिणी हैं।
वह कहती हैं,
‘‘बेटियों को अगर हक नहीं मिलता है तो उसे छीन कर आगे बढ़ें।’’
इस समय प्रशिक्षु पीसीएस रोशनी यादव अपने काम के साथ आईएएस एग्जाम की तैयारी भी कर रही हैं। उनका सपना है कि आईएएस बनकर समाज के निचले तबके तक न्याय पहुंचाएं। कलेक्ट्रेट में जन सुनवाई के दौरान वह महिलाओं और दिव्यांगों की समस्याओं को प्राथमिकता से सुनतीं और निस्तारित करती हैं।
शिक्षिका से एसडीएम बनीं रोशनी यादव अपनी ही तरह कामयाब होने के लिए बेटियों को आगे बढ़ने का प्रोत्साहन भी देती रहती हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी एक किताब में बेसिक एजुकेशन के बारे में बताते हैं कि
‘‘प्राइमरी शिक्षा से ही हम अच्छे राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’
रोशनी यादव उसी पायदान से होती हुई आज कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंची हैं। रोशनी यादव कहती भी हैं कि एक प्रशासनिक पद पर रहते हुए हमेशा उनकी कोशिश रहेगी कि बेटियां अपने आप को किसी से कम न समझें, अपने हक के लिए लड़ें।
रोशनी कहती हैं,
‘‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति करते समय वह तो सियासत का सफर करना चाहती थीं, विरोध प्रदर्शनों में उन पर लाठियां भी पड़ीं लेकिन राह इस ओर मुड़ आई। अपनी जिंदगी में उन्होंने शुरू से ही कभी मेहनत से हार नहीं मानी, टीचर की जॉब करते हुए भी अपने सपनों को नया आयाम देने में जुटी रहीं।’’
वे बताती हैं कि वे समय के साथ बदल तो गईं, लेकिन उनके सपने आज भी उनको कोई और बड़ी ऊंचाई हासिल करने के लिए आकर्षित करते हैं।
उनका मानना है कि बड़े प्रशासनिक पद पर रहते हुए समाज के निचले तबके के लोगों की सेवा करना, बेटियों, महिलाओं का हौसला आफजाई करना आसान हो जाता है। उनका जन्म भले ही आजमगढ़ के एक छोटे से गांव में, निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ, लेकिन उनके सपनों को पंख तो उनकी मेहनत और हौसलों से ही लगे।