Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

दो साल के बच्चे को संभालते हुए की तैयारी, यूपीएससी में मारी बाजी

बुशरा बानो के लिए आईएएस बनना कोई आसान काम नहीं था। कभी एनसीएल बीना परियोजना की नौकरी तो कभी विदेश में अध्यापन, साथ में घर-परिवार, बच्चों को संभालते हुए यूपीएससी परीक्षा की तैयारी, फिर भी यूपीएससी परीक्षा में उन्हे 277वीं रैंक मिली। अब उनका लक्ष्य एजुकेशन सेक्टर में कुछ बड़ा कर दिखाने का है।

दो साल के बच्चे को संभालते हुए की तैयारी, यूपीएससी में मारी बाजी

Tuesday May 28, 2019 , 4 min Read

बुशरा बानो

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की रेजिडेंशियल कोचिंग अकादमी की छात्रा रहीं बुशरा बानो के आईएएस बनने में सोशल मीडिया का सबसे प्रमुख रोल रहा है। बुशरा बानो मूलतः कन्नौज (उ.प्र.) की हैं, जिन्हे यूपीएससी-2018 की परीक्षा में 277 रैंक मिली है। कन्नौज (उ.प्र.) के सौरिख कस्बे के मोहल्ला सुभाषनगर में अपने पिता मोहम्मद अरशद हुसैन और मां शमा बानो के साथ रहकर वहां के नेहरू नर्सरी स्कूल में पांचवीं क्लास तक पढ़ाई कर चुकीं बुशरा बानो को विद्यालय के शिक्षकों ने आईएएस बनने पर पिछले दिनो सम्मानित किया।


उनकी एक बहन अजरा बानो और भाई अकबर हुसैन हैं। बुशरा ने जूनियर हाईस्कूल की पढ़ाई सौरिख (कन्नौज) के ही सरस्वती मांटेसरी स्कूल से और हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की पढ़ाई कस्बे के ऋषि भूमि इंटर कालेज से पूरी की। वह देवांशु समाज कल्याण महाविद्यालय से बीएससी करने के बाद एचआर फाइनेंस सहारा एंड मैनेजमेंट एकेडमी लखनऊ से एमबीए करने चली गईं। आगे की पढ़ाई अलीगढ़ में हुई। सौरिख क्षेत्र की वह पहली ऐसी महिला हैं, जो आईएएस बन गई हैं।


बुशरा बानो की सफलता ने साबित कर दिया है कि अपने श्रम और विवेक से कोई महिला अपनी जिंदगी में कुछ भी हासिल कर सकती है। एक वर्ष पहले बुशरा एनसीएल बीना परियोजना, सोनभद्र (उ.प्र.) में मैनेजमेंट ट्रेनिंग एचआर के पद पर कार्यरत थीं। तभी से वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारियों में भी जुटी हुई थीं। बुशरा बताती हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीएचडी के दौरान ही उनकी शादी मेरठ के असमर हुसैन से हो गई, जो उन दिनो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से ही इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर सऊदी अरब के एक विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे थे।


असमर मूलतः मेरठ के रहने वाले हैं। उनसे शादी के बाद वर्ष 2014 में बुशरा भी सऊदी अरब जाकर असिस्टेंट प्रोफेसर बन गईं। उसके बाद उनका जीवन तो अच्छे से बीतने लगा, दोनों लोग वहां अच्छी तरह से सेट हो चुके थे लेकिन एक बात उनके दिल-दिमाग को हमेशा आगाह करती रही कि उन्हें अपने वतन में ही कुछ बड़ा कर दिखाना चाहिए क्योंकि वे दोनो अपनी योग्यता का दूसरे मुल्क के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसका कोई फायदा उन्हे न तो आगे चलकर होने वाला है, न ही हमारे देश और सोसाइटी को। जब अपनी यह मंशा उन्होंने शौहर असमर हुसैन से साझा कि तो वह भी उनकी बात पर राजी हो गए। उसके बाद वह पति के साथ 2016 में सऊदी अरब से अलीगढ़ लौटकर यूपीएससी की तैयारियों में जुट गईं।


बुशरा बताती हैं कि घर का सारा काम-काज, परिवार और बच्चों की देखभाल के बीच रोजाना दस-पंद्रह घंटे यूपीएससी परीक्षा की पढ़ाई करना उनके लिए कत्तई बेहद चुनौतीपूर्ण था। कोचिंग लेने का भी समय निकालना संभव न था। लोगों तो कहते हैं कि ऐसे एग्जाम की तैयारी करते समय सोशल मीडिया से दूर रहना चाहिए लेकिन उन्होंने उसे ही अपनी तैयारी का मुख्य माध्यम बना लिया। सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री के भरोसे ही वह परीक्षा की तैयारी करती रहीं लेकिन 2017 के यूपीएससी के रिजल्ट में वह असफल रहीं लेकिन वह हिम्मत नहीं हारीं। बाद में उन्हे ज़कात फाउंडेशन से मदद भी मिली।


एक बार फिर पहले से ज्यादा मेहनत के साथ वह दोबारा तैयारी में जुट गईं और 2018 का रिजल्ट उनके लिए खुशियों का तोहफा लेकर आया। वह कामयाबी की मिसाल बनती हुईं आईएएस चुन ली गईं। बुशरा कहती हैं कि दो साल के बेटे के साथ रहकर तैयारी करना बड़ा ही मुश्किल था, लेकिन बेटे ने उन्हे कभी उस तरह से तंग नहीं किया, जैसे आम बच्चे करते हैं। वह जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उनकी बात आसानी से मानने लगा था। अब तो उनका और उनके शौहर का एक ही लक्ष्य है कि वे दोनो अपने देश में एजुकेशन सेक्टर के लिए कोई बड़ा काम करें। उनकी प्रशासनिक योग्यता उनका यह सपना भी साकार होने में जरूर मददगार हो सकती है।


यह भी पढ़ें: पहली बार वोट देने वाले युवाओं को 'अपनी सरकार' से हैं क्या उम्मीदें