लोग दफ्तर देर से पहुँच सकते हैं, लेकिन उनका खाना लेकर डब्बावाला हमेशा समय पर पहुंचता है, जानिए इस बेहद खास प्रबंधन के बारे में
भीषण बारिश हो या मुंबई लोकल लेट हो, मुंबई के लोग अपने ऑफिस देर से पहुँच सकते हैं, लेकिन उनका खाना उन तक पहुंचाने वाले डब्बावाला से कभी देर नहीं होती। अपने अनुशासन और प्रबंधन के लिए के लिए डब्बावाला देश के साथ ही विदेशों में भी मशहूर हैं।
मुंबई में दफ्तरों में बैठे लोग हर रोज़ अपने घर का बना खाना खा पा रहे हैं और ऐसा संभव हो रहा है डब्बावाला की वजह से। किसी भी कठिन हालात में भी मुंबई के डब्बावाला दफ्तरों में बैठे इन लोगों तक खाना पहुंचाने में देरी नहीं होने देते हैं।
डब्बावाला अपनी इस सेवा के लिए एक मामूली सी राशि चार्ज करते हैं, जिसके चलते इनकी सेवाएँ काफी किफ़ायती हैं और बड़ी संख्या में मुंबई के ऑफिसों में काम कर रहे लोग अपने दोपहर के खाने के लिए इन पर ही निर्भर रहते हैं। डब्बावाला आप तक आपका ही टिफिन समय से पहुंचाएगा, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनकी सेवा में भूल होने की संभावना 1 करोड़ 60 लाख में से महज एक बार है।
कैसे हुई शुरुआत?
डब्बावाला की शुरुआत हुई 1890 में, जब महादेव हाव्जी बच्चे ने मुंबई में इस सेवा को शुरू किया। बताया जाता है कि तब अंग्रेजी और पारसी समुदाय को इस सेवा की जरूरत पड़ी थी। शुरुआती दौर में महज ही करीब सौ लोगों तक खाना पहुंचाने का काम करते थे।
साल 1930 में यह समूह अनौपचारिक रूप से एक संगठन के रूप में सामने आया, हालांकि साल 1956 में इसे ‘नूतन मुंबई टिफ़िन बॉक्स सप्लायर्स ट्रस्ट’ के तहत रजिस्टर कराया गया। इस ट्रस्ट की व्यावसायिक शाखा को साल 1968 में ‘मुंबई टिफ़िन बॉक्स सप्लायर्स एसोसिएशन’ के रूप में पंजीकृत कराया गया।
क्या है इनका काम?
मुंबई के डब्बावाला लोगों के घर का बना खाना उनके घर तक पहुंचाने का काम कर रह हैं। डब्बावाला पहले लोगों के घर से जाकर टिफिन बॉक्स इकट्ठा करते हैं, फिर उसे सही दफ्तर तक पहुंचाने का कम करते हैं। खास बात ये हैं कि इन खाली टिफ़िन को यही डब्बावाला आपके घर तक वापस लाने का काम करते हैं, इस तरह से ये लोगों के लिए एक दिन में दो डिलिवरी करते हैं।
कैसे पहुंचता है खाना?
इस काम में जुड़े बहुत से लोग पढ़-लिख नहीं सकते हैं, बावजूद इसके खाना पहुंचाने में इनसे कभी कोई भूल नहीं होती है। डब्बावाला टिफ़िन बॉक्स में एक खास तरह का कोड अंकित करते हैं, जिसके चलते डब्बा हर बार अपने सही गंतव्य तक पहुँच जाता है।
डब्बावाला अपने काम में समय को लेकर बेहद अनुशासित हैं, ऐसे में इनके ग्राहकों को कभी खाने के लिए इंतज़ार नहीं करना होता है। ये खाने को हमेशा समय से पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं, अपनी इस सेवा के लिए डब्बावाला 800 रुपये से एक हज़ार रुपये के बीच चार्ज करते है।
काफी बड़ा है दायरा
1890 में शुरू हुए इस काम में तब जहां महज 2 लोग थे, आज इस काम में करीब 5 हज़ार सक्रिय डब्बावाला जुड़े हुए हैं, जो मुंबई के तमाम अलग-अलग हिस्सों से 2 लाख लोगों तक उनके खाने का डब्बा समय से पहुंचा रहे हैं।
लोगों तक डब्बा पहुंचाने के काम में जुटे लोगों में 75 साल उम्र के बुजुर्ग तक शामिल हैं, जो पूरी लगन और मेहनत के साथ अपने काम को कर रहे हैं।
कितना है वेतन?
योरस्टोरी से बात करते हुए डब्बावाला संगठन के प्रेसिडेंट उल्लास शांताराम मुके ने बताया है कि अथक प्रयास और लगातार मेहनत करने वाले इन डब्बावाला को 13 से 15 हज़ार रुपये के करीब वेतन मिलता है। ये डब्बावाले 3 घंटे के भीतर लोगों के घर से उनका खाना उनके दफ्तर तक पहुंचाने का काम करते हैं, ऐसे में ये अपने काम को पूरा करने के लिए साइकिल और मुंबई की लोकल ट्रेन का सहारा लेते हैं।
गौरतलब है कि इन डब्बावाला को साल में एक महीने का वेतन बोनस के तौर पर मिलता है, हालांकि नियमों को तोड़ने पर उन पर जुर्माना भी लगाया जाता है।
नियम तोड़ने की नहीं है गुंजाइश
ग्राहकों तक डब्बा पहुंचाने वाले लोगों को कुछ नियमों का पालन करना होता है, लेकिन इन नियमों को तोड़ने पर उन्हे भारी जुर्माने का सामना भी करना पड़ता है।
नियमों के अनुसार, इन डब्बावाला को काम के दौरान सफ़ेद टोपी पहननी होगी, इसके साथ ही कोई भी डब्बावाला काम के समय नशा नहीं करेगा। डब्बावाला बिना किसी पूर्व सूचना के छुट्टी नहीं ले सकते हैं, जबकि काम के दौरान उनके पास उनका आईकार्ड होना बेहद जरूरी है।
इन सभी नियमों का सख्ती पालन किया जाना इन डब्बावाला के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि इन नियमों को तोड़ने पर उन्हे एक हज़ार रुपये का फ़ाइन देना होता है।
सिर्फ एक बार टूटा है यह सिलसिला
डिब्बावाला ने कभी लोगों तक उनके टिफ़िन पहुंचाने में गलती नहीं की है, लेकिन साल 2011 में एक बार ऐसा हुआ था जब डब्बावाला ने अपनी सेवाओं को रोक दिया था, तब डब्बावाला ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे समाजसेवी अन्ना हज़ारे के समर्थन में अपनी सेवाओं को रोक दिया था। डब्बावाला ट्रस्ट के अनुसार ऐसा करके उन्होने अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने का प्रयास किया।
प्रिंस चार्ल्स कर चुके हैं तारीफ
साल 2003 में जब प्रिंस चार्ल्स लंदन से मुंबई आए थे, तब उन्होने मुंबई के इन डब्बावाला से मुलाक़ात कर काम के प्रति उनकी निष्ठा को लेकर उनकी तारीफ की थी। प्रिंस चार्ल्स ने डब्बावाला को अपनी शादी का निमंत्रण भी दिया था, जिसमें शामिल होने के लिए डब्बावाला के कुछ सदस्य लंदन गए थे।
डीएनए से बात करते हुए डब्बावाला के प्रवक्ता ने बताया था कि जब वे इस शादी में शामिल होने लंदन गए थे, तब राजशाही परिवार ने बड़े आदर के साथ उनका सत्कार किया था। गौरतलब है कि कुछ साल पहले जब प्रिंस हैरी और मेघन मोर्केल की शादी हुई थी, तब मुंबई के डब्बावाला ने उनके लिए परंपरागत साड़ी और कुर्ता उपहार के तौर पर भेजा था।
हुई है रिसर्च, बनी हैं कई डॉकयुमेंट्री
मुंबई के डब्बावाला जिस तरह से इतने बड़े काम को समय के भीतर पूरा करते हैं, इनके इस मैनेजमेंट की दुनिया दीवानी है। डब्बावाला के काम करने के तरीकों पर कई रिसर्च हुई हैं।
साल 2001 में पवन अग्रवाल ने इनके काम करने के तरीके के ऊपर पीएचडी की थी, वहीं साल 2005 में आईआईएम अहमदाबाद ने डब्बावाला के प्रबंधन को लेकर एक केस स्टडी जारी की थी।
साल 2010 में हावर्ड बिजनेस स्कूल ने भी डब्बावाला के काम करने के तरीके के ऊपर एक केस स्टडी ‘द डब्बावाला सिस्टम: ऑन टाइम डिलिवरी, एव्री टाइम’ जारी की थी। इसी के साथ डब्बावाला पर डॉकयुमेंट्री भी बनी हैं, साल 2013 में आई बॉलीवुड फिल्म 'द लंचबॉक्स' डब्बावाला की सेवाओं से ही प्रेरित थी।
आगे बढ़ रहा है कारोबार
डब्बावाला आज मुंबई के लोगों के बेहद खास बन चुके हैं। इन सालों में डब्बावाला का दायरा और उनका काम लगातार बढ़ता रहा है। साल 2007 में आई ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार तब डब्बावाला के काम का दायरा हर साल 5 से 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था।
डब्बावाला के प्रेसिडेंट उल्लास शांताराम मुके ने योरस्टोरी से बात करते हुए बताया कि,
"हम जोमैटो और स्वीग्गी जैसी कंपनियों से बात कर रहे हैं। हमसे जुड़ने के बाद ये कंपनियाँ अधिक दूरी तक अपने खाने को डिलीवर कर पाएँगी। "