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NIT राउरकेला ने ईजाद की नई कैथोड टेक्नोलॉजी; ईवी और रिन्युएबल एनर्जी में भारत को बढ़त मिलेगी

कोबाल्ट लिथियम-आयन बैटरियों का एक प्रमुख घटक है, परंतु यह महंगा है और इसकी उपलब्धत कम होने के साथ-साथ इसको लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी हैं. यह इनोवेशन इस तरह की तमाम चुनौतियों को दूर कर सकता है.

NIT राउरकेला ने ईजाद की नई कैथोड टेक्नोलॉजी; ईवी और रिन्युएबल एनर्जी में भारत को बढ़त मिलेगी

Monday January 20, 2025 , 5 min Read

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (NIT राउरकेला) के शोधकर्ताओं ने लिथियम-आयन बैटरी के लिए कैथोड मटीरियल्स की एक नई श्रेणी विकसित की है, जिससे इस बात की उम्मीद है कि कोबाल्ट-आधारित डिज़ाइनों का एक बेहतर विकल्प मिलने वाला है. कोबाल्ट लिथियम-आयन बैटरियों का एक प्रमुख घटक है, परंतु यह महंगा है और इसकी उपलब्धत कम होने के साथ-साथ इसको लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी हैं. यह इनोवेशन इस तरह की तमाम चुनौतियों को दूर कर सकता है.

सेरेमिक इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पार्थ साहा के मार्गदर्शन में कार्यरत इस रिसर्च टीम में प्रोफेसर संजय दत्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. सौम्यश्री जेना, रिसर्च ग्रेजुएट और अभिषेक कुमार, रिसर्च स्कॉलर शामिल हैं. इस टीम ने मैग्नीशियम और निकेल का उपयोग कर कोबाल्ट-फ्री कैथोड मटीरियल तैयार किया है. यह लिथियम-आयन मूवमेंट बढ़ाने में सक्षम है जिससे कई लाभ मिलने वाले हैं जैसे बैटरी का परफॉर्मेंस बेहतर होना, अधिक स्थिरता, रिटेंशन की अधिक क्षमता और लंबे समय तक एनर्जी स्टोरेज.

लिथियम-आयन बैटरियां स्मार्टफोन, लैपटॉप जैसे डिवाइस और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का पावरहाउस है और इसका बुनियादी मटीरियल कोबाल्ट-आधारित कैथोड है. लेकिन कोबाल्ट इस्तेमाल करने की अपनी चुनौतियाँ हैं जैसे इसका महंगा होना, और कीमत अस्थिर होना; और क्यूबा, मेडागास्कर और पापुआ न्यू गिनी जैसे गिनती के देशों में और वह भी कम मात्रा में उपलब्ध होना. इसके उत्खनन से जुड़े पर्यावरण संबंधी और नैतिक मुद्दे भी हैं. चूंकि ईवी और लिथियम-आयन बैटरियों की मांग लगातार बढ़ रही है इसलिए ये मुद्दे भी गंभीर होते जा रहे हैं. कोबाल्ट की वैश्विक आपूर्ति को लेकर यह अनुमान है कि 2050 तक इसकी बढ़ती मांग पूरी नहीं होगी. ऐसे में कोबाल्ट के विकल्प के तौर पर अन्य मटीरियल्स का विकास करना समय की मांग है.

रिसर्च टीम ने मैग्नीशियम-आधारित कैथोड मटीरियल का विकास कर कोबाल्ट का सस्टेनेबल और सस्ता विकल्प दिया है. इसके लिए पेटेंट मिलना यह दर्शाता है कि मैग्नीशियम कैथोड स्ट्रक्चर में बखूबी कोबाल्ट की जगह ले सकता है और इससे परफॉर्मेंस में भी कोई कमी नहीं आएगी.

मैग्नीशियम के कई लाभ हैं जैसे यह सस्ता है, भारत में प्रचुर मात्रा में और व्यापक रूप से उपलब्ध है. तमिलनाडु, उत्तराखंड और कर्नाटक में इसके बड़े भंडार हैं. इसके अतिरिक्त मैग्नीशियम पर्यावरण के दृष्टिकोण से सुरक्षित है. बैटरी के उत्पादन से इकोलॉजी पर पड़ने वाला प्रभाव भी इससे कम होगा.

रिसर्च टीम द्वारा विकसित कोबाल्ट-फ्री कैथोड के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं. मैग्नीशियम आयन से संरचनात्मक स्थिरता बढ़ेगी. इससे अक्सर कोबाल्ट-आधारित कैथोड को डिग्रेड करने वाली आयन मिक्सिंग जैसी समस्याओं का सफल समाधान होगा. इसके परिणामस्वरूप परफॉर्मेंस बेहतर होगा. नए कैथोड 100 चार्ज-डिस्चार्ज साइकल के बाद भी अपनी मूल क्षमता का 74.3 प्रतिशत रिटेन करने में सक्षम होंगे. यह आम डिजाइनों की तुलना में बड़ी उपलब्धि है. मैग्नीशियम के उपयोग का एक बड़ा लाभ उत्पादन की लागत कम होना है, जिससे लिथियम-आयन बैटरी अधिक सस्ती और सुलभ होगी.

डॉ. पार्थ साहा ने इस शोध के बारे में बताया, “हमारे शोध से यह सामने आया है कि नया कैथोड 100 चार्ज-डिस्चार्ज साइकल के बाद भी अपनी मूल क्षमता का 74.3 प्रतिशत रिटेन करने में सक्षम है. मौजूदा कोबाल्ट-आधारित कैथोड की यह क्षमता तेजी से कम हो जाती है, जबकि हमारे शोध के परिणामस्वरूप यह क्षमता बहुत बढ़ेगी. इसके अतिरिक्त, नया कैथोड निकेल को लिथियम के परमाणु स्थलों पर जाने से रोकता है जिससे कैटनियोनिक डिजार्डर (विकार) कम होते हैं जो एनएमसी (लिथियम निकेल मैंगनीज कोबाल्ट ऑक्साइड)-आधारित कैथोड की एक आम समस्या है और जिसकी वजह से बैटरी की क्षमता और वोल्टेज कम होने लगती है.”

इस इनोवेशन के कई दूरगामी लाभ और महत्वपूर्ण उपयोग होंगे. इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए कम लागत पर बेहतर परफॉर्मेंस वाली बैटरी बनाने का रास्ता मिलेगा, तो हमारे देश का ईवी उद्योग फूलेगा-फलेगा. साथ ही, रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में भारत के लक्ष्य पूरे करने में आसानी होगी. सस्ते एनर्जी स्टोरेज मिलने से सस्टेनेबल विकास को बल मिलेगा. रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में भारत के लक्ष्यों को पूरा करना आसान होगा. इस इनोवेशन के परिणामस्वरूप जरूरी सामग्रियों के लिए आयात पर निर्भरता कम होगी तो बैटरी उत्पादन में भारत अधिक आत्मनिर्भर होगा. दुनिया के एनर्जी मार्केट में देश का दबदबा होगा.

इस शोध का वित्तीयन (फंडिंग) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनोमिशन प्रोग्राम के तहत किया गया और यह रिसर्च एनआईटी राउरकेला के भौतिकी और खगोल विज्ञान विभाग के सहयोग से किया गया.

एनआईटी राउरकेला ने कोबाल्ट-फ्री कैथोड विकसित करने का यह अग्रणी कार्य करते हुए सस्टेनबल, सस्ती और अधिक सक्षम लिथियम-आयन बैटरी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम रखा है. इस इनोवेशन का लाभ न सिर्फ विभिन्न उद्योगों और उपभोक्ताओं को होगा बल्कि इससे स्वच्छ और अधिक ऊर्जा-सक्षम भविष्य को लेकर भारत का सपना साकार होगा. यह रिसर्च बुनियादी तौर पर भारत सरकार के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) मिशन के अनुसार किया गया है, जो भारत में ईवी का चलन बढ़ाने के लिए शोध और विकास को बढ़ावा देता है. इसके अतिरिक्त ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के तहत स्वदेशी बैटरी प्रौद्योगिकियों के विकास पर जोर देता है ताकि देश को ईवी सेक्टर में आत्मनिर्भर और सस्टेनेबल बनाने के प्रयास तेज हों..