वह महिला, जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने अपने राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा
निर्मला देशपांडे गांधी के आदर्शों पर चलने वाली सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिनका पूरा जीवन सांप्रदायिक सौहार्द्र को समर्पित था.
अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने और आजादी हासिल करने के बाद भी भारत को अभी एक लंबी लड़ाई लड़नी बाकी थी. फिरंगी तो चले गए, लेकिन भारतीय समाज अब भी अपनी जड़ों तक रूढि़वादिता, जाति व्यवस्था, गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा के संकट से जूझ रहा था और इस संकट से निजात पाने की लड़ाई अभी और लंबी थी. आजाद भारत में ऐसे बहुत सारे बुद्धिजीवी, चिंतक और एक्टिविस्ट थे, जो एक आजाद देश को न्याय, समता और बराबरी का देश बनाने के लिए सतत संघर्ष कर रहे थे. इन लोगों में एक नाम निर्मला देशपांडे का भी है. आज निर्मला जी का जन्मदिन है.
निर्मला देशपांडे गांधी के आदर्शों पर चलने वाली जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता थीं. उन्होंने अपना पूरा जीवन सांप्रदायिक सौहार्द्र और स्त्रियों की शिक्षा और सशक्तिकरण के काम में समर्पित कर दिया. वो संभवत: एकमात्र ऐसी सोशल एक्टिविस्ट हैं, जिन्हें भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों में राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया. भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और सौहार्द्र बनाने में निर्मला जी की भूमिका ऐतिहासिक रही है.
93 साल पहले आज ही के दिन नागपुर में उनका जन्म हुआ था. उनके पिता पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे मराठी के नामी लेखक थे, जिन्हें 1962 में उनकी किताब अनामिकाची चिंतनिका के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. उनके घर में शुरू से ही साहित्य के साथ-साथ राजनीतिक चिंतन का माहौल था. पिता मराठी के नामी लेखक थे. मां का भी साहित्य के प्रति गहरा झुकाव था. निर्मला की माताजी ने जे. कृष्णमूर्ति की किताब “Commentaries on Life” का मराठी में अनुवाद किया था.
निर्मला जी ने नागपुर यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया. उन्होंने पुणे के प्रसिद्ध र्फर्ग्यूसन कॉलेज से भी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह नागपुर के मॉरिस कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाने लगीं.
अपने पिता की तरह निर्मला जी का भी लेखन के प्रति झुकाव था और उन्होंने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की. उन्होंने हिंदी में कई उपन्यास लिखे. उनका सबसे चर्चित उपन्यास है- “सीमांत.” सीमांत के कथानक के केंद्र में एक स्त्री है. पूरा उपन्यास उस स्त्री के सामंती पितृसत्ता की बेडि़यों को तोड़कर आजाद होने और अपने सत्व को ढूंढने और पाने की कहानी है. उनका एक और हिंदी उपन्यास चिमलिग चीन का सांस्कृतिक कथा है. इस उपन्यास को राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया है. इसके अलावा निर्मला जी ने कुछ नाटक और यात्रा वृत्तांत भी लिखे हैं. निर्मला देशपांडे जी ने विनोबा भावे की जीवनी भी लिखी है.
निर्मला जी ने एक पत्रिका का भी संपादन किया था. ‘नित्य नूतन’ नामक इस पत्रिका का संपादन शुरू हुआ 1985 से, जो सांप्रदायिक सौहार्द्र, शांति और अहिंसा के विचारों को समर्पित थी. ‘नित्य नूतन’ अपने समय की बहुत प्रभावशाली पत्रिकाओं में से एक थी. निर्मला जी की मृत्यु के बाद भी क्राउड फंडिंग के जरिए इस पत्रिका का प्रकाशन होता रहा, लेकिन अब उसकी पॉपुलैरिटी उतनी नहीं रह गई थी.
1952 का साल था, जब पहली बार विनोबा भावे जी से उनकी मुलाकात हुई. वो उनके व्यक्तित्व और काम से इतनी प्रभावित हुईं कि सबकुछ छोड़-छाड़कर उनके भूदान आंदोलन का हिस्सा बन गईं. उन्होंने विनोबा भावे के साथ 40 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की और देश के विभिन्न हिस्सों में गईं. इस यात्रा का मकसद गांधी के संदेश “ग्राम स्वराज” को जन-जन तक पहुंचाना था.
आजादी के बाद जिस तरह देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था बदल रही थी, निर्मला जी खुद भी जानती थीं कि बहुसंख्यक लोग गांधी के विचारों और आदर्शों से दूर हो रहे थे. गांधी के बताए ग्राम स्वराज के रास्ते पर चलना आसान नहीं था. लेकिन फिर भी यह उनका गहरा यकीन था कि इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. उन्हें यकीन था कि भारत को एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए गांवों को सबल और आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है. राजधानी और महानगर पूरा देश नहीं हैं. असली देश गांवों में बसता है. एक सबल और सशक्त लोकतंत्र वही हो सकता है, जहां गांव आत्मनिर्भर और समृद्ध हों.
जब कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में हिंसा चरम पर थी, तो वहां शांति यात्रा निकालने का साहस भी निर्मला जी ने ही दिखाया था. 1994 में उन्होंने कश्मीर में शांति मिशन की शुरुआत की. 1996 में भारत-पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता करवाने में भी निर्मला देशपांडे और उनके संगठन की बड़ी भूमिका थी.
1 मई, 2008 को जब उनकी मृत्यु हुई तो वह राज्यसभा की सदस्य भी थीं. 79 साल की उम्र में एक रात नींद में ही वह दुनिया से रुखसत हो गईं. उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था, इसलिए उनकी अस्थियां भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बहने वाली सिंधु नदी में बहाई गई थीं.
निर्मला देशपांडे संभवत: इकलौती ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता और शांति का संदेश फैलाने वाली शख्सियत हैं, जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहुत प्यार और सम्मान मिला. दोनों ही देशों में उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया.
साल 2005 में उन्हें राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. 2006 में उन्हें पद्म विभूषण मिला. वर्ष 2005 में उनका नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित हुआ था. 13 अगस्त, 2009 को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उन्हें उस देश के तीसरे सबसे प्रतिष्ठित सिविलियन अवॉर्ड सितार-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया.
Edited by Manisha Pandey