आखिर कैसे नेताजी की कोशिशों की बदौलत आजाद हिंद फौज में महिला यूनिट का गठन मुमकिन हो सका
नेताजी को इस कदम के लिए आईएनए और आम नागरिकों की तरफ से काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने आलोचनाओं की परवाह किए बगैर महिला यूनिट के गठन का काम पूरा किया. यूनिट का नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया. कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को बनाया गया.
आजादी की लड़ाई में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बनाई गई आजाद हिंद फौज(Azad Hind fauz) या इंडियन नैशनल आर्मी(Indian National Army) की बड़ी भूमिका मानी जाती है. आजाद हिंद फौज की स्थापना साल 1942 में जापान की राजधानी टोक्यो में रह रहे राश बिहारी बोस (Rash Behari Bose) ने की थी.
दरअसल जापान ने ब्रिटिश सेना को हराकर लगभग सभी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को जब्त कर लिया था. उसके बाद भारत को भी ब्रिटिश राज से मुक्त कराने के मकसद से रास बिहारी ने भारतीय युद्धबंदियों को जुटाकर इंडियन नैशनल आर्मी बनाई.
इस संगठन को ब्रिटिश भारतीय सेना में एक पूर्व अधिकारी जनरल मोहन सिंह द्वारा बहुत सहायता प्रदान की गई थी. इस सेना में जापान द्वारा इकठ्ठा किए 40,000 भारतीय थे. इनमें से अधिकतर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान द्वारा बंदी बनाए गए भारतीय थे और कुछ बर्मा (आज का म्यांमार) और मालवा में स्वंयसेवक भारतीय थे.
हालांकि एशिया में जापान द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई में इस सेना की भूमिका को लेकर आईएनए की लीडरशिप और जापानी सेना के बीच मतभेद हो गए. इसके बाद 1942 में ही दिसंबर में ये सेना भंग हो गई. राशबिहारी ने सेना की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी.
इसे बोस का आरजी हुकुमत-ए-आजाद हिंद कहा गया यानी आजाद भारत की अंतरिम सरकार. सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में इसके गठन की घोषणा की.
सुभाष चंद्र बोस ने आईएनए के ब्रिगेड/रेजिमेंट के नाम महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आजाद और अपने नाम पर रखे. उन्होंने आजाद हिंद सेना के अंतर्गत ही एक महिला विशेष रेजिमेंट का भी गठन किया था.
हालांकि नेताजी को इस कदम के लिए आईएनए और आम नागरिकों की तरफ से काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने आलोचनाओं की परवाह किए बगैर महिला यूनिट के गठन का काम पूरा किया.
इस यूनिट का नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया. कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को बनाया गया. महिलाओं के सेना में आने के लिए साफ नियम थे, केवल उन्हीं महिलाओं को जगह दी जाएगी जिनके पास घरवालों की तरफ से पूरा समर्थन हो और किसी तरह की मनाही ना हो.
इस महिला टुकड़ी में 20 औरतों को सेना में आने के लिए राजी किया जा सका. उन्हें आईएनए से उधार लेकर ली-एनफील्ड 303 राइफल्स के साथ ट्रेनिंग दी गई.
सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने सबसे पहले अंडमान और निकोबार पर कब्जा किया औ वहां पर अपना झंडा फहराया. इसके बाद नेताजी की अगुवाई में ही आईएनए ने 1944 में इंपीरियल जापानीज आर्मी के सहयोग से बर्मा में तैनात ब्रिटिश और कॉमनवेल्थ फोर्सेज के खिलाफ इम्फाल और कोहिमा से लड़ाई लड़ी.कोहिमा में तो सेना को जीत हासिल हुई लेकिन इसके बाद पासा पलट गया.
दरअसल आजाद हिंद फौज की मदद कर रहे जापान और जर्मनी दोनों ही दूसरे विश्व युद्ध में हार गए. जिस वजह से आजाद हिंद फौज को भी दोबारा जापान लौटना पड़ा. इसी दौरान प्लेन हादसे में सुभाष चंद्र बोस की मौत हो गई. आजाद हिंद फौज भले ही उस वक्त पूरी तरह सफल नहीं हो पाई हो. लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.
Edited by Upasana