बीते 20 सालों से खत्म हो रहे तालाबों और झीलों को बचाने में जुटा है यह नौजवान, मुहिम से जुड़ रहे हैं सैकड़ों लोग
तमिलनाडू राज्य के कोयंबटूर शहर के रहने वाले मणिकंदन आर बीते बीस वर्षों से सूखे पड़े कुएं बावड़ी और नदियों तथा झीलों को पुन: जीवित करने के काम में लगे हुए हैं।
मजरूह सुल्तानपुरी का एक मशहूर शेर है कि, ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।’ इस मशहूर शायर के लाजवाब शेर की तरह ही आज सैकड़ों लोग तमिलनाडू के इस नवयुवक के साथ जुड़ते जा रहे हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी की तरह ही प्रकृति प्रेम से ओत-प्रोत यह नौजवान पिछले 20 बरसों से तालाबों, नदियों और झीलों के जीर्णोधार में जुटा हुआ है।
एक कारण जो बन गया जिंदगी का मिशन
तमिलनाडू राज्य के कोयंबटूर शहर के रहने वाले मणिकंदन आर बीते बीस वर्षों से सूखे पड़े कुएं बावड़ी और नदियों तथा झीलों को पुन: जीवित करने के काम में लगे हुए हैं। कुछ सालों पहले इलाके के सारे कुएं धीरे-धीरे सूखने लगे। जिस कारण पानी की तबाही बढ़ने लगी।
एक साक्षात्कार के दौरान मणिकंदन ने बताया कि, ‘उन दिनों गाँव के अधिकतर लोग कुओं पर निर्भर रहा करते थे। जब कुएं सूखने लगे तो मैंने देखा कि लोग कितने परेशान रहने थे। दूर-दराज से पानी लाना, गर्मी के मौसम में तरह-तरह की समस्यों का सामना करना ग्रामीणों के लिए एक चुनौती बनता जा रहा था। इस बात को लेकर परेशान सभी थे लेकिन इसकी वजह किसी को नहीं पता थी।’
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इस घटना के समय मणिकंदन की उम्र यही कोई 17 वर्ष रही होगी। उन्होंने ऐसा होने का कारण जानना चाहा और इसकी खोज शुरू कर दी। काफी जांच-पड़ताल करने के बाद जानकारी हुई कि पास की एक नहर सुख गई है और उसके दो से चार किमी की दूरी पर बने दो डैम। डैम टूट चुका था जिसके कारण बरसात का पानी अबकी बार इकठ्ठा नहीं हो पाया था। इस पूरी जानकारी को उन्होंने सरकारी अधिकारियों के साथ साझा किया। साल 2000 में हुई इस घटना का हल तो निकाल लिया गया लेकिन मणिकंदन आर ने ऐसे ही अन्य जलस्त्रोंतोंं को बचाने का काम शुरू कर दिया।
महज आठवीं पास है ये शख्स
समाज के लिए जीने वाला और प्रकृति के प्रति इतनी सजगता रखने वाले मणिकंदन आर ने महज आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। ऐसा नही कि पढ़ाई में उनकी रुचि नहीं थी बल्कि घर की माली हालत अच्छी न होने के कारण उन्हें जल्द ही स्कूल और पढ़ाई को अलविदा कहना पड़ गया था। बावजूद इसके यह शख्स की अपनी सोच और सजगता के बल पर समाज की भलाई करने को आतुर है।
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कैसे मिली जल योद्धा की उपाधि
पढ़ाई के बाद मणिकंदन ने कुछ दिनों तक एक वर्कशॉप में बतौर एक ट्रेनी के रूप में भी काम किया। उन दिनों गाँव की समस्या का निराकरण करने के बाद उनके मन में इस काम को आगे बढ़ाने का विचार आया। धीरे-धीरे अधिकारियों का सहयोग मिलने लगा। लोगों की समस्या का समाधान होता जा रहा था। सामाजिक कामों में रुचि बढ़ी तो मणिकंदन ने वृक्षा रोपण, नए जल स्त्रोतों का निर्माण, पुराने स्त्रोतों की मरम्मत कराने का शौक अब उनका मिशन बन गया था। इसकी लिए उन्होंने एक संस्था न गठन किया। शुरुआत में वह अकेले ही थे लेकिन समय के साथ लोग उनके मिशन से जुडने लगे।
एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए 39 वर्षीय मणिकंदन ने कहा कि, “20 से अधिक सालों से सामाजिक कामों में लगा हूँ। कुछ समय बाद मैंने समुदायों से जुड़ी समस्याओं को हल करने की दिशा में काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे कई दूसरे तरह के सामाजिक काम भी करने लगा।”
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अब इनका समूह वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यंगों की मदद करने का काम करता है। इसके अलावा अन्य गतिविधियों में भी समूह सक्रियता के साथ काम कर रहा है जिसमें सांस्कृतिक एक्टिविटी, जनसंख्या गणना, रक्तदान शिविर, मतदाता सूची जैसी कई अन्य काम। आज, एनजीओ में छात्रों और पेशेवरों सहित लगभग 100 नियमित सक्रिय सदस्य हैं, जो झीलों, तालाबों, नहरों, चेक डैम आदि की सफाई में शामिल हैं। मणिकंदन को इस काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। इसी साल मणिकंदन को जल शक्ति मंत्रालय ने ‘जल योद्धा पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।
आज समाज के हर इंसान को प्राकृतिक चीजों को बचाने के लिए सजगता दिखानी चाहिए। किसी ने क्या खूब लिखा है कि-
‘नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना जरा, कभी कड़ी धूप में इनसे ही पनाह मांगी थी।’
Edited by Ranjana Tripathi