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दि्ल्ली में हृदय घात मरीजों के लिए आपातकालीन सचल सेवा का दायरा बढ़ा

दि्ल्ली में हृदय घात मरीजों के लिए आपातकालीन सचल सेवा का दायरा बढ़ा

Wednesday January 01, 2020 , 2 min Read

एम्स से पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को हृदय घात या सीने में दर्द की स्थित में आपातकालीन मोबाइल चिकित्सा सेवा मिलेगी। यह सुविधा अप्रैल में शुरू की गई थी, जब इसका दायरा एम्स से तीन किलोमीटर तक था, जिसे अब बढ़ा दिया गया है।


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फोटो क्रेडिट: ajabgajabjankari


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) की संयुक्त पहल के तहत यह सेवा शुरू की गई है।


‘मिशन दिल्ली’ (दि्ल्ली आपातकालीन जीवन हृदय घात पहल) के तहत मोटरसाइकिल सवार प्रशिक्षित नर्स सबसे पहले हृदय घात के मरीजों का इलाज करने पहुंचती हैं। इस पहल के तहत अभी तक 44 मामले आए हैं।


एम्स में वैज्ञानिक डॉक्टर चांदनी सुवर्णा ने बताया,

“परियोजना को बढ़ाकर अब एम्स, नई दिल्ली के आसपास 78 वर्ग किलोमीटर तक कर दिया गया है और अब राष्ट्रीय राजधानी में 20-25 लाख आबादी को इसका फायदा मिलेगा।”


मिशन दि्ल्ली के टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर (1800111044 और 14430) पर फोन आते ही सचल चिकित्सा दल मरीज के परीक्षण के लिए तुरंत रवाना हो जाता है, उसे जरूरी चिकित्सा मुहैया कराई जाती है।


जब तक आपातकालीन इलाज दिया जाता है, सीएटीएस एबुंलेंस आ जाती है और मरीज को आगे इलाज के लिए ले जाया जाता है।





मरीज जब अस्तपताल के रास्ते में होता है, इस दौरान भी एम्स के नियंत्रण केंद्र में डॉक्टर नर्स से मिल रहे आंकड़ों का मूल्याकंन करते रहते हैं और इलाज के लिए जरूरी दिशानिर्देश देते हैं।


इस परियोजना के लिए आईसीएमआर ने सीएटीएस (केंद्रीकृत एम्बुलेंस आपातकालीन सेवा) के साथ समझौता किया है।


सुवर्णा ने कहा कि इस पहल का मकसद प्रशिक्षित नर्स की मदद से मरीज को जल्द से जल्द चिकित्सा सहायता मुहैया कराना है।


आपको बता दें कि अचानक हृदय मौत का वर्णन करने के लिए कभी-कभी "दिल का दौरा" वाक्यांश का इस्तेमाल गलत तरीके से किया जाता है जो कि तीव्र रोधगलन के परिणामस्वरूप हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। दिल का दौरा इससे अलग होता है, लेकिन पूर्णहृद्रोध का कारण हो सकता है जो कि दिल की धड़कन और असामान्य धड़कन हृद्-अतालता को रोकता है। साथ ही यह हृद्पात से भी अलग होता है, जिसमें दिल को पंप करने में असमर्थ होता है; गंभीर रोधगलन से हृद्पात हो सकता है, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है।


(Edited by रविकांत पारीक )