Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

चौथी पास इस महिला ने खड़ा कर दिया वैश्विक ब्रांड, कच्छ की सैकड़ों महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

आज पाबिबेन लक्ष्मण रबारी द्वारा बनाए गए बैग अमेरिका, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देशों में निर्यात किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं मशहूर बॉलीवुड फिल्म ‘लक बाय चांस’ में भी इस बैग का इस्तेमाल किया गया था।

चौथी पास इस महिला ने खड़ा कर दिया वैश्विक ब्रांड, कच्छ की सैकड़ों महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

Thursday June 03, 2021 , 4 min Read

"पाबिबेन 18 साल की थीं जब उनकी शादी तय कर दी गई। पाबिबेन रबारी ने अपना पहला बैग अपनी ही शादी में बनाया था और उस दौरान उनकी शादी को देखने के लिए कुछ विदेशी पर्यटक भी आए हुए थे, बाद में जिन्हे पाबिबेन का बनाया हुआ वह बैग भेंट किया गया। उन पर्यटकों को वह बैग बेहद पसंद आया और उन्होने उस बैग को ‘पाबीबैग’ का नाम दे दिया। उन पर्यटकों के जरिये उनके बैग को भारत के बाहर पहचान मिलने में सफलता हासिल हुई।"

f

कठिन शुरुआती सफर के बावजूद कामयाबी के शिखर पर बहुत ही कम लोग पहुँच पाते हैं, लेकिन पाबिबेन ने अपना भाग्य खुद ही लिखने की थान रखी थी। गुजरात के कच्छ इलाके में स्थित भदरोई गाँव में रहने वाली 33 साल की पाबिबेन लक्ष्मण रबारी जब महज 5 साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। तब पाबिबेन की माँ को घर चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ी और उस समय ही पाबिबेन को माँ के ऊपर बीत रही तमाम मुश्किलों का अहसास हो गया था।


पाबिबेन को बहुत अधिक शिक्षा नसीब नहीं हो सकी और उन्हें चौथी कक्षा के बाद ही स्कूल छोड़ना पड़ा। पाबिबेन के अनुसार जब वे महज 10 साल की थीं तब ही वे अपनी माँ के साथ काम पर जाती थीं। इस दौरान वे लोगों के घरों में पानी भरने का काम करती थीं, जिस बदले उन्हे हर रोज़ एक रुपये का मेहनताना मिलता था। पाबिबेन ने इसी दौरान अपनी माँ से पारंपरिक कढ़ाई सीखनी शुरू कर दी थी।

हासिल की महारत

दरअसल पाबिबेन आदिवासी समुदाय ढेबरिया रबारी से ताल्लुक रखती हैं और यह समुदाय अपनी पारंपरिक कढ़ाई की कला के भी प्रख्यात है। समुदाय के रिवाज के अनुसार लड़कियां अपने दहेज में खुद से कढ़ाई किए हुए कपड़े लेकर जाती हैं।


साल 1998 में पाबिबेन ने एक एनजीओ की मदद से रबारी महिला समुदाय को जॉइन कर लिया और इस दौरान उन्होने ‘हरी-जरी’ नाम की एक खास कढ़ाई कला की खोज भी की। पाबिबेन ने समुदाय के साथ करीब 6 साल काम किया और कुशन, कवर और रज़ाई समेत तमाम चीजों पर डिजाइन बनाना सीखा। इस दौरान उन्हे 300 रुपये महीने का मेहनताना मिलता था।

विदेशी पर्यटकों का कमाल

पाबिबेन 18 साल की थीं जब उनकी शादी तय कर दी गई। पाबिबेन रबारी ने अपना पहला बैग अपनी ही शादी में बनाया था और उस दौरान उनकी शादी को देखने के लिए कुछ विदेशी पर्यटक भी आए हुए थे, बाद में जिन्हे पाबिबेन का बनाया हुआ वह बैग भेंट किया गया। उन पर्यटकों को वह बैग बेहद पसंद आया और उन्होने उस बैग को ‘पाबीबैग’ का नाम दे दिया। उन पर्यटकों के जरिये उनके बैग को भारत के बाहर पहचान मिलने में सफलता हासिल हुई।


आज पाबिबेन द्वारा बनाए गए बैग अमेरिका, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देशों में निर्यात किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं मशहूर बॉलीवुड फिल्म ‘लक बाय चांस’ में भी इस बैग का इस्तेमाल किया गया था। पाबिबेन को उनके पति ने आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जिसके बाद उन्होने अपने उत्पादों के साथ तमाम प्रदर्शनियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।

वेबसाइट ने बदल दी कहानी

गाँव की महिलाओं के साथ मिलकर पाबिबेन ने एक वेबसाइट (पाबिबेन डॉट कॉम) की शुरुआत की। वेबसाइट से उनके काम ने तेजी पकड़ी और उन्हे 70 हज़ार रुपये का ऑर्डर हासिल हुआ। इसी दौरान गुजरात सरकार ने भी उन्हे ग्रांट दिया।


लगातार आगे बढ़ते हुए पाबिबेन आज 60 महिला कारीगरों की एक टीम के साथ काम कर रही हैं। ये सभी महिलाएं 25 से अधिक तरह की डिजाइन का निर्माण करती हैं। वेबसाइट के जरिये ही पाबिबेन के इस कारोबार का टर्नोवर 20 लाख रुपये से ऊपर पहुँच चुका है।


उनके अथक प्रयासों को देखते हुए पाबिबेन को साल 2016 में जानकी देवी बजाज पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। पाबिबेन की चाहत है कि उनके कारोबार और वेबसाइट के जरिये सैकड़ों की संख्या में महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें।


Edited by Ranjana Tripathi