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वंचित बच्चों का जीवन बेहतर करने की कोशिश में 'IPER'

इंस्टीट्यूट ऑफ सायकोलोजिकल एंड एजुकेशनल रिसर्च IPER कोलकाता की झुग्गी बस्तियों में एक प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक स्कूल चलाता हैIPER में 1445 बच्चे, जिनमें 682 लड़के और 763 लड़कियाँ हैं“बिना स्तरीय शिक्षा के सही अर्थों में कोई भी विकास संभव नहीं है और उसके लिए समाज के सभी लोगों की सक्रिय भागीदारी बहुत ज़रूरी है।”

वंचित बच्चों का जीवन बेहतर करने की कोशिश में 'IPER'

Friday September 04, 2015 , 7 min Read

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डॉ बिजली मलिक, डायरेक्टर, इंस्टीट्यूट ऑफ सायकोलोजिकल एंड एजुकेशनल रिसर्च (IPER), जोकि शिक्षा पर फोकस करने वाला एक स्वयंसेवी संगठन है। वर्तमान में IPER दक्षिण कोलकाता की झुग्गी बस्तियों में एक प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक स्कूल चलाता है, जहाँ 1445 बच्चे, जिनमें 682 लड़के और 763 लड़कियाँ हैं, शिक्षा ग्रहण करते हैं। “हमारे 30 केन्द्रों में 39 समर्पित शिक्षक हैं। IPER बच्चों के विकास के लिए कई कार्य योजनाएँ लागू करता है। उनमें से एक, ‘लावारिस बच्चों के लिए एकीकृत कार्यक्रम’ (Integrated Programme for Street Children) का लक्ष्य बच्चों में अभावग्रस्तता की रोकथाम का करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। बच्चों को शिक्षा, पोषण, स्वच्छता और स्वास्थ्य, सुरक्षित पेयजल, मनोरंजन की सुविधाएँ मुहैया कराना और उन्हें दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा प्रदान करना इस योजना का मुख्य घटक है। पिछले एक साल से IPER कोलकाता भर में फैले अपने 16 केन्द्रों के ज़रिए 500 बच्चों तक पहुँचने में कामयाब रहा है। हमारे दूसरे कार्यक्रम हैं, उन बच्चों को मूलभूत शैक्षणिक सुविधाएँ और पोषक आहार मुहैया कराना, जिन्हें ये सुविधाएँ बिल्कुल उपलब्ध नहीं हैं और बाल-अधिकार कमीशन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के उद्देश्यों के मुताबिक बाल-श्रमिक विरोधी परियोजनाएँ चलाना। कुल मिलाकर 350 बच्चे इन परियोजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं,” बिजली मलिक बताती हैं।

बिजली मलिक

बिजली मलिक


बिजली मलिक का रिज़ूमे बहुत प्रभावशाली है, यह कहना मामूली बात होगी। वे Soroptimist International of South Kolkata की संस्थापक अध्यक्ष हैं, जो दमित और वंचित परिस्थितियों में जीवन गुजारने वाली महिलाओं और बच्चों के जीवन स्तर में सुधार लाने और उनके कल्याण के लिए काम करने वाली पेशेवर महिलाओं का संगठन है। वे सन 1991 से ‘इंटेरनेशनल सोसाइटी ऑफ प्रिवेंशन ऑफ चाइल्ड एब्यूज अँड निग्लेक्ट’ (International Society of Prevention of Child Abuse and Neglect -ISPCAN) की सदस्य हैं। वे पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद कानून, 2009 और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान संबंधी नियम, 2008 की उचित मॉनिटरिंग और उसके कार्यान्वयन हेतु बनी राज्य स्तरीय टास्क फोर्स की सदस्य भी हैं। जून 2011 में डॉ. मलिक 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा शिक्षक प्रशिक्षण हेतु बनाए गए कामकाजी समूह (वर्किंग ग्रूप) की सदस्य भी चुनी गई हैं। वे 8 नवंबर 2011 से पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दक्षिण 24 परगना जिले के लिए शुरू की गई बाल कल्याण समित (CWC) की अध्यक्ष भी हैं।

IPER की प्रमुख गतिविधियाँ

* बच्चों और महिला अधिकारों के प्रति समाज में जागरूकता पैदा करना।

* अपनी सुरक्षा हेतु बच्चों के समूह तैयार करना तथा इस बारे में संबंधित समूहों या स्टेकहोल्डर्स के बीच उसका प्रचार और उसकी वकालत करना।

* असुरक्षित और विपत्ति में पड़ सकने वाले (हाइ रिस्क) बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा।

* वयस्कों के लिए, विशेष रूप से वयस्क महिलाओं के लिए रोजगारोन्मुख या वृत्तिमूलक शिक्षा।

* अनौपचारिक केन्द्रों में उपस्थित हो रहे उन बच्चों को पौषणिक पूरक खाद्य (Nutritional supplementation) उपलब्ध कराना जो पौषणिक अभाव (nutritional deficiency) से ग्रसित हैं।

* चल और अचल अस्पतालों के ज़रिए रोग निरोधक और उपचारक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना।

* सामाजिक और सांस्कृतिक विकास तथा विभिन्न कार्यक्रमों और प्रदर्शनों का मंचन।

* औपचारिक शिक्षा के ज़रिए वंचित बच्चों को मुख्यधारा में लाना और उनकी लगातार मदद करते रहना, जिससे वे बाद में स्कूल जाना न छोड़ें।

* स्तरीय शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे लगातार स्कूल आते रहें और उनकी आगे की शिक्षा जारी रह सके।

* व्यक्तिगत और समूहों में काउंसिलिंग प्रदान करना और आवश्यकता पड़ने पर बाकायदा डॉक्टरी इलाज संबंधी उपाय करना।

* बच्चों की शिक्षा, उनके भोजन और स्वास्थ्य के लिए प्रायोजकों की व्यवस्था करना।

* वैकल्पिक आजीविका हेतु महिलाओं को दक्षता विकास संबंधी प्रशिक्षण प्रदान करना।

* पर्यावरण में सुधार और प्रदूषण निवारण के सम्बन्ध में जागरूकता पैदा करना और इस दिशा में सक्रिय हस्तक्षेप करना।

* पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड (Board of Primary Education) के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना।

* कल्याणी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ‘सामाजिक कार्य’ एवं ‘प्रबंधन’ विषयों में डिप्लोमा कोर्सों की व्यवस्था करना।

IPER शराब की लत और नशीले पदार्थों के सेवन की रोकथाम की दिशा में परामर्श (counselling) और स्वजागरूकता अभियान भी चलाता है।

हितग्राहियों का कहना है

"दो बेटियों की अकेली अभिभावक होने के नाते अकेले उनकी उचित देखभाल कर पाना मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता था। मेरी छोटी बेटी को अपनी देखभाल में लेकर और उसे भोजन, आश्रय और शिक्षा मुहैया कराके IPER ने मेरी समस्या सुलझा दी है," दक्षिण कोलकाता में रहकर घरेलू नौकरानी का काम करने वाली मिठु मंडल ने बताया।

सुभद्रा भी घरेलू नौकरानी है मगर उसकी कहानी कुछ अलग है। "मेरा पति शराबी है और परिवार का भरण-पोषण ठीक तरह से नहीं कर पाता। मैं घरों में नौकरानी का काम करती हूँ मगर दो-दो बच्चों के लालन-पालन के लिए मेरी थोड़ी सी आमदनी बहुत कम पड़ती है। पड़ोसियों से मुझे IPER के बारे में पता चला और मैंने अपनी बेटी को वहाँ भर्ती करवा दिया। वहाँ के देखभाल करने वाले स्वयंसेवक अब उसकी देखभाल करते हैं और सिर्फ एक लड़की मेरे पास होने के कारण मुझे उसकी देखभाल करने और घर-परिवार की व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने में बड़ी सुविधा हो गई है," दक्षिण कोलकाता में रहने वाली सुभद्रा कहती है।

"मैं समझती हूँ कि बिना स्तरीय शिक्षा के सही अर्थों में कोई भी विकास संभव नहीं है और उसके लिए समाज के सभी लोगों की सक्रिय भागीदारी बहुत ज़रूरी है। IPER में हम अपेक्षित शिक्षा और उपलब्ध शिक्षा के बीच की खाई को पाटने की कोशिश करते हैं। परिस्थितिजन्य चुनौतियों से जूझ रहे बच्चे राष्ट्र और समाज द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार से वंचित न रहें, यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है। इसलिए सामुदायिक बच्चों के साथ मैं निकट से काम करने का पक्का इरादा रखती हूँ। हमने अभी, हाल ही में 2 से 6 साल के बच्चों के साथ जुड़े शिक्षकों और अभिभावकों के लिए ‘बचपन और बाल-विकास’ (Early Childhood and Child development) नाम से 6 माह का एक कोर्स शुरू किया है। यह प्रशिक्षण उन्हें बाल मनोविज्ञान और बाल व्यवहार जैसे विषयों को बेहतर ढंग से समझने में मददगार होगा, जिससे उनके संपर्क में आने वाले छोटे-छोटे बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे और बेहतर माहौल में उनका शारीरिक और मानसिक विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा," मलिक कहती हैं।

IPER दक्षिण कोलकाता में बसे वंचित और हाशिए पर पड़े हुए युवाओं के लिए बहु-विषयक प्रशिक्षण केंद्र चला रहा है और उसने आसपास के फुटपाथों, सँकरी गलियों और झुग्गियों में खतरनाक परिस्थितियों में रह रही 28 लड़कियों के लिए आश्रय स्थल प्रायोजित किए हैं। IPER की एक और अनोखी पहल है, कंप्यूटर ऑन व्हील्स कार्यक्रम, जिसे पिछली जनवरी में ही शुरू किया गया है और जिसके अंतर्गत एक मोबाइल वैन कंप्यूटरों और प्रशिक्षकों को लेकर इन सुविधाओं से वंचित युवाओं के समूहों तक जाती है और उन्हें एनिमेशन सॉफ्टवेयर आदि का प्रशिक्षण देती है, जिससे वे इस क्षेत्र में अपना काम शुरू करके अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर सकें। हालांकि फिलहाल यह कार्यक्रम टैक्स संबंधी मामलों के चलते रुका पड़ा है लेकिन उसे जल्द ही फिर शुरू करने की भरसक कोशिश की जा रही है। IPER का एक स्कूल ऑन व्हील्स भी है जो इन समुदायों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करता है।

“IPER में हम कमजोर और असहाय लड़कियों को आत्मरक्षा हेतु ताइकोंडो का प्रशिक्षण भी देते हैं और उन प्रशिक्षित लड़कियों में से 5 लड़कियों ने इस वर्ष बैंगलोर और नेपाल में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते हैं,” अपनी बात का समापन करते हुए बिजली मलिक सगर्व बताती हैं।