स्कूली बच्चों को स्वस्थ रहने और पढ़ने के लिए प्रेरित करने की कोशिशों का नाम है बर्फीस एक्शन ग्रुप
बचपन और बचपन के दोस्त सबसे अनमोल होते हैं। बचपन का पिटारा जब भी खुलता है उसमें से हमेशा अनमोल यादें निकलती हैं. जैसे स्कूल के वो कभी ना भूलने वाले दिन, दोस्तों के साथ की गई मस्तियाँ, शरारतें और बहुत सी ख्वाइशें जो हम सिर्फ दोस्तों को ही बताया करते थे. जब भी ये यादें ताज़ा होती हैं मन को एक अजीब से खुशी मिलती है।
मुंबई के अँधेरी में स्थित सेठ चुन्नीलाल दामोरदास बर्फीवाला हाई स्कूल के 1980 के बैच के दोस्त भी हमेशा इन खूबसूरत यादों को ताज़ा करने के लिए मिलते रहते थे. लेकिन तकरीबन डेढ़ साल पहले ये फिर से मिले, लेकिन सिर्फ यादें ताज़ा करने के लिए नहीं बल्कि उन बच्चों को स्कूल की यादें देने के लिए जिनसे ये छिनने वाली थीं. दरअसल एक दिन यूँ ही आपस में बात करते-करते किसी एक ने बाकी दोस्तों को मुंबई के दूर-दराज़ और दूसरे आदिवासी इलाकों में रहनेवाले स्कूल के बच्चों की मुश्किलों के बारे में बताया. ये बच्चे किसी साधन के अभाव में रोज़ाना करीबन 5-8 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे. नतीजा ये हुआ कि बहुत से बच्चे खासतौर से लड़कियां बीच में ही पढाई छोड़ देती थीं. दोस्तों के ग्रुप ने इन बातों को बहुत गहराई से लिया और इन स्कूली बच्चों की मदद के लिए कुछ करने का मन बना लिया. चूँकि समस्या ट्रांसपोर्ट की थी इसलिए ज़रूरी था कुछ ऐसा साधन मुहैया करवाना जिससे वो स्कूल तक का सफ़र आसानी से तय कर सकें।
योर स्टोरी से बातचीत में ग्रुप ने बताया...
"स्कूल के नाम पर हमने अपने ग्रुप का नाम रखा बर्फीस एक्शन ग्रुप. हम सबको लगा अगर बच्चों के पास साइकिल होगी तो वो आराम से स्कूल जा सकते हैं. फिर हमने लोगों से उनकी पुरानी साइकिल दान करने की अपील की जो अच्छे कॉनडीशन में हो. लेकिन बहुत बुरा लगा जब लोग पुराने के पर कबाड़ देने लेगे. फिर हमने फैसला किया की हम डोनेशन इकट्ठा कर नई साइकिल बच्चों को देंगे. पिछले एक साल में हमने मुंबई के दूर-दराज़ इलाकों जैसे विरार, पालघर और पाली में २०० से ज्यादा साइकिल, स्कूली बच्चों के बीच बांटी है. साइकिल के वैसे भी कई फायदे हैं...एक तो साइकिल उन्हें स्कूल जाने के लिए हमेशा प्रेरित करता है, दूसरा इससे कोई प्रदूषण नहीं होता, और बच्चों की अच्छी कसरत भी हो जाती है।"
बर्फीस एक्शन ग्रुप औपचारिक तौर पर कोई गैर सरकारी संस्था नहीं है. ये ग्रुप व्हाट्स ऐप और दूसरे माध्यमों के ज़रिये लोगों से अनुदान की अपील करता है. इस ग्रुप का मानना है की समाज को कुछ देने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप किसी संस्था से जुड़े हों. बस एक चाहत और कुछ छोटी कोशिशें बड़ा बदलाव ला सकती हैं. इस ग्रुप में कुल 12 एक्टिव सदस्य हैं और सब वर्किंग प्रोफेशनल्स हैं. मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने काम और घर-परिवार की जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ ये सैकड़ों बच्चों का भविष्य सँवारने में लगे हैं।
योर स्टोरी से बातचीत में ग्रुप ने बताया,
"हम खुद जाते हैं और स्कूल के प्रिंसिपल को अपने काम के बारे में बताते हैं. फिर दोनों की सहूलियत के हिसाब से वितरण का दिन निर्धारित किया जाता है. डीलर्स से बात करके उससे एक दिन पहले साइकिल निर्धारित स्थान पर पहुंचा दी जाती है और फिर हम ज़रूरतमंद बच्चों के बीच साइकिल बाँट देते हैं. हम स्कूल के समय में ये सब नहीं करते क्योंकि हम नहीं चाहते कि उनकी पढाई बाधित हो।"
इस ग्रुप की नेक कोशिशों के बारे में जानने के बाद ऐसे काफी लोग सामने आये हैं, जिनकी मंशा समाज के लिए कुछ करने की है. एक नई साइकिल की कीमत तक़रीबन 4000 रुपय होती है और इस ग्रुप को अनुदान देकर वो भी इस बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं. एक छोटी सी कोशिश कैसे एक जिंदगी, एक इलाके, एक शहर या पूरे समाज में बदलाव ला सकती है, बर्फीस एक्शन ग्रुप ने ये उदाहरण हम सबके सामने रखा है. कुछ सकारात्मक करने के लिए ज़रूरी नहीं की आप धन्ना सेठ हों या आपके पास खाली समय हो. बस एक नेक सोच और दूसरों के लिए कुछ करने की मंशा ही काफी है.
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