महिलाओं को ख़ुद से दोस्ती करना सिखा रही यह बोल्ड लेखिका
अकेले जीवन बिताने वाली महिलाओं की जिंदगी के अनछुए पहलुओं को शब्द देने वाली श्रीमोई पीयू कुंदु...
'क्या आप शादीशुदा हैं?', 'अभी तक कुंवारी हैं?', 'घरवाले लड़का नहीं देख रहे?', 'अभी तक कोई मिला नहीं?', 'तुम्हें एक अच्छा पति चाहिए और सेहतमंद बदन'.. भारतीय लड़की की बढ़ती उम्र के साथ इस तरह के सवालों की संख्या भी बढ़ती जाती है। इसके उलट किसी महिला के लिए अकेले जीवन व्यतीत करना एक सपने जैसे ही होता है। माना जाता है कि महिला के लिए अकेले जीवन जीना किसी संघर्ष से कम नहीं होता। भारतीय समाज में अकेली महिलाओं को समाज से इतर समझा जाता है। महिलाओं के जीवन के इन्हीं छोटे-बड़े पहलुओं को शब्दों में पिरोने और उन्हें अपने नॉवेल्स में उतारने का काम किया है, श्रीमोई पीयू कुंदु ने।
कोलकाता से संबंध रखने वाली श्रीमोई ने अपना सफ़र दिल्ली में एक पत्रकार के तौर पर शुरु किया। महज 26 साल की उम्र में बतौर लाइफ़स्टाइल रिर्पोटर अपना नाम बनाया। लाइफ़स्टाइल रिर्पोटर के तौर पर उन्होंने कई बड़े अख़बारों में काम किया। एक रिपोर्टर से राइटर बनने का इनका सफर काफी दिलचस्प रहा है।
श्रीमोई ने हाल ही में अकेले जीवन बिताने वाली महिलाओं की जिंदगी के कुछ अनछुए पहलूओं पर अपना नॉवेल 'स्टेटस सिंगल' लिखा है। एक लेखिका जिसने अपनी लेखनी से समाज में फैली गंदगी को सहज रूप में पाठकों के लिए परोसा ही नहीं बल्कि इन मुद्दों पर खुलकर अपने विचार भी रखे। इस बार अपनी इस एकल यात्रा में श्रीमोई ने लगभग 3000 लोगों से बात कर समाज के एक अनछुए पहलू को पाठकों के सामने रखा है।
कोलकाता से संबंध रखने वाली श्रीमोई ने अपना सफ़र दिल्ली में एक पत्रकार के तौर पर शुरु किया। महज 26 साल की उम्र में बतौर लाइफ़स्टाइल रिर्पोटर अपना नाम बनाया। लाइफ़स्टाइल रिर्पोटर के तौर पर उन्होंने कई बड़े अख़बारों में काम किया। एक रिपोर्टर से राइटर बनने के फ़ैसले पर श्रीमोई बताती हैं कि ऐसा वह बचपन से ही करना चाहती थीं। रिपोर्टिंग से छुट्टी लेकर ऑस्ट्रेलिया में कुछ वक्त बिताया तो लगा कि अब अपने बचपन के सपने को साकार करना चाहिए। वापस लौटकर उन्होंने किताबें लिखना शुरू कर दिया।
श्रीमोई कुंदु के उपन्यासों में महिला जीवन के विभिन्न आयाम नजर आते हैं, चाहे वो उनका पहला नॉवेल फारअवे म्यूजिक हो या सीताज़ कर्स। पहले नॉवेल में जहां एक महिला के लिखने की दबी हुई इच्छा का विस्फोट नज़र आता है, वहीं उनके आगे आने वाले नॉवेल्स में महिलाओं के अलग अलग किरदारों, समाज में उनकी भूमिका और समाज की प्रतिक्रिया की झलक साफ़ दिखाई देती है। सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिस बेबाकी और सरल अंदाज़ में श्रीमोई इतने संवेदनशील मुद्दों को सामने रखती हैं, वह बहुत ही कम नजर आता है। लिखने के साथ ही श्रीमोई कुंदु एलजीबीटी कम्युनिटी के लिए भी काम करती हैं।
श्रीमोई का दूसरा उपन्यास साल 2014 में आया था, उस वक्त जब देश में सरकार बदली थी। श्रीमोई का यह नॉवेल, जिसका नाम सीताज़ कर्स था। माना जा रहा था कि इसके नाम को लेकर भारी हंगामा हो सकता है। नॉवेल के नाम के बारे में बात करते हुए श्रीमोई बताती हैं कि उन्हें इसका मुख्य किरदार मीरा, मुंबई में मिली थीं। एक समय वायरल इन्फेक्शन के चलते वह हॉस्पिटल पहुंच गईं, जब वापस लौटीं तो मीरा भी उनकी ज़िंदगी से जा चुकीं थीं। श्रीमोई का यह नॉवेल मीरा को ही समर्पित है।
इस नॉवेल में श्रीमोई के बेबाक लेखन की झलक देखने को मिलती है। यह कहानी सिर्फ़ महिलाओं की सेक्शुअल फैन्टसी ही नहीं है बल्कि इस कहानी में समाज के महिलाओँ के प्रति दोहरे रवैये को बताया गया। यह कहानी गुजराती परिवेश की एक महिला मीरा की है, जो शादी के बाद मुंबई आ जाती है। इस नॉवेल में बताया कि कैसे समाज में धर्म के नाम पर सेक्स को बढ़ावा दिया जाता है।
नॉवेल के आने के बाद लोग श्रीमोई पर सवाल दागने को तैयार थे, लेकिन उन्हें जवाब देना श्रीमोई ने ज़रूरी नहीं समझा, नॉवेल को मीडिया में सुर्खियों तो मिली हीं, श्रीमोई को 'एनडीटीवी वुमन ऑफ द वर्थ अवॉर्ड' से भी सम्मानित किया गया।
श्रीमोई का तीसरा नॉवेल यू हैव गॉट द रॉन्ग गर्ल, उस वक्त आया जब उनकी उम्र 40 के आसपास थी। एक ऐसी कहानी जो एक पुरुष के नजरिए से प्यार और रोमांस को प्रकट करती है। श्रीमोई के यह नॉवेल उनके पिछले दोनों नॉवेल्स से बिल्कुल अलग था। इसके बाद आया स्टेटस सिंगल बिल्कुल अलग ही फ्लेवर का नजर आता है। प्यार, रोमांस, सेक्स और होमोसेक्शुअलिटी के बाद अब श्रीमोई ने अपनी एकल यात्रा को पन्नों पर उतारा है।
चार नॉवेल्स के बाद अब श्रीमोई अपने पांचवे नॉवेल की तैयारी कर रही हैं, इसके विषय के बारे में पूछने पर श्रीमोई बताती हैं कि अगला नॉवेल बैड ब्लड उनके बीते हुए अनुभवों और आपबीती पर आधारित होगा।
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