दूसरों के घरों में पुताई कर की पढ़ाई, अब बच्चों को फ्री एजुकेशन दे रहे एच. आर. खान
14 नवंबर, बाल दिवस पर विशेष...
हमारे देश में कई बच्चे ऐसे हैं जो चाहकर भी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चों को शिक्षा तक ले जाने में सरकार तो काम कर ही रही है, साथ ही कई लोग भी हैं जो अपने स्तर पर ऐसे वंचितों और कमजोर आर्थिक वर्ग वाले बच्चों को एजुकेशन तक ले जा रहे हैं।
ऐसे ही लोगों में एक नाम दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में स्टडी सेंटर चलाने वाले हिफ्जुर्रहमान खान (एच. आर. खान) का भी है। एच. आर. खान गरीब और कमजोर आर्थिक वर्ग के बच्चों को फ्री में शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं।
पेशे से वकील एच. आर. खान का कहना है कि अच्छी शिक्षा देश के हर बच्चे का हक है। मूलत: जलालाबाद के निवासी एच. आर. खान ने जीवन में कई परेशानियों का सामना किया। उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वे पैसों के इंतजाम के लिए घरों में पुताई करते थे।
संघर्ष से भरा रहा जीवन
दरअसल उनके पिता ने सउदी अरब में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर एक बिजनेस शुरू किया था। बिजनेस पूरी तरह से फेल हो गया और यहीं से उनकी आर्थिक स्थिति डगमगाना शुरू हो गई। साल 1995 की बात है जब आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उन्हें गांव के मकान बेचकर दिल्ली आकर किराए के घर में रहना पड़ा। उन पर काफी जिम्मेदारियां थीं क्योंकि परिवार में उनके अलावा 7 बहनें और 1 भाई था। दिल्ली आने के बाद उन्होंने अपने एक परिचित के यहां काम करना शुरू किया और यहां 40 रुपये रोज में काम करने लगे। पैसे कम थे तो उन्होंने डोर2डोर काम करना भी शुरू किया। हालांकि अभी भी खर्च चलाना उनके लिए मुश्किल था। फिर उन्होंने एक वकील के यहां काम करना शुरू किया जहां उनको 1500 रुपये महीना मिलते थे।
वहीं से उन्होंने वकालत का थोड़ा बहुत काम सीख लिया। वहीं काम करते हुए उन्होंने 12वीं पास की और ग्रेजुएशन का फॉर्म लगाया। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए एच. आर. खान योरस्टोरी को बताते हैं, 'मैं वकील के चेंबर में सफाई, फाइल पकड़ाने और क्लाइंट्स को चाय पिलाने का काम करता था। यहीं रहकर मैंने थोड़े बहुत काम सीख लिए। बाद में मैंने ग्रेजुएशन का फॉर्म लगाया लेकिन टाइम की कमी के कारण परीक्षा नहीं दे पाया।' साल 2000 में कैंसर के कारण उनकी मां का निधन हो गया। 2004 में उन्होंने वकील का काम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट के एक वकील के साथ काम करना शुरू किया।
वहां पर पूरे ऑफिस का काम वही करते थे और उन्हें क्लर्क का सारा काम आ गया। 2 साल बाद उन्हें वहां पर सीनियर क्लर्क बना दिया गया। इसके बाद उन्होंने एलएलबी करने के बारे में सोचा। साल 2009 में उन्होंने चौधरी चरण सिंह (सीसीएस) में बी.ए. फॉर्म भरा और साल 2012 में ग्रेजुएशन पूरी की। इसके बाद उन्होंने रॉयलखंड यूनिवर्सिटी में लॉ में एडमिशन लिया और साल 2015 में एलएलबी की। इसी दौरान 5 बहनों की शादी करने के कारण उन पर काफी कर्ज हो गया था। उन्हें झटका तब लगा जब साल 2015 में हार्ट अटैक के कारण उनके पिता की मृत्यु हो गई।
यहां से आया बदलाव
साल 2016 में उनका दिल्ली बार काउंसिल में उनका रजिस्ट्रेशन हुआ। योरस्टोरी से बात करते हुए वह कहते हैं, 'दिल्ली बार काउंसिल में मेरा रजिस्ट्रेशन होते ही मैं रोने लगा। मेरे पास बाइक थी तो मैं घर गया और बहनों को यह बात बताई तो वे भी रोने लगीं। मेरे आंसूं इसलिए भी आ रहे थे क्योंकि मेरे पास ना मेरी मां थीं और ना ही मेरे पापा। वहीं से मैंने सोचा कि मेरे जैसे कई युवा होंगे जो किसी ना किसी कारण से अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं। जब मैं मेहनत करके यहां तक पहुंच सकता हूं तो वे क्यों नहीं? यहीं से मैंने एजुकेशन फॉर यूथ नाम से संगठन खोला।'
सोशल मीडिया से शुरू किया कैंपेन
एच. आर. खान ने अपने फेसबुक अकाउंट पर एजुकेशन फॉर यूथ हैशटैग के साथ पोस्ट डालना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ते गए तो उन्होंने मेसेंजर और वॉट्सऐप ग्रुप बनाया। वे बताते हैं कि शुरुआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया, 'हमने जैतपुर और बहादुरगढ़ में दो सेंटर खोले थे। बहादुरगढ़ वाला सेंटर चल नहीं पाया और जैतपुर वाला सेंटर पैसों कमी के चलते हमें एक साल में बंद करना पड़ा। यहां तक कि मुझे अपनी पत्नी की ज्वैलरी तक बेचनी पड़ी।' वे बताते हैं कि लोग सोशल मीडिया पर मदद के लिए कहते लेकिन मदद कम ही लोग करते थे। फिलहाल उनका सेंटर शाहीन बाग में अच्छे से चल रहा है। इसके लिए उन्होंने एक 3 बीएचके फ्लैट किराए पर लिया है। यहां पर 70 बच्चे आ रहे हैं जिन्हें वे निशुल्क पढ़ाई करवा रहे हैं।
यहां की क्लास हर लेवल के बच्चे के लिए है। फिर वह 5वीं का हो या 12वीं का फिर ग्रेजुएशन लेवल का। यहां अंग्रेजी, कंप्यूटर और कॉम्पिटिशन एग्जाम्स की क्लास भी चलती हैं। बच्चों के लिए पढ़ाई बिल्कुल फ्री है सिर्फ उन्हें एक बार 100 रुपये रजिस्ट्रेशन शुल्क देना होता है। यहां पढ़ाने वाले टीचर्स में 1-2 सैलरी पर काम करते हैं और बाकी 1-2 वॉलिंटियर्स हैं। वे कहते हैं कि बच्चा चाहे 8 का हो या 60 का, हम उन्हें पढ़ाते हैं।
सहारनपुर में स्कूल खोलना है पायलट प्रोजेक्ट
वे बताते हैं कि उनका लक्ष्य एक ऐसा स्कूल खोलना है जहां हर बच्चा फ्री में पढ़ाई कर सके। उनके अच्छे कामों को देखते हुए इमाम जुबैर अहमद कासमी ने उन्हें यूपी के सहारनपुर में 5 बीघा जमीन दे दी। अब एच. आर. खान का वहां पर स्कूल खोलने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। वे बताते हैं, 'शुरुआत में ही बड़ा स्कूल खोलना हमारे लिए संभव नहीं है। इसलिए हम शुरू में 2-3 कमरों का स्कूल खोलकर चलाएंगे। यह काम अगले साल फरवरी तक पूरा हो सकता है।'
3000 किताबों की लाइब्रेरी भी चलाते हैं
स्टडी सेंटर के अलावा एच. आर. खान ने लाइब्रेरी के लिए भी कैंपेन चलाया। इसके तहत लोग किताबें डोनेट कर सकते हैं। कुछ किताबें वे खरीदते भी हैं। उन्होंने 3000 किताबों का टारगेट रखा है और अभी तक लाइब्रेरी में 1500 से अधिक किताबें आ चुकी हैं। देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों से लोग उन्हें किताबें भेज रहे हैं। एच. आर. खान को उम्मीद है कि यह लाइब्रेरी इसी साल दिसंबर के पहले या दूसरे हफ्ते में चालू हो जाएगी।
सरकार केवल 5% हेल्प कर दे
एच. आर. खान कहते हैं कि सरकार अपने स्तर पर काफी योजनाएं चलाती है। हालांकि हमें अभी तक सरकार से किसी भी तरह का सपॉर्ट नहीं मिला। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि मेरे जैसे कई लोग हैं जो समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। जितनी मेहनत हम लोग कर रहे हैं, अगर सरकार उसमें 5% भी मदद कर दे तो देश में हर बच्चे को शिक्षा पाने से कोई नहीं रोक सकता।