Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प

क्रांतिकारी कवि 'राम प्रसाद बिस्मिल' की जयंती पर विशेष...

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प

Sunday June 11, 2017 , 4 min Read

'बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से। लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से। लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी, तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।' अमर क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल की आज 11 जून को जयंती है। भारतीय हिंदी-उर्दू साहित्य में बिस्मिल के शब्द अपनी अलग अहमियत रखते हैं। उनके कई उपनाम थे- राम, अज्ञात, बिस्मिल, पण्डितजी। उन्हें छलपूर्वक गोरखपुर जेल में फांसी पर लटकाया गया था। वह कवि, लेखक, क्रांतिकारी होने के साथ ही निजी जीवन में इतने व्यवहारसिद्ध थे, कि जेल के सभी कर्मचारी उनकी इज्जत ही नहीं करते थे, बल्कि जान पर खेलकर उनकी साहित्यिक रचनाएं जेल से बाहर भेजने में उनकी मदद भी करते थे।

image


"राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान जितनी बार अपनी आत्मकथा लिखी, उतनी बार ब्रिटिश शासन ने उसे जब्त कर लिया था।"

रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में हुआ था। उनका पैतृक गाँव बरबई, मुरैना (म.प्र.) रहा है, जहां उनके भाई अमान सिंह और समान सिंह के वंशज आज भी उसी गाँव में रहते हैं। कहते हैं कि उनके दोनों हाथों की दसों उँगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी, कि यह बालक उम्रभर जिंदा रहा तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से कोई रोक नहीं सकता। माता-पिता दोनों राम के आराधक थे। अतः पुत्र का नाम रामप्रसाद रख दिया। घर में सभी लोग प्यार से उन्हें राम ही कहते थे। बचपन में वह बहुत चंचल और उद्दण्ड भी थे। बगीचे से फल तोड़ने पर उनकी कई बार पिटाई हुई थी। हिन्दी की वर्णमाला में 'उ से उल्लू' पढ़ाने का विरोध करने पर अपने पिता से भी कई बार पिटे थे। पिता की आलमारी से रुपये चुराकर साहित्य पढ़ने की उन्हें लत लग गई। बड़े होने पर जब सन 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष पं. जगत नारायण 'मुल्ला' के आदेश की धज्जियाँ बिखेरते हुए रामप्रसाद ने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकाली तो उन पर अचानक लोगों की निगाहें जा टिंकीं। वह कवि, शायर, अनुवादक और बहुभाषाविद भी थे।

ये भी पढ़ें,

बच्चन फूट-फूटकर रोए

"राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी मां से दो बार में दो-दो सौ रुपये लेकर अपनी एक पुस्तक भी प्रकाशित कराई थी, जो छपते ही जब्त हो गई थी। यह आज भी 'सरफरोशी की तमन्ना' ग्रन्थावली में संकलित और दिल्ली के तीन मूर्ति भवन पुस्तकालय सहित कई अन्य वाचनालयों में उपलब्ध है।"

बाद में राम प्रसाद बिस्मिल एक छोटे से गाँव रामपुर जागीर के जंगलों में घूमते हुए गुर्जरों की गाय-भैंस चराते रहे। वहीं रहकर उन्होंने अपना क्रान्तिकारी उपन्यास 'बोल्शेविकों की करतूत' लिखा। बाद में वेश बदलकर जीवन के घुमंतू दौर में ही उन्होंने 'द ग्रांडमदर ऑफ रशियन रिवोल्यूशन' (The grandmother of the russian revolution) का हिन्दी अनुवाद किया। सुशीलमाला सीरीज की पुस्तकें, मन की लहर (कविता संग्रह) और कैथेराइन, आदि लिखीं।

प्रताप प्रेस कानपुर से जब 'काकोरी के शहीद' नाम से उनकी आत्मकथा प्रकाशित हुई थी, तो उसे ब्रिटिश सरकार ने न केवल जब्त किया बल्कि अंग्रेजी में अनुवाद करवाकर पूरे हिन्दुस्तान की खुफिया पुलिस और जिला कलेक्टरों भेजने के बाद उन्हें खतरनाक षड्यन्त्रकारी करार दिया। यद्यपि वह आत्मकथा पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में तत्कालीन पुस्तक प्रकाशक भजनलाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस से 1927 में बिस्मिल को फाँसी दिये जाने के कुछ दिनों बाद प्रकाशित कर दी थी। बिस्मिल के लिखे आजादी के तराने आज भी हर जुबान से गूंजते रहते हैं - 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है!'

विश्व साहित्य में भी उनकी लोकप्रिय कविताओं का द्विभाषिक काव्य रूपान्तर उपलब्ध है। उन्होंने फांसी से पहले जेल से यह अपनी अंतिम रचना लिखी थी-

"मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या!

दिल की बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या!

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,

फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या!

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,

यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या!

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,

सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या!"

ये भी पढ़ें,

एक दुर्लभ पांडुलिपि का अंतर्ध्यान