सौंदर्य और अभिनय की वो मल्लिका जिन्हें कभी भद्दी नाक वाली कहकर रिजेक्ट कर दिया गया था
बॉलीवुड में माला सिन्हा उन गिनी चुनी चंद अभिनेत्रियों में शुमार की जाती हैं जिनमें खूबसूरती के साथ बेहतरीन अभिनय का भी संगम देखने को मिलता है। खूबसूरत और बड़े-बड़े कजरारे नैनों वाली बॉलीवुड अभिनेत्री माला सिन्हा की अभिनय प्रतिभा ने हर किसी को अपना दीवाना बना लिया। माला बड़ी अभिनेत्री बनीं, लेकिन किसी को उनमें जरा भी घमंड नहीं दिखा।आज भी वह सादगी भरा जीवन व्यतीत करती हैं।
एक बार माला प्रोड्यूसर के पास पहुंची तो उन्होंने कहा, इस भद्दी नाक के साथ तुम हीरोइन बनने के बारे में सोच भी कैसे सकती हो। पहले अपना चेहरा शीशे में देख लो। माला इस बात को कभी भुला नहीं पाईं। इस उद्वेगाग्नि में उन्होंने दोगुनी मेहनत से काम करना शुरू कर दिया और साबित कर दिया कि फिल्मों में एक अभिनेत्री का रोल केवल किसी सुंदर गुड़िया जितना ही नहीं होता। एक अभिनेत्री फिल्म में केवल शोीस के तौर पर ही काम नहीं करती है।
आपको बता दें कि माला सिन्हा ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी की अनुमोदित गायिका भी रह चुकी हैं। बचपन में ही गाने और नाचने में दिलचस्पी पैदा हो गई, फिर इसकी तालीम भी शुरू कर दी। ऑल इंडिया रेडियो के गायकी के पैनल में शामिल रही हैं।
माला सिन्हा, बड़े पर्दे पर कनखियों से जब वो नजरें घुमाकर देखती हैं तो लगता है मानो वीनस ग्रह की देवी ने सितार बजा दिया हो। माला सिन्हा, जब भावावेग में बहकर किसी किरदार में डूब जाती हैं तो लगता है जैसे वो किरदार ही जीवंत हो गया है। बॉलीवुड में माला सिन्हा उन गिनी चुनी चंद अभिनेत्रियों में शुमार की जाती हैं जिनमें खूबसूरती के साथ बेहतरीन अभिनय का भी संगम देखने को मिलता है। खूबसूरत और बड़े-बड़े कजरारे नैनों वाली बॉलीवुड अभिनेत्री माला सिन्हा की अभिनय प्रतिभा ने हर किसी को अपना दीवाना बना लिया। माला बड़ी अभिनेत्री बनीं, लेकिन किसी को उनमें जरा भी घमंड नहीं दिखा। आज भी वह सादगी भरा जीवन व्यतीत करती हैं। सन् 1950 से 1960 के दशक की इस अभिनेत्री से कोई मिले तो बातचीत में वह आज भी उसे वही ताजगी का अहसास कराती हैं और मन मोह लेती हैं। आज की नई अभिनेत्रियां उनसे काफी कुछ सीखकर अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। माला सिन्हा ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी की अनुमोदित गायिका रह चुकी हैं। बचपन में ही गाने और नाचने में दिलचस्पी पैदा हो गई, फिर इसकी तालीम भी शुरू कर दी। ऑल इंडिया रेडियो के गायकी के पैनल में शामिल रही हैं।
जब वह महज सोलह साल की थीं, तो उन्हीं दिनों आकाशवाणी के कलकत्ता (अब कोलकाता) केंद्र के स्टूडियो में लोकगीत गाया करती थीं। उन्होंने भले ही फिल्मों के लिए गीत न गाए हों, लेकिन 1947 से 1975 तक कई भाषाओं में मंच पर गायन किया। किसी जानने वाले ने माला को सलाह दी थी कि उन्हें सिंगिंग छोड़ एक्टिंग में हाथ आजमाना चाहिए। इस सलाह पर माला एक प्रोड्यूसर से मिलने गई थीं। माला प्रोड्यूसर के पास पहुंची तो उन्होंने कहा, इस भद्दी नाक के साथ तुम हीरोइन बनने के बारे में सोच भी कैसे सकती हो। पहले अपना चेहरा शीशे में देख लो। माला इस बात को कभी भुला नहीं पाईं। इस उद्वेगाग्नि में उन्होंने दोगुनी मेहनत से काम करना शुरू कर दिया और साबित कर दिया कि फिल्मों में एक अभिनेत्री का रोल केवल किसी सुंदर गुड़िया जितना ही नहीं होता। एक अभिनेत्री फिल्म में केवल शोपीस के तौर पर ही काम नहीं करती है।
होनहार बीरवान के होत चीकने पात-
उनका जन्म 11 नवंबर, 1936 को कलकत्ता के एक इसाई परिवार में हुआ। उनके माता-पिता मूल रूप से नेपाल के रहने वाले थे। माला के जन्म से पहले ही वे कलकत्ता आकर बस गए। बचपन में माला का आलडा रख गया था, लेकिन उनकी सहेलियां व दोस्त उन्हें डालडा (वनस्पति तेल का एक ब्रांड) कहकर चिढ़ाते थे। बेटी को परेशान देख माता-पिता ने नाम बदलकर माला रख दिया। माला सिन्हा को बचपन से ही गीत और नृत्य में बड़ी दिलचस्पी थी। माला सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत एक बांग्ला फिल्म 'जय वैष्णो देवी' में एक बाल कलाकार के रूप में की थी। इसके बाद वह एक के बाद एक कई फिल्मों में अपनी अदाओं से दर्शकों को मोहती रहीं और नए कीर्तिमान स्थापित किए। स्कूल के एक नाटक में माला सिन्हा के अभिनय को देखकर बंगला फिल्मों के जाने-माने निर्देशक अर्धेन्दु बोस उनसे काफी प्रभावित हुए और उनसे अपनी फिल्म रोशनआरा में काम करने की पेशकश की। उस दौरान माला सिन्हा ने कई बंगला फिल्मों में काम किया।
एक बार बंगला फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में उन्हें मुंबई जाने का अवसर मिला। मुंबई में उनकी मुलाकात केदार शर्मा से हुई जो उन दिनों रंगीन रातें के निर्माण में व्यस्त थे। उन्होंने माला सिन्हा को अपनी फिल्म के लिए चुन लिया। माला सिन्हा को 1954 में प्रदीप कुमार के साथ बादशाह और हैमलेट जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला लेकिन दुर्भाग्य से उनकी दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर विफल साबित हुई। माला सिन्हा के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त की 1957 में प्रदर्शित क्लासिक फिल्म प्यासा से चमका। इस फिल्म की कामयाबी ने माला सिन्हा को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया।
जेंडर इक्वैलिटी की बेहतरीन मिसाल-
महान अभिनेता दिलीप कुमार के साथ अभिनय करना किसी भी अभिनेत्री का सपना हो सकता है लेकिन माला सिन्हा ने उनके साथ फिल्म राम और श्याम में काम करने के लिए इसलिए इंकार कर दिया कि वह फिल्म में अभिनय को प्राथमिकता देती थीं न कि शोपीस के रूप में काम करने को। माला सिन्हा ने राजकपूर के साथ परवरिश और फिर सुबह होगी, देवानंद के साथ लव मैरिज और शम्मी कपूर के साथ फिल्म उजाला में हल्के फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। 1959 में प्रदर्शित बीआर चोपड़ा निर्मित फिल्म धूल का फूल के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में माला सिन्हा के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गयी। धूल का फूल, निर्देशक के रूप में यश चोपड़ा की पहली फिल्म थी। 1961 में माला सिन्हा को एक बार फिर से बीआर चोपड़ा की ही फिल्म धर्मपुत्र में काम करने का अवसर मिला जो उनके सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इसके बाद 1963 में माला सिन्हा ने उनकी सुपरहिट फिल्म गुमराह में भी काम किया।
हिन्दी फिल्मों के अलावा माला सिन्हा ने अपने दमदार अभिनय से बंगला फिल्मों में भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। 1958 में प्रदर्शित बंगला फिल्म लुकोचुरी माला सिन्हा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्हें किशोर कुमार के साथ काम करने का मौका मिला। बंगला फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में यह फिल्म सर्वाधिक हास्य से परिपूर्ण सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है। आज भी जब कभी कोलकाता में छोटे पर्दे पर यह फिल्म दिखाई जाती है तो दर्शक इसे देखने का मौका नहीं छोड़ते। 1966 में माला सिन्हा को नेपाली फिल्म माटीघर में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात फिल्म के अभिनेता सीपी लोहानी से हुई। फिल्म में काम करने के दौरान माला सिन्हा को उनसे प्रेम हो गया और बाद में दोनों ने शादी कर ली। माला सिन्हा ने लगभग 100 फिल्मों में काम किया है।
ये भी पढ़ें- शम्मी कपूर! तुमसा नहीं देखा