अर्जुन पुरस्कार पाने वाले भारतीय टीम के कप्तान ने कहा- भारत में भी शुरू हो एनबीए जैसी पेशेवर लीग
भारतीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान ने वर्ष 2001 में नौ साल की उम्र में शौकिया तौर पर बास्केटबॉल खेलना शुरू किया था।
अर्जुन पुरस्कार के लिए चुने गए भारतीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान विशेष भृगुवंशी का कहना है कि भारत के खेल प्रेमी इस खेल को पसंद करते हैं और देश में अमेरिका के 'एनबीए' की तरह एक पेशेवर लीग शुरू किए जाने की जरूरत है।
विशेष ने रविवार को टेलीफोन पर 'भाषा' से कहा कि देश में खेल प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग बास्केटबॉल देखना पसंद करता है और वह अपने देश में इसकी पेशेवर लीग की कमी महसूस करता है।
उन्होंने कहा,
‘‘प्रीमियर बैडमिंटन लीग, फुटबॉल लीग और प्रो कबड्डी लीग की तर्ज पर देश में बास्केटबॉल लीग भी शुरू की जानी चाहिए। यह निश्चित रूप से सफल होगी।’’
ऑस्ट्रेलिया की नेशनल बॉस्केटबॉल लीग के 'एडिलेड थर्टी सिक्सर्स' के लिए चुने गए पहले भारतीय बास्केटबॉल खिलाड़ी विशेष ने कहा कि भारत में अगर बास्केटबॉल लीग शुरू होती है तो यह बहुत कामयाब होगी क्योंकि यह बहुत आकर्षक और तेज खेल है और इसमें 40 मिनट के अंदर ही नतीजा आ जाता है।
उन्होंने कहा,
‘‘भारत में बास्केटबॉल को पेशेवर स्तर पर कामयाब होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि भारत में अमेरिका की मशहूर लीग एनबीए काफी लोकप्रिय है। भारत में पेशेवर लीग शुरू होने से उभरते हुए खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने का अनुभव मिलेगा, जिससे देश में बास्केटबॉल की प्रतिभाएं निखर कर सामने आएंगी।’’
भारतीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान ने वर्ष 2001 में नौ साल की उम्र में शौकिया तौर पर बास्केटबॉल खेलना शुरू किया था। वर्ष 2004 में वह पहली बार भारतीय टीम के शिविर में गए तो उन्होंने इस खेल को अपना पेशा बनाने का इरादा कर लिया। उसके बाद 2006 में वह पहली बार भारतीय टीम के लिए खेले।
अर्जुन पुरस्कार के लिए चुने जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘यह पुरस्कार जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। मैं बास्केटबॉल महासंघ और उत्तर प्रदेश सरकार का शुक्रिया अदा करते हूं जिन्होंने अर्जुन पुरस्कार के लिये मेरे नाम की सिफारिश की।’’
वर्ष 2001 के बाद पहली बार किसी बास्केटबॉल खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। इसके लिए वह अपने माता पिता और कामयाबी में योगदान देने वाले हर व्यक्ति के आभारी हैं।
(सौजन्य से- भाषा पीटीआई)