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जलवायु परिवर्तन से भारत में घटेगा सेब उत्पादन, क्या सारे तरीके हो सकते हैं फेल?

जलवायु परिवर्तन से भारत में घटेगा सेब उत्पादन, क्या सारे तरीके हो सकते हैं फेल?

Wednesday July 22, 2020 , 2 min Read

भू-अभियांत्रिकी विधियों को अचानक बंद करने का परिणाम तेजी से संपूर्ण फसल विफलता के रूप में निकल सकता है।

norvergence_climate change

सांकेतिक चित्र



वाशिंगटन, जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत में सेब उत्पादन में कमी आएगी क्योंकि जलवायु से संबंधित यह स्थिति भीषण सर्दी के मौसम को प्रभावित करेगी जो सेब के पौधों के लिए आवश्यक होती है। इतना ही नहीं इस समस्या से निपटने में भू-अभियांत्रिकी विधियां भी ज्यादा काम नहीं आएंगी।


यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) ने अपने अध्ययन में हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया और रेखांकित किया कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड छिड़कने जैसी भू-अभियांत्रिकी विधियां भी उत्पादन कार्य में अस्थायी लाभ ही पहुंचा सकती हैं।


हिमाचल प्रदेश भारत का दूसरा सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य है।


एनएसएफ द्वारा जारी एक बयान में रटगेर्स विश्वविद्यालय के एलन रोबोक ने कहा,

‘‘अध्ययन के दौरान हमने पाया कि जलवायु परिवर्तन पौधों के लिए आवश्यक भीषण सर्दी के मौसम को प्रभावित कर सेब उत्पादन को कम कर देगा। भू-अभियांत्रिकी विधियों के सीमित लाभ होंगे, लेकिन यदि इस तरह की विधियों को अचानक रोक दिया गया तो विपरीत परिणाम होंगे।’’



पत्रिका ‘क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि समाज जलवायु संबंधी इस स्थिति में गर्मी से निपटने के लिए ऊपरी वायुमंडल में सल्फर डाई ऑक्साइड छिड़कने का निर्णय कर सकता है। इस तरह की भू-अभियांत्रिकी विधियां एक बड़े बादल की स्थिति बना देंगी जो कुछ हद तक सौर विकिरण को रोकेगी और धरती को ठंडा करेगी।


लेकिन यदि इस तरह के छिड़काव को अचानक रोक दिया गया तो इसका जानवरों तथा पौधों पर काफी नकारात्मक असर पड़ेगा और जानवर जीवित रहने के लिए किसी उपयुक्त ठिकाने की ओर पलायन करने को विवश होंगे।


अध्ययन में कहा गया,

‘‘ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए वातावरण में सल्फर डाई ऑक्साइड का छिड़काव अस्थायी रूप से और हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन को आंशिक लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है।’’

इसमें कहा गया कि इसके अलावा, भू-अभियांत्रिकी विधियों को अचानक बंद करने का परिणाम तेजी से संपूर्ण फसल विफलता के रूप में निकल सकता है।


रोबोक ने कहा कि अध्ययन विश्व के एक हिस्से में एक फसल के लिए जलवायु परिवर्तन तथा भू-अभियांत्रिकी परिदृश्य के संबंध में किया गया, इसलिए अन्य अध्ययन किए जाने की भी आवश्यकता है।