परंपरा के नाम पर वेश्यावृत्ति करने को मजबूर दिल्ली की ये 'बहुएं'
दिल्ली! भागती-दौड़ती दिल्ली! विकास की रोशनी में चमचमाती दिल्ली! लाखों लोगों के सपनों को अपनी आंखों में जिंदा रखे दिल्ली! औरतों, मर्दो सबके बराबकी के हक की आवाज बुलंद करती दिल्ली! पैसे और शोहरत के रास्ते खोलती दिल्ली! इस चमक-धमक और दौड़ में दिल्ली का एक इलाका ऐसा भी है जो सदियों पीछे चल रहा है, रेंग रहा है... दिल्ली का नजफगढ़ इलाका...!!
यहां पर प्रेमनगर और धर्मपुरा नाम के दो अर्धशहरीय जगहों पर राजस्थान से 1964 में आकर बसी थी पेरना समुदाय की एक बड़ी आबादी। पेरना समुदाय एक घुमंतू प्रजाति है, जो घूम-घूमकर अपनी जीविका इंतजाम करती है।
पेरना समुदाय में रिवायत है कि घर की बहुओं को पहला बच्चा पैदा होने के बाद बाजार में बेच दिया जाता है। उनके ससुराल वाले और यहां तक कि उनके पति ही उनके लिए ग्राहक ढूंढकर लाते हैं।
दिल्ली। भागती-दौड़ती दिल्ली। विकास की रोशनी में चमचमाती दिल्ली। लाखों लोगों के सपनों को अपनी आंखों में जिंदा रखे दिल्ली। औरतों, मर्दो सबके बराबकी के हक की आवाज बुलंद करती दिल्ली। पैसे और शोहरत के रास्ते खोलती दिल्ली। इस चमक-धमक और दौड़ में दिल्ली का एक इलाका ऐसा भी है जो सदियों पीछे चल रहा है, रेंग रहा है। दिल्ली का नजफगढ़ इलाका। यहां पर प्रेमनगर और धर्मपुरा नाम के दो अर्धशहरीय जगहों पर राजस्थान से 1964 में आकर बसी थी पेरना समुदाय की एक बड़ी आबादी। पेरना समुदाय एक घुमंतू प्रजाति है, जो घूम-घूमकर अपनी जीविका इंतजाम करती है। इसी सिलसिले में दिल्ली में इस समुदाय के लोगों ने दिल्ली में डेरा बनाया था। वैसे तो दिल्ली हर एक को काम का मौका देती है लेकिन अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में इस समुदाय के लोग सदियों पुरानी एक अभिशप्त परंपरा ढो रहे हैं। पेरना समुदाय में रिवायत है कि घर की बहुओं को पहला बच्चा पैदा होने के बाद बाजार में बेच दिया जाता है। उनके ससुराल वाले और यहां तक कि उनके पति ही उनके लिए ग्राहक ढूंढकर लाते हैं।
विडंबना तो ये है कि ये औरतें इसी भंवरजाल में ताउम्र फंसी रहती है। उनकी आत्मा उनके शरीर के साथ तब तक चक्कर काटती रहती है जब तक या तो उनकी मौत नहीं हो जाती या फिर वो बूढ़ी होकर बीमार नहीं पड़ जाती। सबसे दुखद और दिल तोड़ने वाली बात ये है कि उनका समुदाय बड़ा ही अंतर्जातीय होती है। मतलब इस समुदाय की लड़कियों की शादी इसी समुदाय में होती है और शादी के बाद वही परंपरा के नाम पर वेश्यावृत्ति की गहरी दलदल। इस हिसाब से इस समुदाय की शायद ही किसी लड़की को इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिल पाती है। यहां के मर्दों को भी बेकारी की आदत घर कर गई है। आप किसी भी वक्त इन बस्तियों में जाएंगे तो वो दिन भर या तो शराब के नशे में चूर रहते हैं या तो ताश खेल रहे होते हैं। जहां लोग एक तरफ वेश्यावृति को कानूनी रूप देने के लिए लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा कि जो औरतें इस दलदल में हैं, क्या वो यहां रहना चाहती भी हैं या नहीं। यहां लड़कियां 10 साल की उम्र से ही रेप का शिकार हो रही हैं। उनके पास इसमें कोई च्वाइस ही नहीं।
हर तरफ अंधकार ही अंधकार-
रिसर्च साइट पैसिफिक स्टैंडर्ड ने इस समुदाय के बारे में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है। रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि इस समुदाय में पति अपनी पत्नियों से सेक्स वर्क करवाते हैं और पैसे अपने पास रखते हैं। अगर दिल्ली में दुष्कर्म होता है, हर कोई विरोध में उठ खड़ा होता है, लेकिन इन महिलाओं के साथ हर रोज रेप होता है और इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। रिपोर्ट में यह पहलू भी सामने आया है कि इस समुदाय की कुछ महिलाओं ने रोजगार नहीं मिलने की स्थिति में यह पेशा अपनाने का फैसला लिया है, हालांकि ऐसी महिलाएं इससे मुक्ति भी पाना चाहती हैं। पैसिफिक स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में एक महिला की कहानी शामिल की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, पेरना समुदाय की यह महिला रोजाना 2 बजे घर से इस काम के लिए रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के पास निकलती है। सुबह 7 बजे वापस आती है और फिर घर का सारा काम उसे ही करना पड़ता है। 17 साल की उम्र यानी नाबालिग रहने के दौरान उसकी शादी हुई थी। पति की वह दूसरी पत्नी है। शादी के दो साल बाद उसे यह काम अपनाना पड़ा। एक लड़की बताती है कि उसके पति हर रात उसे कम से कम 5 ग्राहकों के सामने पेश करते है। कई बार छापा भी पड़ा है तो पुलिस सिपाहियों ने भी उनका यौन शोषण किया। उसने आगे बताया कि रात भर वासना की चक्की में पिसने के बाद वह 6 बच्चों के लिए खाना बनाती है और दिन भर में कुछ ही घंटों की नींद मिल पाती है।
जब खिली रोशनी की एक किरण
न जाने कितनी सरकारें आई, कितनी गईं। दिल्ली कहां से कहां पहुंच गई लेकिन किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने इन लोगों की सुधि नहीं ली। दिल्ली के सीएम आवास से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर बसा नजफगढ़, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर से 31 किलोमीटर की दूरी पर बसा नजफगढ़, देश की संसद से तकरीबन 31 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नजफगढ़। लेकिन इस नजफगढ़ के इन दो इलाकों में विकास और आजादी की रोशनी नहीं पहुंची है। वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसी पेरना समुदाय की महिलाओं को बचाने के लिए 'अपने आप' नाम की सामाजिक संस्था पिछले 4 सालों से हर संभव प्रयास कर रही है। उनकी कोशिशों में ऐसी महिलाओं को पढ़ाना, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना और आए दिन शादी के नाम पर बिकती लड़कियों को बचाना शामिल है। शुरूआत में संस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं को अपने साथ जोड़ने की थी। जिसमें एनजीओ के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए लगातार प्रयास सफल हुए और धीरे-धीरे लोगों ने अपनी बेटियों को इस संस्था द्वारा बनाए गए सेंटर पर भेजना शुरू किया। इस सेंटर पर उन्हें सिलाई, कढ़ाई और कटिंग जैसे काम सिखाए जाते हैं।
लड़कियां, महिलाएं बन रही हैं आत्मनिर्भर
इस एनजीओ के कार्यकर्ता न केवल पेरना समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करते हैं, बल्कि उन्हें सिलाई, कढ़ाई जैसे कार्य सिखाकर स्वंयरोजगार के लिए भी प्रेरित करते हैं। संस्था इन लड़कियों को तीन समूहों में बांटकर शिक्षा का इंतजाम करती है। ये वर्गीकृत समूह हैं; महिला मण्डल, किशोरी मण्डल, बाल मण्डल। हर समूह में 10 लड़कियां होती हैं। एनजीओ के साथ जुड़े कार्यकर्ता समय-समय पर समुदाय के बीच जाकर काउंसलिंग करते हैं। महिलाओं को उनके अधिकारों, विभिन्न योजनाओं और उनके लिए बने कानूनों के बारे में बताते हैं। अपने आप की एक कार्यकर्ता बताती हैं, अक्सर लड़कियां मुंह छिपा कर बैठी रहती थीं। मजबूरी में वह अपने छोटे भाई-बहनों को गोद में लेकर सेंटर आती थीं, लेकिन धीरे-धीरे न केवल लड़कियों ने सीखना शुरू किया बल्कि उनके स्वभाव में भी शालीनता आई। उनके बोलने के तरीके से लेकर काम के प्रति रवैया, सभी में बदलाव आया है। घर को चलाने के लिए वेश्यावृत्ति को एक व्यवसाय की तरह अपना चुकी इन महिलाओं के लिए यह एक मजबूरी बन गई है। न चाहते हुए भी वह यह सब कर रही हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद ऐसी लड़कियां भी हैं जो 'अपने आप' के सहारे अंधेरी दुनिया से बाहर निकलना चाहती हैं। जिनके मन में एक उज्जवल भविष्य का सपना है। वह एक मुकाम हासिल करने के लिए रोजाना सेंटर आती हैं। जिनकी लगन और मेहनत एनजीओ के लिए पेरना समुदाय के भविष्य को सुधारने के लिए एक आशा की किरण है।
इन लड़कियों के सपनों को साकार करने के लिए मशहूर फैशन डिज़ाइनर मयंक मानसिंह कौल भी सहयोग कर रहे हैं। मयंक ने अपने ब्रांण्ड के लिए इन लड़कियों से कपड़े बनवाने का प्रोजेक्ट शुरू किया है। जिसने इन मासूमों की उड़ान को नए पंख दिए हैं। प्रेम नगर की रहने वाली पेरना समुदाय कि 16 वर्षीय किरन (बदला हुआ नाम) ने बताया कि मैं अपना बुटीक खोलना चाहती हूं। हम पांच भाई-बहन हैं। मैनें अपनी पढ़ाई पांचवी में ही छोड़ दी क्योंकि घर में पैसे नहीं थे। अब मैं और मेरी बहन मिलकर घर पर भी सिलाई कर लेते हैं। अब जब सेंटर की छुट्टी होती है तो घर पर अच्छा नहीं लगता।
हमें आशा ही नहीं वरन विश्वास है कि ज्यादा से ज्यादा सुधी जनों का ध्यान पेरना समुदाय की औरतों की दुर्दशा पर जाएगा। गुलामी का जो दंश वो सदियों से झेल रही हैं उस की गांठ जल्द से जल्द कटेगी। एनजीओ अपने आप इस दिशा में काफी अच्छा काम कर रहा है। सरकारी हुक्मरानों और महिला आयोग को इस ओर ध्यान देने और उनकी बेहतरी के लिए कदम उठाने की अतिशीघ्र आवश्यकता है।
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