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स्थानीय भाषाओं में अध्ययन सामाग्री उपलब्ध कराता है ‘ऑनलाइन तैयारी’

स्थानीय भाषाओं में अध्ययन सामाग्री उपलब्ध कराता है ‘ऑनलाइन तैयारी’

Monday October 24, 2016 , 6 min Read

कितने लोगों को वो पुराने दिन याद हैं जब परीक्षा के दिनों में गाइड और अध्ययन सामग्री के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती थी। इंटरनेट युग से पहले ज्यादातर छात्र परीक्षा के दिनों में एस चांद और दूसरी तरह की गाइड में घुसे रहते थे। वहीं दूसरी ओर सरकारी और दूसरी नौकरियों के लिए होने वाली परिक्षाओं के किताबों की खोज करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होता था।

अब हालात बदल गये हैं। ‘ऑनलाइन तैयारी’ एक ऐसा प्लेटफॉर्म और ऐप है जो शिक्षा से जुड़ी सामग्री खोजने का आसान तरीका है। ये व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग सेवाएं, एसएससी, गेट, सिविल सर्विस, एनडीए, रेलवे और राज्य स्तर पर निकलने वाली नौकरियों की तैयारी में मददगार साबित होता है।

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‘ऑनलाइन तैयारी’ के सह-संस्थापक और सीईओ विपिन अग्रवाल का कहना है कि “हर साल तीन करोड़ से ज्यादा लोग विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षा में हिस्सा लेते हैं, इनमें से कुछ ही लोग होते हैं जिनको गुणात्मक स्तर की अध्ययन सामग्री देशी भाषा में मिल पाती है। ऑनलाइन तैयारी एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म है जहां पर बहुत ही सरल और आसान तरीके से शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।” विपिन को ‘ऑनलाइन तैयारी’ का आइडिया साल 2014 में तब आया जब वो सलाहकार के तौर पर नेसकॉम फॉउंडेशन के लिए के लिए नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन के तहत चलाये जा रहे कार्यक्रम ‘दिशा’ लिए काम कर रहे थे। इस मिशन का उद्देश्य भारतीयों को कैसे कंम्प्यूटर चलाया जाता है ये सिखाना है। इस दौरान विपिन गुडगांव के एक गांव में गये जहां पर उन्होने देखा कि लोग कम्प्यूटर चलाने में शर्माते हैं। गांव के लोगों के साथ बातचीत में उनको पता चला कि गांव के कई युवाओं की नौकरी हाथ से इसलिये चली गई क्योंकि वो ऑनलाइन गतिविधियों से वाकिफ नहीं थे, वहीं दूसरी ओर उनको इस बात से आश्चर्य हुआ कि वहां के ज्यादार लोग स्मॉर्टफोन का इस्तेमाल कर रहे थे। बावजूद इसके वो कम्प्यूटर चलाने और ऑनलाइन गतिविधियों को सीखने के लिए खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे। तब विपिन की मदद को आगे आये उनके दोस्त भोला मीना जो उनके साथ आईआईटी-के में साथी छात्र थे और वो भी इसी तरह की दिक्कत को दूर करने में जुटे थे। इसलिए दोनों ने एक बार फिर हाथ मिलाया और फैसला लिया कि वो ‘ऑनलाइन तैयारी’ नाम से मोबाइल पर काम करने वाला एक प्लेटफॉर्म तैयार करेंगे।

ऑनलाइन तैयारी’ की टीम जमीनी स्तर पर ही समस्याओं को सुलझाने में विश्वास करती है। जरूरी होने पर यह कारोबार के लिए यूनिक मांडल भी उपलब्ध कराते हैं। जब इन्होने काम शुरू किया था तब ये जानते थे कि शिक्षा का प्रसार कैसे मोबाइल के दवार् किया जा सकता है। इसके अलावा वो ये भी जानते थे कि अध्ययन सामग्री को भारतीय भाषाओं में वितरित करना है। ताकि लोग अपनी परीक्षा की तैयारी और मांडल बनाने में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें। टीम देखती थी कि छात्रों की जरूरते क्या हैं इसके लिए उन्होने एक ऐसा केंद्रीय मॉडल बनाया जो कि उनकी सोच को प्रदर्शित कर सके।

ऑनलाइन तैयारी’ शिक्षा सामग्री को व्यवहारिक रूप से बाजार में उपलब्ध कराती है। इनका ऐप अंग्रेजी, हिंदी, और मराठी में उपलब्ध है और शीघ्र ही इसमें और भाषाओं को जोड़ा जाएगा। इनमें से एक यूजर नरेन्द्र कुमार बताते हैं कि कैसे उन्होने ‘ऑनलाइन तैयारी’ की सहायता से दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल की परीक्षा पास की, इसके लिए वो ‘ऑनलाइन तैयारी’ का आभार करते हैं।

कोर टीम के सदस्य एक दूसरे को 15 साल से जानते हैं तब ये आई आई टी कानपुर के छात्र थे। भोला और विपिन ने अलग अलग कम्पनियों में काम किया, फिर भी वे एक दूसरे के सम्पर्क में बने रहे। उन्होने सोचा था कि वो एक दिन साथ काम करेंगे और आम जनता के लिए शिक्षा का एक आसान प्लेटफार्म तैयार करेंगे। इसके लिए उन्होंने आई आई टी और आई आई एम के नेटवर्क का इस्तेमाल किया। विपिन ‘ऑनलाइन तैयारी’ शुरू करने से पहले वीसी और उद्यमी भी रह चुके थे। भोला अपना पहला टैक्सी हेलिंग एप चला चुके थे और माइक्रोसॉफ्ट इंडिया डेवलपमेंट सेंटर के टेक प्रमुख भी रह चुके थे।

विपिन का कहना है कि हमने निशित माथुर, अमित जायसवाल, और राजवीर को अपनी कोर टीम में शामिल किया और उनके हिस्से अलग अलग जिम्मेदारी सौपी। ये लोग ‘ऑनलाइन तैयारी’ ज्वाइन करने से पहले प्रमुख कॉरपोरेट कंपनियों में अपनी टीमों का नेतृत्व कर चुके थे। निशित को रणनीति बनाने और वित्तीय क्षेत्र में व्यापक अनुभव था, अमित ने जीवनसाथी और शाइन प्लेटफार्मों पर प्रौद्योगिकी टीमों का नेतृत्व किया, और राजवीर ने रैमको सिस्टम्स में सेल्स का काम किया था।

खास बात ये है कि पिछले साल दिसम्बर तक 25 लाख लोग उनके एप को डाउनलोड कर चुके थे। 2.5 लाख लोग रोजाना उनके एप को इस्तेमाल करते हैं। टीम ने शुरूआत में एम वी पी (न्यूनतम व्यवहारिक उत्पाद) शुरू करा था। इसके द्वारा वे लोगों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त कर ये जानने की कोशिश करते थे कि उनके एप को इस्तेमाल करने वाले लोग क्या चाहते हैं।

‘ऑनलाइन तैयारी’ ने पहले से ही एस चंद प्रकाशन, उपकार प्रकाशन, अरिहंत प्रकाशन, और कैरियर लांचर जैसे ब्रांडों के साथ महत्वपूर्ण साझेदारी कर रखी है। टीम ने हाल ही में 5 करोड़ रुपए अपने निवेश के लिए जुटाए हैं। ये निवेश उन्होंने 500 स्टार्टअप के मोहनदास पई से टैन्डम कैपिटल, गलोबवैसटर के, एट कैपिटल के विक्रम चचरा से, और आलोक बाजपेयी, iXiGO के सीईओ से जुटाया है। हम भारत में एक ऐसे बड़े बदलाव के गवाह बनने जा रहे हैं जिसमें 350 करोड़ लोग क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा सामग्री को अपने स्मार्टफोन में प्राप्त कर सकेगें। क्षेत्रीय भाषा में ध्यान देने की वजह से ‘ऑनलाइन तैयारी’ को आने वाले समय में ऑनलाइन क्षेत्र में बहुत लाभ होने वाला है।‘ऑनलाइन तैयारी’ टीम का उद्देश्य अगले साल के अन्त तक 15 करोड़ सक्रिय उपयोगकर्ताओं तक पहुँचने का है और यह सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होगा। विपिन का कहना है कि हम एक ऐसा स्मार्ट मंच बनाना चाहते हैं जिसके द्वारा छात्रों के व्यक्तित्व का विकास हो सके, और उन्हें वह सब कुछ मिल सकें जिसकी उन्हें जरूरत है ताकि वो अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें।

ब्लूमबर्ग के मुताबिक, भारत में ई लर्निंग का बाजार 18% की दर से बढ़ रहा है, जो कि पूरे विश्व की तुलना में दोगुना है। साथ ही भारत ई लर्निंग की क्रांति का केन्द्र भी बनता जा रहा है। इसके अलावा भारत में सबसे ज्यादा 55 फीसदी लोग ई लर्निंग के द्वारा शिक्षा ग्रहण करते हैं। आईबीईएफ की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में, भारतीय ऑनलाइन शिक्षा का क्षेत्र 2017 तक 40 बिलियन डालर तक पहुंच जाएगा। जिससे 2022 तक भारत 50 करोड़ कुशल श्रमिकों को तैयार कर सकेगा। अप्रेल 2000 और जनवरी 2015 के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आंकड़ा 1071.15 मिलियन तक पहुंच गया है।

आज, दिन ब दिन क्षेत्रिय भाषाओं की मांग बढ़ती जा रही है। भारत में आज करीब 780 भाषाएं बोली जातीं हैं जो 86 अलग अलग लिपियों में लिखी जाती हैं, 29 भाषाओं को करीब 1 करोड़ लोग बोलते हैं। संविधान द्वारा 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता प्रदान करता है। इऩ्टरनेट में अंग्रेजी की सामग्री जहां 56 प्रतिशत उपलब्ध है वहीं भारतीय भाषाओं में यह केवल 0.1 प्रतिशत है।