20 साल की उम्र से बिज़नेस कर रहा यह शख़्स, जापान की तर्ज पर भारत में शुरू किया 'कैप्सूल' होटल
199 रूपये में लग्ज़री होटल की सुविधा देने वाले रवीश रंजन...
रवीश ने सिर्फ़ 20 साल की उम्र से ही बिज़नेस करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई जगह हाथ आज़माए। उन्हें कम उम्र में बड़ी सफलता भी मिली, लेकिन वह हमेशा स्थायित्व की समस्या से जूझते रहे।
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रवीश रंजन
रवीश कहते हैं कि वह ग्राहकों को होटल में घर जैसा माहौल देने की कोशिश करते हैं। रवीश कहते हैं कि 2016 में जब यह होटल शुरू हुआ तब भारत के लिए यह कॉन्सेप्ट पूरी तरह से नया था और इसलिए शुरूआती स्तर में ग्राहकों के आकर्षित होने की संभावना भी कम थी। मूल रूप से यह कॉन्सेप्ट जापान का है।
कहते हैं कि सफलता को अगर मुंतज़िर रखना है तो राह की ठोकरों की आदत डाल लेना ही बेहतर है। कुछ ऐसी ही कहानी है, 43 वर्षीय रवीश रंजन की। रवीश ने सिर्फ़ 20 साल की उम्र से ही बिज़नेस करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई जगह हाथ आज़माए। उन्हें कम उम्र में बड़ी सफलता भी मिली, लेकिन वह हमेशा स्थायित्व की समस्या से जूझते रहे। रवीश मानते हैं कि तमाम प्रयोगों के बाद अब वह अपने बिज़नेस से संतुष्ट हैं और मानते हैं कि होटल इंडस्ट्री ही उनके स्किल सेट के हिसाब से सबसे उपयुक्त है। रवीश ने भारत की होटल इंडस्ट्री में एक नया प्रयोग किया है। उन्होंने नवंबर 2016 में, जमशेदपुर में 'पॉड ऐंड बियॉन्ड' नाम से भारत का पहला पॉड या कैप्सूल होटल शुरू किया।
रवीश के होटल में कुछ घंटों से लेकर, दिनों और महीनों तक ठहरने के अलग-अलग प्लान्स हैं। होटल में दिन में 16 घंटों तक भोजन की उपलब्धता रहती है। इतना ही नहीं, अगर आप चाहें तो ख़ुद भी खाना बना सकते हैं या फिर होटल के बाहर किसी भी जगह से खाना मंगा सकते हैं। रवीश कहते हैं कि वह ग्राहकों को होटल में घर जैसा माहौल देने की कोशिश करते हैं। रवीश कहते हैं कि 2016 में जब यह होटल शुरू हुआ तब भारत के लिए यह कॉन्सेप्ट पूरी तरह से नया था और इसलिए शुरूआती स्तर में ग्राहकों के आकर्षित होने की संभावना भी कम थी। मूल रूप से यह कॉन्सेप्ट जापान का है।
इस तरह के होटलों में छोटे-छोटे कमरे होते हैं, जिनमें सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं मौजूद होती हैं। दरअसल, किफ़ायती कीमतों पर घर से बाहर रहने की व्यवस्था के उद्देश्य के साथ इस कॉन्सेप्ट की शुरूआत हुई थी। पॉड होटल्स का कॉनसेप्ट अब धीरे-धीरे भारत में भी लोकप्रिय हो रहा है। इस साल अप्रैल में मुंबई में भी एक पॉड होटल की शुरूआत हुई है। पॉड ऐंड बियॉन्ड की टीम को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक उनका टर्नओवर 2 करोड़ रुपयों तक पहुंच जाएगा।
कभी नहीं की नौकरी, 20 साल में ही बने ऑन्त्रप्रन्योर
रवीश बिहार के समस्तीपुर में पैदा हुए। उनके पिता केके झा, बिहार इलेक्ट्रिकसिटी बोर्ड में इंजीनियर थे। रवीश बताते हैं कि उनके पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया और वह इसके लिए अपने पिता को विशेष धन्यवाद भी देते हैं। रवीश ने 1993 में दिल्ली विश्विद्यालय से राजनीतिक शास्त्र (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री ली। रवीश बताते हैं कि उन्हें कभी भी नौकरी करने की इच्छा नहीं थी। वह 20 साल की उम्र से ही ऑन्त्रप्रन्योर रहे हैं।
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ग्रैजुएशन के बाद, 1994 में ही रवीश ने अपने पिता और बैंक से लोन लेकर, कुल 6 लाख रुपए की राशि से जमशेदपुर में इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ हार्डवेयर टेक्नॉलजी की शुरूआत की। 1998 तक उनके संस्थान का टर्नओवर 56 लाख रुपयों तक पहुंच गया। रवीश बताते हैं कि इस समय तक उनके संस्थान की 4 ब्रांच हो चुकी थीं। 1999 में रवीश का यह बिज़नेस बर्बाद हो गया और वह भारी कर्ज़े में डूब गए। इन्स्टीट्यूट के अलावा भी रवीश के कई बिज़नेस थे और सभी में उनका बड़ा नुकसान हुआ। अचानक से हुए इस पतन की वजह बताते हुए रवीश खुद ही स्वीकार करते हैं कि कम उम्र में बड़ी सफलता ने उन्हें घमंडी बना दिया और इस वजह से ही उनका बिज़नेस डूब गया।
असफलता ने रखी सफलता की नींव
रवीश 1999-2002 के बीच के समय को याद करते हुए कहते हैं कि यह दौर कठिनाइयों से भरा रहा और इसमें ही उन्होंने बहुत कुछ सीखा। रवीश ने तमाम बाधाओं के बावजूद अपने बिज़नेस को समेटा ज़रूर, लेकिन किसी को भी बंद नहीं किया। 2002 के बाद रवीश के हालात फिर से सुधरने लगे और इस बार उन्होंने पहले जैसी कोई ग़लती नहीं की। 2007-08 तक उनके कन्सलटेंसी बिज़नेस का टर्नओवर 6 करोड़ रुपयों तक पहुंच गया। चारों महानगरों समेत अन्य कई शहरों में उनके ऑफ़िस शुरू हो गए। उतार-चढ़ाव तो जीवन का हिस्सा हैं और सब कुछ एक जैसी गति से कभी नहीं चलता।
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पॉड एंड बियॉन्ड की टीम
रवीश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिज़नेस फिर से अपने पैरों पर खड़ा ही हुआ था, उनकी पत्नी गर्भवती हो गईं और रवीश ने अपना पूरा समय परिवार को देना उचित समझा। उनकी गैरमौजूदगी में उनका काम फिर से नुकसान में जाने लगा। उनके ऊपर कर्ज़ भी लगातार बढ़ने लगा। रवीश का यह संघर्ष अगले तीन सालों तक जारी रहा। 2011 में उन्होंने मुंबई जाकर फ़िल्म प्रोड्यूसर बनने का फ़ैसला लिया। उनकी पत्नी इस निर्णय के ख़िलाफ़ थीं, लेकिन वह फिर भी मुंबई गए। काम कुछ जमा नहीं और वह 2013 में जमशेदपुर वापस लौट आए। 2014 तक उनके कन्सलटेंसी बिज़नेस के 16 ऑफ़िस बंद हो चुके थे। इतने ख़िलाफ़ हालात में भी रवीश ने एक बार फिर से ख़ुद को समेटा और नए कॉन्सेप्ट के साथ होटल बिज़नेस की शुरूआत की।
क्या है प्लानिंग?
रवीश का लक्ष्य है कि 2020 तक 40 अलग-अलग लोकेशन्स तक होटल की चेन को बढ़ाया जाए। कंपनी की योजना है कि एनसीआर, बेंगलुरु, पुणे, रांची, कोलकाता जैसे शहरों के साथ-साथ तीर्थ स्थलों जैसे कटरा, शिरडी, तिरुपति और गया तक बिज़नेस को बढ़ाया जाए और 100 करोड़ के सालाना टर्नओवर का आंकड़ा छुआ जा सके।
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