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समाज के लिए बेहतर काम करने वालों का कैसे हो आकलन?

“कुछ प्रभाव गुणसूचक होते हैं, जैसे आत्मसम्मान या स्वाभिमान-और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों के सामने यह प्रश्न होता है कि इन गुणसूचक प्रभावों की गणना कैसे की जाए।“

समाज के लिए बेहतर काम करने वालों का कैसे हो आकलन?

Wednesday July 22, 2015 , 7 min Read

(नीचे दिया गया आलेख डॉ. पथिक पाठक (डाइरेक्टर सोशल एंटरप्राइज़ और यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथैम्पटन, यू के के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम्स के एक डाइरेक्टर) और Zoe Schlag (IDEX फेलो और Unltd India के इन्क्यूबेशन एसोसिएट) द्वारा मिलकर लिखा गया है।)

सामाजिक उपक्रम के क्षेत्र में जब भी कोई विचार-विमर्श होता है, सामाजिक प्रभाव आकलन (Social impact assessment) का प्रश्न घूम-फिरकर चर्चा में आ जाता है। हर कोई यह काम करना चाहता है लेकिन वास्तव में किसी को भी उसका हल मालूम नहीं है-कम से कम एक अर्थपूर्ण, व्यावहारिक धरातल पर, जिससे वह विभिन्न संगठनों, हितग्राहियों, निवेशकों और दूसरे साझेदारों को एक साथ सहमत और संतुष्ट कर सके। यही कारण है कि कई सालों से सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत संगठनों के पास भी प्रभाव आकलन संबंधी कोई स्थापित पद्धति नहीं है। इसलिए UnLtd India और यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथैम्पटन द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत हमने इस चुनौती का सामना करने वाले प्रथम पीढ़ी के लोगों से अर्थात शुरूआती सामाजिक उद्यमियों (startup social entrepreneurs) से बात की। कई दौर की मुलाकातों के बाद हम मुम्बई के कई शुरूआती सामाजिक उद्यमियों से बात कर चुके थे, जो किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं से सम्बंधित और महिला-उत्पीड़न, emotional intelligence और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। हमें पता चला कि जबकि उनमें से हर एक उचित मात्रा में सामाजिक प्रभाव उत्पन्न कर रहे हैं, वे नहीं जानते थे कि वह प्रभाव कितना विविधतापूर्ण और कितना व्यापक है।

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इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जो संगठन पर्यावरण संबंधी प्रभावों का आकलन करते हैं, वे मौसमों के प्रभावों के कुछ आँकड़े तो वैसे भी इकठ्ठा कर ही लेते हैं क्योंकि उनके प्रभाव-संकेतक आसानी के साथ परिमाणों को दर्शा देते हैं-जैसे कार्बन उत्सर्जन-वे जानकारियाँ, जिनकी उन्हें प्रभाव-सूचक गणनाओं के लिए आवश्यकता होती हैं, अक्सर परिचालन के दौरान ही आउटपुट डेटा के रूप में प्राप्त कर ली जाती हैं। Sampurn(e)arth का मामला कुछ ऐसा ही है, जो शुरू से अंत तक अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ हैं। उनका प्रथम प्रभाव पर्यावरण संबंधी होता है, जिसके आँकड़े वे परिचालन आउटपुट से प्राप्त कर लेते हैं और फिर जमा कार्बन उत्सर्जन की गणना करके प्रभाव का आकलन कर लेते हैं। लेकिन ज़्यादातर संगठनों में हमने पाया है कि उन्हें अधिक सूक्ष्म डेटा प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है। कुछ प्रभाव गुणसूचक होते हैं, जैसे आत्मसम्मान या स्वाभिमान-और उनके सामने यह प्रश्न होता है कि इन गुणसूचक प्रभावों की गणना कैसे की जाए।

हालांकि आद्योपांत अपशिष्ठ प्रबंधन संगठन, Sampurn(e)arth का असर मुख्य रूप से पर्यावरण से संबन्धित होता है लेकिन वे महिला कचरा बीनने वाली महिलाओं की नियुक्ति भी करते हैं। ये महिलाएँ उन्हें एक एन जी ओ, स्त्री मुक्ति संगठन (Women’s Liberation Group) द्वारा गठित ‘महिला अपशिष्ट संग्राहक संघ (federation of women waste pickers) के सौजन्य से प्राप्त होती हैं। कचरा बीनने वाली महिलाओं को नियमित, दक्षता-आधारित मेहनताना प्राप्त होता है और सम्मानजनक काम का अवसर भी, लेकिन इस प्रभाव का आकलन कार्बन उत्सर्जन में कमी के आकलन की तुलना में कई गुना कठिन है जबकि वास्तव में वह उस व्यवसाय द्वारा पैदा किए जाने वाले कुल प्रभाव का आकलन करने की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।

समाज पर होने वाले प्रभावों के आकलन में आने वाली दिक्कतों और अवरोधों के बाद कई संगठनों में हमने यह भी देखा कि वे अपने उन प्रभावों की विविधता को समझने में भी असमर्थ रहते हैं, जो खुद उनके कामों पर पड़ रहे होते हैं और शायद उससे बढ़कर, उन पर पड़ रहे होते हैं, जिनके साथ वे काम कर रहे होते हैं। सामाजिक उद्यमी अपनी अपेक्षाओं के सन्दर्भ में ही उन प्रभावों का आकलन कर पाते हैं-अर्थात उनका, जो परिवर्तन की उनकी धारणा और अपेक्षा के अनुरूप होते हैं लेकिन उनका शायद नहीं, जो वे अपने सहयोगियों पर डाल रहे होते हैं।

Open Your Arms वह संगठन है, जिसका लक्ष्य ऐसे बच्चों की साइको-सोशल समस्याओं का उपचार करना है, जिन्हें कठोर मानसिक आघात से गुजरना पड़ा है। वे नियमित रूप से ऐसे बच्चों को उन संगठनों के पास भेजते रहते हैं, जो अपनी सेवाओं द्वारा उनकी दूसरी जरूरतों को पूरा करते हैं, जैसे शारीरिक स्वास्थ्य, सामाजिक संरक्षण और शिक्षा में आने वाली दिक्कतें आदि। ऐसी भागीदारियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह प्रभावों को बड़े पैमाने पर विस्तार देने में सक्षम होती हैं और अलग-अलग संगठनों के अलग-अलग प्रभावों की तुलना में उनका सम्मिलित प्रभाव या असर कई गुना ज़्यादा और अधिक कारगर होता है और अंततः वह बच्चों को अधिक मुकम्मल और व्यापक हस्तक्षेप प्रदान करता है।

ऐसे गुँथे हुए ईकोसिस्टम्स आपस में एक-दूसरे के संदर्भों का आदान-प्रदान करते हुए काम की कुल महत्ता को अर्थात संयुक्त रूप से होने वाले कुल प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं लेकिन आकलन के दौरान अक्सर इस बात की अनदेखी की जाती है, जबकि उसे पूरी प्रक्रिया का अटूट हिस्सा होना चाहिए। परंपरागत सामाजिक प्रभाव संरचनाएँ विभिन्न प्रभावों को अलग-अलग करने पर ज़ोर देती हैं-यानी, आपने किस तरह का परिवर्तन किया है, जिसे आप सिद्ध कर सकते हैं कि आपने अकेले उसे अंजाम तक पहुँचाया है?-लेकिन यह समझने में वे नाकाम रहते हैं कि कैसे सामाजिक उद्यमी आपसी साझेदारी के ज़रिए प्रभाव में अत्यधिक वृद्धि कर सकते हैं। सारा आरोपण (attribution) का नजरिया ही बुरी तरह त्रुटिपूर्ण हो जाता है जब सामाजिक वित्त सोशल इकॉनमी को अर्थपूर्ण बनाने की बात आती है और उसे सामूहिकता, साझेदारी और आपसी लेन-देन की गतिशीलता के पक्ष में छोड़ देने की ज़रूरत है।

इसके अलावा कि सामाजिक प्रभाव आकलन को कार्यान्वित करने के लिए समुचित औज़ार और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, इस जानकारी का अभाव भी हर तरफ दिखाई देता है कि आखिर इन महंगे आकलनों की ज़रूरत क्यों है, जिनमें इतने संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। सामान्य रूप से हमने पाया कि प्रभाव आकलन करवाने की इच्छा साझेदारों की मांग द्वारा परिचालित होती है-विशेष रूप से निवेशकों और व्यापारिक साझेदारों की मांग पर। लेकिन सामाजिक प्रभाव आकलन का वास्तविक उद्देश्य और उसका अभीष्ट इन जटिलताओं में कहीं उलझकर रह जाता है।

शुरुआती सामाजिक उद्यमी शुरू के कुछ साल मुख्यतः अपने सामाजिक और आर्थिक मॉडेलों के परीक्षण में व्यतीत करते हैं। जब कि वित्तीय और परिचालन संबंधी रिपोर्टें बाद वाले यानी आर्थिक पहलू पर प्रकाश डालती हैं, प्रभाव पर नज़र रखने का काम वास्तव में पहले वाले यानी सामाजिक प्रभाव पर केन्द्रित होना चाहिए-लेकिन, दुर्भाग्य से दोनों उस तरह से एकीकृत (integrated) नहीं हैं। पाइलट्स होते हैं, परीक्षण के बारे में-यानी ‘यह मॉडेल, हाँ, या नहीं’ के स्थान पर ‘कौन से बिन्दु आवश्यक हैं, कौन से नहीं’! स्वाभाविक ही, यह ‘परीक्षण’ की मानसिकता सामाजिक उद्यमी की सफलता के लिए ज़रूरी है, अर्थात, किसी खास मॉडेल पर अधिक ज़ोर देने की जगह इस बात पर ज़ोर देना कि वह मॉडेल उस विशेष आवश्यकता की पूर्ति कर रहा है या नहीं। जिस तरह कोई सामाजिक उद्यमी अपने वित्तीय और परिचालन संबंधी प्रदर्शन पर नज़र रखता है, उसी तरह उनके लिए सामजिक प्रभाव के आकलन पर भी नज़र रखना ज़रूरी है।

सामाजिक उद्यमियों के लिए तेज़ी से और बार-बार परीक्षण करना ज़रूरी है। कुछ भी हो, सिर्फ एक गलतफहमी या प्रभावों का कोई गलत अनुमान आगे चलकर प्रभावों के विस्तार में बहुत बड़ी बाधा बन सकता है। ऐसी कोई गलतफहमी होने पर परिचालन में वृद्धि दिखाई दे सकती है लेकिन प्रभाव में उसी अनुपात में वृद्धि नहीं होगी और इसलिए सामाजिक उद्यमियों के ‘परिवर्तन के सिद्धान्त’ के अंतर्गत पूर्वानुमानों पर नियमित रूप से बार-बार सवाल खड़े किए जाने चाहिए।

इसका सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि पहले दिन से ही परीक्षण शुरू कर दिया जाए। इस बात की गारंटी नहीं है कि पहले दिन से ही आपके प्रभाव संकेतक त्रुटिहीन हों लेकिन फिर इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि आपका प्रभाव मॉडल ही पूरी तरह त्रुटिहीन हो। इसलिए, अगर सामाजिक उद्यमी इस मानसिकता के साथ प्रश्नों की शुरुआत नहीं करते तो वे बहुत जल्द अपने आपको उस परिस्थिति में पाएँगे, जिसमें बहुत से अगले स्तर वाले सामाजिक उद्यमी अपने आपको आज पा रहे हैं: एक ऐसे मॉडेल के साथ, जिस पर उनका भरोसा है, जबकि उसकी सच्चाई का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है और किसी सलाहकार (consultant) को परियोजना में शामिल करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं कि वह कोई नई प्रभाव लेखापद्धति लेकर आए, जिसका संचालन करने के लिए अभी उनकी वित्तीय और मानवीय पूंजी पर्याप्त विकसित नहीं हुई है।

लेखकों के बारे में: डॉ पथिक पाठक यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथैम्पटन, के सामाजिक उद्यम नेटवर्क के और अप्रैल 2014 से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सइन्सेज, मुंबई में शुरू होने वाले SPARK अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक उद्यम कैंप के डायरेक्टर हैं। Zoe Schlag IDEX फेलो और Unltd India में इन्क्यूबेशन एसोसिएट हैं।