सौम्यता, संजीदगी से भरा वो चेहरा... ओमपुरी!
भारतीय सिनेमा में सबसे बड़ा अभिनेता के तौर पर कभी भी किसी को देखा गया है तो वो हैं ओम पुरी साहब। उन्होंने अपनी ही तरह के कलात्मक सिनेमा को जन्म दिया था। भले ही ओम पुरी हमें छोड़कर चले गए हैं लेकिन आज भी वह हर जगह और हर रूप में चमक रहे हैं।
उनकी पहली फिल्म 1976 में आई थी। ये विजय तेंदुलकर की एक फिल्म थी, घोरीराम कोतवाल। उन्होंने जल्द ही बॉलीवुड पर भी प्रभुत्व जमा लिया और 'आर्ट' या 'समानांतर' सिनेमा के संरक्षक के रूप में जाने गए।
वह अभिनय में कुछ भी कर सकते थे, कुछ भी मतलब कुछ भी। जैसे उन्होंने समानांतर और मुख्यधारा के सिनेमा दोनों में सफल और प्रशंसित भूमिकाएं कीं, उसी तरह आसानी से वो अलग-अलग शैलियों में भी ढल गए। आप उन्हें मलमाल वीकली में एक देहाती के रूप में कॉमेडी करते हुए भी देखते हैं और कुर्बान में एक क्रूर आतंकवादी के रूप में भी।
भारतीय सिनेमा में सबसे बड़ा अभिनेता के तौर पर कभी भी किसी को देखा गया है तो वो हैं ओम पुरी साहब। उन्होंने अपनी ही तरह के कलात्मक सिनेमा को जन्म दिया था। भले ही ओम पुरी हमें छोड़कर चले गए हैं लेकिन आज भी वह हर जगह और हर रूप में चमक रहे हैं। गहरी, कमाल की आवाज़ और गहरे गड्ढे वाले उस चेहरे से वो आने वाली पीढ़ियों से सिनेमा के जिंदा रहने तक बात करते रहेंगे।
ओम पुरी का जन्म 18 अक्टूबर को हरियाणा के अंबाला में एक रेलवे अधिकारी के घर हुआ था। ओम पुरी ने फिल्म का बाकायदा अध्ययन किया था। उन्होंने फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे में पढ़ाई की थी। बाद में उन्होंने भारत के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 1973 में अध्ययन किया। वहां उन्हें नसीरुद्दीन शाह के रूप में यारों का यार मिल गए। उनकी पहली फिल्म 1976 में आई थी। ये विजय तेंदुलकर की एक फिल्म थी, घोरीराम कोतवाल। उन्होंने जल्द ही बॉलीवुड पर भी प्रभुत्व जमा लिया और 'आर्ट' या 'समानांतर' सिनेमा के संरक्षक के रूप में जाने गए। पूर्व सहपाठी और समकालीन नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी के साथ वो कलात्मक सिनेमा की मशाल थामे रहे।
एक और चीज जो मन में आती है जब आप ओम पुरी के बारे में सोचते हैं, वह है उनकी बहुमुखी प्रतिभा। वह अभिनय में कुछ भी कर सकते थे, कुछ भी मतलब कुछ भी। जैसे उन्होंने समानांतर और मुख्यधारा के सिनेमा दोनों में सफल और प्रशंसित भूमिकाएं कीं, उसी तरह आसानी से वो अलग-अलग शैलियों में भी ढल गए। आप उन्हें मलमाल वीकली में एक देहाती के रूप में कॉमेडी करते हुए भी देखते हैं और कुर्बान में एक क्रूर आतंकवादी के रूप में भी। आज तक के सबसे अच्छे क्लासिक दूरदर्शन शो, श्याम बेनेगल कृत भारत एक खोज में ओमपुरी ने जिस सजीवता से अभिनय किया था, आप सोचकर बताओ कोई वैसा कर सकता हो तो.. ओम पुरी साहब ऐसे ही थे।
यहां पर ओमपुरी की कुछ यादगार फिल्मों को विवरण दे रहे हैं जो सिनेमा प्रेमियों के दिमाग में हमेशा हमेशा रहेंगी।
'आक्रोश' (1989)-
गोविंद निहलानी के इस यादगार पदार्पण में पुरी साहब ने एक गरीब किसान का किरदार निभाया था। किसान पर अपनी पत्नी की हत्या का झूठा आरोप लगाया गया था। पूरी फिल्म में पुरी केवल फ़्लैश बैक में बोलते हैं, लेकिन अंत में वो चीख उठते हैं जब उनकी बहन का भी वही हश्र होने वाला होता है जैसा उनकी पत्नी का हुआ था।
'आरोहण' (1982)-
नक्सलबाड़ी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित ये फिल्म श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित थी। इस फिल्म में भी पुरी साहब ने एक गरीब किसान की भूमिका निभाई थी जो सिस्टम के खिलाफ लड़ते लड़ते जेल में ही मर जाता हैं। इस भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
'अर्धसत्य' (1983)-
निहालानी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने दिखाया कि कैसे बॉम्बे पुलिस का एक आदर्शवादी उप-निरीक्षक अनंत वेलंकर अपने चारों ओर फैले हुए भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए संघर्ष करता है। यहां पर सबइंस्पेक्टर की भूमिका निभाई थी ओम पुरी ने। सबसे यादगार दृश्यों में से एक में, पुरी का चरित्र स्मिता पाटिल को एक कविता लिखता है, लेकिन जैसा कि लाइनों की वास्तविकता डूबती है, उसकी आवाज़ बदल जाती है। ओम पुरी की अभिनय कला यहां निखर निखरकर आती हैं।
'जाने भी दो यारो' (1983)-
एक गंभीर अभिनेता के रूप में अपनी छवि को तोड़ने के लिए, पुरी ने कुंदन शाह के पंथ क्लासिक के साथ कॉमेडी में एक चांस लिया था। और क्या कमाल कर दिया था। स्वर्गीय कुंदन शाह के निर्देशन में बनी ये फिल्म इतनी समसमायिक है कि रिलीज के तीसियों साल बाद आज भी एकदम प्रासंगिक लगती है। इस फिल्म में पुरी ने आहूजा नामक एक भ्रष्ट संपत्ति बिल्डर की भूमिका निभाई थी।
'मिर्च मसाला' (1987)-
केतन मेहता की इस फिल्म में समानांतर सिनेमा में लगभग सभी प्रमुख नामों का अद्गभुत सम्मिलन देखा गया था। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, दीना पाठक, ओम पुरी, रत्न पाठक शाह सब थे। सामंतवाद के खिलाफ महिलाओं की जंग को क्या खूबसूरती से दिखाया गया है इस फिल्म में।
मृदुदंड (1997)-
बिहार में बेस्ड यह फिल्म गांव की शक्तियों द्वारा हिंसा के आसपास केंद्रित थी, जिसमें गांव की राजनीतिक तूफान में निर्दोष लोगों को पकड़ा जा रहा था। ओम पुरी ने एक भारी मूंछें और एक शॉल से लिपटे शख्स की भूमिका निभाई थी। ओम पुरी इस किरदार को अपना सबसे 'नाटकीय रूप से' निभाए गए किरदार के रूप में वर्णन करते हैं। आलोचकों द्वारा उनके प्रदर्शन की काफी सराहना की गई थी।
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