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उत्तराखंड की मशरूम गर्ल ने खोला 'औषधि' चाय वाला रेस्टोरेंट, तैयार की 1.2 करोड़ की 'कीड़ाजड़ी'

मशरूम गर्ल ने खोला रेस्टोरेंट, जहां दो कप चाय की कीमत है 1, 000 रूपये...

उत्तराखंड की मशरूम गर्ल ने खोला 'औषधि' चाय वाला रेस्टोरेंट, तैयार की 1.2 करोड़ की 'कीड़ाजड़ी'

Friday April 20, 2018 , 5 min Read

दिव्या का आइडिया कामयाब हुआ और काफी अच्छी मात्रा में मशरूम का उत्पादन हुआ। इससे उनका हौसला बढ़ा। दिव्या बताती हैं कि वो साल में तीन तरह का मशरूम उगाती हैं। 

टी रेस्टोरेंट में दिव्या

टी रेस्टोरेंट में दिव्या


हाल ही में दिव्या ने एक टी रेस्टोरेंट खोला है जहां बेशकीमती औषधि 'कीड़ाजड़ी' से बनी चाय परोसी जाती है। इस रेस्टोरेंट में दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। लेकिन दिव्या के यहां पहुंचने का सफर दिलचस्प है।

उत्तराखंड की दिव्या रावत पूरे प्रदेश में मशरूम गर्ल के नाम से जानी जाती हैं। वे मशरूम उगाकर अच्छी-खासी नौकरी को मात दे रही हैं और साथ ही पहाड़ के लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देकर उनकी भी जिंदगी संवार रही हैं। हाल ही में दिव्या ने एक टी रेस्टोरेंट खोला है जहां बेशकीमती औषधि 'कीड़ाजड़ी' से बनी चाय परोसी जाती है। इस रेस्टोरेंट में दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। लेकिन दिव्या के यहां पहुंचने का सफर दिलचस्प है।

उत्तराखंड राज्य जब उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो यहां आधारभूत ढांचा न होने की वजह से लोगों को रोजगार के लिए इधर उधर भटकना पड़ा। बीते कई सालों से रोजगार की तलाश में पहाड़ के कई गांव खाली हो गए। युवा भी पढ़ लिखकर दूसरे शहरों में नौकरी करने लगे। बाकी तमाम युवाओं की तरह दिव्या ने भी दिल्ली आकर सोशल वर्क की पढ़ाई की। पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने 'शक्तिवाहिनी' नाम के एक एनजीओ में नौकरी भी की। लेकिन उनके मन में हमेशा से पहाड़ के लोगों के लिए कुछ करने की सोच थी। उन्होंने गांव के लोगों को काफी आभावों में जिंदगी बिताते हुए देखा था।

दिव्या ने स्वरोजगार के अवसर तलाशने शुरू किए। उन्हें लगा कि वापस उत्तराखँड लौटना चाहिए और वह नौकरी छोड़कर अपने घर वापस आ गईं। उन्होंने गढ़वाल इलाके में कई गांवों का दौरा किया। उन्होंने देखा कि गांव के लोग जो फसल करते हैं उसमें मेहनत तो खूब लगती है, लेकिन मुनाफा कुछ खास नहीं होता है। वह बाजारों में गईं तो पता चला कि बाकी सब्जियां और अनाज तो सस्ते दामों में मिल जाते हैं, लेकिन मशरूम की कीमत सबसे ज्यादा है। उन्हें लगा कि मशरूम की खेती इन गांव वालों की जिंदगी सुधारने का जरिया हो सकता है। दिव्या को यह आइडिया रास आया और उन्होंने हरिद्वार व देहरादून में स्थित बागवानी विभाग से ट्रेनिंग ली।

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यह 2012 का वक्त था। उन्होंने अपने घर की दूसरी मंजिल पर मशरूम प्लांट स्थापित किया। दिव्या का आइडिया कामयाब हुआ और काफी अच्छी मात्रा में मशरूम का उत्पादन हुआ। इससे उनका हौसला बढ़ा। दिव्या बताती हैं कि वो साल में तीन तरह का मशरूम उगाती हैं। सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जाता है। उन्होंने बताया कि बटन एक माह, ओएस्टर 15 दिन और मिल्की 45 दिन में तैयार होता है। मशरूम के एक बैग को तैयार करने में 50 से 60 रुपये लागत आती है, जो फसल देने पर अपनी कीमत का दो से तीन गुना मुनाफा देता है

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दिव्या के पिता स्वर्गीय तेज सिंह फौज में ऑफिसर थे। दिव्या को अपने अपने राज्य उत्तराखंड से खास लगाव है इसलिए उन्होंने यहीं रहकर कुछ करने का फैसला किया था। दिव्या चाहती हैं कि पढ़े-लिखे युवा नौकरी के लिए राज्य से बाहर न जाएं। इसलिए वह तमाम युवाओं को मशरूम उगाने के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। उन्होंने 'सौम्या फूड प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड' नाम से एक कंपनी बना ली है। वह बताती हैं कि उनका मशरूम देहरादून की निरंजनपुर सब्जी मंडी और दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में बिकने के लिए जाता है। सौम्या समय-समय पर ट्रेनिंग भी देती हैं। इसके लिए वे बकायदा क्लास भी लगाती हैं। जिसमें उत्तराखंड के अलावा बाकी प्रदेश के लोग भी मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेने के लिए आते हैं।

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वह अपनी क्लास में प्रैक्टिकल के साथ ही थ्योरी भी समझाती है। दिव्या को उनके काम के लिए 2016 में राष्ट्रपति के हाथों नारीशक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। आज दिव्या का टर्नओवर लाखों में पहुंच चुका है। दिव्या ने हाल ही में जडी बूटी कीड़ा-जड़ी से बनने वाली चाय वाले रेस्टोरेंट की शुरुआत की है। यह बेशकीमती जड़ी कैंसर, एचाआईवी, पथरी जैसे रोगों में काफी लाभदायक होती है। उन्होंने पिछले साल अपनी लैब में ही इसका उत्पादन किया था। इस बेशकीमती जड़ी से बनी दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। दिव्या ने बताया कि उन्होंने दो महीने में 60 किलोग्राम कीड़ा जड़ी तैयार करवाया जिसकी मार्केट कीमत लगभग 1.20 करोड़ रुपये है।

अपने लैब में कीड़ा जड़ी बनातीं दिव्या

अपने लैब में कीड़ा जड़ी बनातीं दिव्या


दिव्या मूल रूप से चमोली गढ़वाल के कंडारा गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने अपने गांव में भी महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया और मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी। दिव्या ने गांव में खाली पड़े खंडहरों और मकानों में ही मशरूम उत्पादन शुरू किया। इसके अलावा कर्णप्रयाग, चमोली, रुद्रप्रयाग, यमुना घाटी के विभिन्न गांवों की महिलाओं को इस काम से जोड़ा। दिव्या बताती हैं उस समय प्रशिक्षण प्राप्त बहुत सी महिलाएं आज भी इस काम में लगी हैं। दिव्या ने एक तरह से उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण को एक नया आयाम दिया है। यही वजह है कि उन्हें दून की मशरूम गर्ल के नाम से जाना जाता है। अगर किसी को दिव्या से मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेनी है तो वह उनके फोन नंबर 7409993860 पर सिर्फ वॉट्सऐप के जरिए संपर्क कर सकता है।  

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