आईएएस अफसर की पत्नी गरीब बच्चों के लिए सरकारी बंग्ले में चलाती हैं क्लास
लखनऊ में एक महिला ने सड़क पर अपनी जिंदगी गुजारने वाले बच्चों की जिंदगी संवारने का फैसला लिया है। उन महिला का नाम सीमा गुप्ता है जो कि आईएएस अफसर जितेंद्र कुमार की पत्नी भी हैं।
इस मुहिम की प्रेरणा सीमा को हिचकी फिल्म देखकर मिली। उस फिल्म में हिचकी की बीमारी और गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को दिखाया गया था। सीमा ने फैसला लिया कि वे उन बच्चों के लिए काम करेंगी जो सुख सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
देश में गरीबी का यह आलम है कि करोड़ो लोग अपना पेट पालने के लिए दिन रात मेहनत करते रहते हैं। वैसे मेहनत मजदूरी करने वाले लोग कभी भूखे नहीं सोते, लेकिन दुखद बात यह होती है कि उनके काम में बच्चों को भी अपना हाथ लगाना पड़ता है। आपको महज कुछ रुपयों के लिए ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते, खिलौने बेचते बच्चे दिख जाएंगे। अधिकतर इन बच्चों का आशियाना सड़क के किनारे ही होता है। यह उनकी रोज की दिनचर्या होती है।
लेकिन लखनऊ में एक महिला ने सड़क पर अपनी जिंदगी गुजारने वाले बच्चों की जिंदगी संवारने का फैसला लिया है। उन महिला का नाम सीमा गुप्ता है जो कि आईएएस अफसर जितेंद्र कुनमार की पत्नी भी हैं। सीमा लखनऊ के एक बड़े बंग्ले मं रहती हैं जहां उन्हें सारी सुख सुविधाएं हासिल हैं। इस मुहिम की प्रेरणा सीमा को हिचकी फिल्म देखकर मिली। उस फिल्म में हिचकी की बीमारी और गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को दिखाया गया था। सीमा ने फैसला लिया कि वे उन बच्चों के लिए काम करेंगी जो सुख सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
अगर आप सीमा के लखनऊ के विभूति खंड स्थित घर जाएंगे तो वहां आपको 25 बच्चे पढ़ते, खेलते, खाते पीते दिख जाएंगे। नवभारत टाइम्स से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वह बच्चों को केवल पढ़ाती ही नहीं हैं बल्कि उन्हें खाने-पीने और कपड़े भी देती हैं। बच्चों की कक्षाएं सीमा के गार्डन में ही चलती हैं जहां सीमा बच्चों को पढ़ाती हैं। इतना ही नहीं सीमा की सोच से प्रभावित होकर उनके आईएएस पति ने अपनी प्राइवेट कार और ड्राइवर को भी इस काम में लगा दिया। अब उनकी कार बच्चों को उनके घर से बंग्ले तक लाती है और उन्हें वापस भी छोड़ने जाती है।
इस अनोखे स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे आदित्य ने कहा कि 'मैडम' उसके लिए सिर्फ टीचर नहीं बल्कि मां के जैसी हैं। सीमा ने अपने पति जितेंद्र से गुजारिश भी की कि इन बच्चों को अच्छे स्कूल में एडमिशन भी मिले ताकि उनका भविष्य संवर सके। वह रोज सुबह नाश्ता करने के बाद वह क्लास में पहुंच जाती हैं। वहां दोपहर तक बच्चों को पढ़ाती हैं। दोपहर में एक बजे लंच होता है। वह इन बच्चों को खाना देते समय महसूस करती हैं कि भगवान को भोग लगा रही हैं। सीमा कहती हैं कि उनकी कोशिश इन 25 बच्चों की जिंदगी बदलने की है और वे इस काम में पूरी तल्लीनता से लगी हुई हैं।
यह भी पढ़ें: मुंबई की इस कॉन्स्टेबल ने सेफ्टी का ख्याल छोड़ ईमानदारी से निभाई अपनी ड्यूटी