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नक्सल इलाके के युवाओं को रोजगार देने के लिए संतोष ने छोड़ी मैनेजमेंट की नौकरी

नक्सल इलाके के युवाओं को रोजगार देने के लिए संतोष ने छोड़ी मैनेजमेंट की नौकरी

Tuesday January 16, 2018 , 6 min Read

संतोष एक डेयरी चला रहे हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2016 में की थी। इस डेयरी में फिलहाल 100 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, जिनमें से अधिकतर 30 साल से भी कम उम्र के युवा और नक्सल प्रभावित दलमा गांव के आदिवासी हैं।

संतोष (दाएं तस्वीर सांकेतिक)

संतोष (दाएं तस्वीर सांकेतिक)


संतोष न सिर्फ अपने डेयरी स्टार्टअप के बिजनस को बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह अध्यापन और मोटिवेशनल स्पीकिंग का काम भी कर रहे हैं। संतोष अभी तक दो किताबें (नेक्स्ट वॉट इज इन और डिजॉल्व द बॉक्स) भी लिख चुके हैं।

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब, अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह पहले भी बहुत से लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत थे और आज भी हैं। उनसे प्रेरणा लेकर न जाने कितने लोगों ने अपनी जिंदगी तो बदली ही साथ ही दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए बहुत कुछ किया। यह कहानी है एक वक्त में मैनेजमेंट इंडस्ट्री से जुड़े संतोष शर्मा की, जिन्होंने कलाम साहब से प्रभावित होकर न सिर्फ अपने लिए लीक से हटकर व्यवसाय चुना, बल्कि कई जरूरतमंद लोगों के लिए रोजगार भी पैदा किया। 

अभी संतोष एक डेयरी चला रहे हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2016 में की थी। इस डेयरी में फिलहाल 100 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, जिनमें से अधिकतर 30 साल से भी कम उम्र के युवा और नक्सल प्रभावित दलमा गांव के आदिवासी हैं। झारखंड के जमशेदपुर के रहने वाले संतोष की कंपनी का नाम है, इंडिमा ऑर्गेनिक्स प्राइवेट लिमिटेड। 2016-17 में कंपनी का टर्नओवर 2 करोड़ रुपए था। संतोष ने 80 लाख रुपए के निवेश और 8 जानवरों के साथ अपने डेयरी फार्म की शुरूआत की थी, जिनकी संख्या अब बढ़कर 100 तक पहुंच गई है।

नक्सल-इलाकों के युवाओं के लिए मददगार

जमशेदपुर से 35 किमी. दूर, दलमा वन्यजीव अभयारण्य का इलाका है, जो एक नक्सल-प्रभावित क्षेत्र है। इस इलाके में रहने वाले युवाओं के लिए रोजगार की संभावना लगभग न के बराबर होती है। ऐसे में 40 वर्षीय संतोष का यह डेयरी स्टार्टअप, युवाओं को रोजगार का अवसर दे रहा है।

सिर्फ डेयरी नहीं चलाते, ये सब भी करते हैं संतोष

संतोष न सिर्फ अपने डेयरी स्टार्टअप के बिजनस को बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह अध्यापन और मोटिवेशनल स्पीकिंग का काम भी कर रहे हैं। संतोष अभी तक दो किताबें (नेक्स्ट वॉट इज इन और डिजॉल्व द बॉक्स) भी लिख चुके हैं। वह आईआईएम जैसे शीर्ष प्रबंधन संस्थानों में जाकर विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं।

मां थीं संतोष की पहली प्रेरणा

संतोष के पिता जी टाटा मोटर्स में एक सामान्य सी नौकरी करते थे और परिवार चलाने के लिए उनकी आय पर्याप्त नहीं थी। संतोष के पैदा होने के एक साल बाद (1978) ही उनके पिता रिटायर हो गए थे। संतोष की मां वापस गांव नहीं जाना चाहती थीं, क्योंकि वहां पर पढ़ने-लिखने के लिए अच्छे संसाधन नहीं थे। पिता के रिटायरमेंट के बाद मां ने परिवार की अर्थव्यवस्था संभालने का जिम्मा लिया और आपसी व्यवहार से मिली पड़ोसी की गाय को उन्होंने पालना शुरू किया। उन्होंने गाय का दूध बेचना शुरू कर दिया।

संतोष बताते हैं कि वह भी अपने पिता और भाइयों के साथ लोगों के घरों पर जाकर दूध बेचा करते थे। संतोष ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि वह स्कूल यूनिफॉर्म में ही अपने दोस्त के घर दूध पहुंचाते थे और उसके बाद उसकी ही कार में बैठकर स्कूल जाते थे। मेहनत रंग लाई और संतोष के परिवार का यह व्यवसाय चल निकला और परिवार की माली हालत बेहतर होने लगी। 12वीं के बाद संतोष दिल्ली चले गए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से उन्होंने बी. कॉम (ऑनर्स) और उसी के साथ-साथ कॉस्ट अकाउंटेंसी में एक कोर्स भी किया। संतोष की पहली नौकरी कार ब्रैंड मारुति में लगी। 2003 में संतोष ने नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विस में जाने के उद्देश्य के साथ वह जमशेदपुर लौट आए।

डेयरी में संतोष (फोटो साभार- द वीकेंड लीडर)

डेयरी में संतोष (फोटो साभार- द वीकेंड लीडर)


सिविल परीक्षाओं की तैयारी करते-करते संतोष ने 2004 में जमशेदपुर स्थित एक मल्टीनैशनल बैंक, बतौर ब्रांच मैनेजर जॉइन कर लिया। इस साल ही जमशेदपुर की अंबिका शर्मा से उनकी शादी हो गई। 6 महीने बाद संतोष ने दूसरा बैंक जॉइन कर लिया। इसके बाद 2007 में वह एयर इंडिया से बतौर असिस्टेंट मैनेजर (कोलकाता) जुड़े। यहां पर उन्होंने 2011-2014 तक काम किया।

यह था टर्निंग पॉइंट

संतोष ने बताया कि उन्हें लिखना पसंद था और उनकी पहली किताब 2012 में प्रकाशित हुई थी। 2014 में उनकी दूसरी किताब आई, जो काफी सफल भी हुई। इसके बाद वह बड़े-बड़े प्रबंधन संस्थानों में भाषण देने के लिए जाने लगे। इस क्रम में ही उनकी मुलाकात पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम से हुई। 2013 में एक बार कलाम साहब ने उन्हें निमंत्रित किया। इस मुलाकात ने ही संतोष की जिंदगी बदल ली।

अपनी मुलाकात याद करते हुए संतोष ने बताया कि कलाम साहब उनके विचारों से काफी प्रभावित थे और उन्होंने संतोष को दिल्ली में अपने निवास पर बुलाया था। कलाम साहब ने संतोष से युवा पीढ़ी के लिए कुछ करने को कहा और दोनों के बीच देश के युवाओं की ऊर्जा को दिशा देने वाले प्रोजेक्ट्स पर साथ काम करने पर सहमति बन गई।

क्यों चुना डेयरी का बिजनस

कलाम साहब से मुलाकात के बाद संतोष ने विचार किया और पाया कि उन्हें डेयरी फार्मिंग के बारे में जानकारी है और इसलिए उन्हें इसी व्यवसाय से शुरूआत करनी चाहिए। संतोष ने 2014 में जमीन के मालिकों के साथ मिलकर काम शुरू किया। अपने काम की जानकारी देते हुए संतोष ने बताया कि उनकी डेयरी फार्मिंग में सिर्फ ऑर्गेनिक तरीकों का ही इस्तेमाल किया जाता है और इलाके में उनका काम काफी लोकप्रिय भी है।

एक प्रोग्राम में सोतोष (बाएं)

एक प्रोग्राम में सोतोष (बाएं)


कुछ घंटों के भीतर ही उनका पूरा माल बिक जाता है। साथ ही, संतोष ने आईआईटी से पढ़े अपने दो दोस्तों (कमलेश और नीरज) को भी खास धन्यवाद दिया, जिन्होंने निवेश में संतोष की मदद की थी। इसके अलावा, संतोष के रिश्तेदार राहुल शर्मा भी संतोष के साथ जुड़े हैं। जब संतोष बाकी कामों में व्यस्त रहते हैं, तब राहुल ही डेयरी का काम संभालते हैं।

संतोष के काम को मिल रहा सम्मान

संतोष को 2013 में ‘स्टार सिटिजन ऑनर’ सम्मान, 2014 में टाटा द्वारा ‘अलंकार सम्मान’ और 2016 में झारखंड सरकार द्वारा ‘यूथ आइकन’ सम्मान से नवाजा गया। संतोष अपनी नेक मुहिम को सिर्फ डेयरी तक ही सीमित नहीं रखना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि वह ग्रामीणों के लिए एक स्कूल और अस्पताल भी खोलें। संतोष कृषि और पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते हैं और उनकी अपेक्षा है कि इस काम में वह अधिक से अधिक युवाओं को जोड़ सकें। युवाओं को संदेश देते हुए संतोष कहते हैं कि आप अपने जुनून का पीछा जरूर करें, लेकिन समाज के प्रति अपने दायित्वों को जरूर ध्यान में रखें।

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