Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

आँखों की रोशनी चली गई पर सफलता की राह नहीं छोड़ी,बने दुनिया के पहले 'ब्लाइंड ट्रेडर'

अचानक आयी मुसीबत ने किये थे सारे सपने चकनाचूर...ज़िंदगी से उम्मीद और खुशियाँ हुई थी लापता...मेहनत और इच्छा-शक्ति से दी मुसीबत को मात...आशीष गोयल की कहानी से मिलती है कईयों को प्रेरणा ...

आँखों की रोशनी चली गई पर सफलता की राह नहीं छोड़ी,बने दुनिया के पहले 'ब्लाइंड ट्रेडर'

Wednesday February 18, 2015 , 8 min Read

इंसान की ज़िंदगी में मुसीबत किसी भी रूप में कभी भी आ सकती है। कई बार तो इतनी बड़ी मुसीबत आ पड़ती है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कई लोग इन मुसीबतों से इतने परेशान और हताश हो जाते हैं कि उनकी ज़िंदगी से जोश, उम्मीद , विश्वास जैसे जज़बात ही गायब हो जाते हैं। लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि अगर इंसान के हौसले बुलंद हो और उसकी इच्छा शक्ति मजबूत, तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी छोटी लगने लगती है।

मुंबई के आशीष गोयल एक ऐसे ही शख्स का नाम है जिसने बुलंद हौसलों और मजबूद इच्छा शक्ति से ऐसी ही एक अकल्पनीय और बड़ी मुसीबत को मात दी।

image


आशीष ने अपने जीवन में बड़े-बड़े हसीन और रंगीन सपने देखे थे। उसे पूरा भरोसा भी था कि वो अपनी काबिलियत के बल पर अपने सपने साकार कर लेगा। लेकिन, उसकी ज़िंदगी में एक ऐसी बड़ी मुसीबत आयी जिसकी कल्पना वो अपने सबसे बड़े दुस्स्वप्न में भी नहीं कर सकता था। ९ साल की उम्र में उसकी आँखों से रोशनी कम होने लगी। रोशनी लगातार कम होती गयी। २२ साल की उम्र में आशीष पूरी तरह दृष्टिहीन हो गया। लेकिन, उसने हार नहीं मानी और आगे बढ़ा। पढ़ाई-लिखाई की। दृष्टिहीनता को अपनी प्रगति में बाधक बनने नहीं दिया। और, आशीष ने जो कामयाबी हासिल की वो आज लोगों के सामने प्रेरणा का स्रोत बनकर खड़ी है।

आशीष गोयल का जन्म मुंबई में हुआ। परिवार संपन्न था और माता-पिता शिक्षित थे।

जन्म के समय आशीष बिलकुल सामान्य था। बचपन में उसकी दिलचस्पी पढ़ाई-लिखाई में कम और खेल-कूद में ज्यादा थी। खेलना-कूदना उसे इतना पसंद था कि उसने महज़ पांच साल की उम्र में तैरना, साइकिल चलाना, निशाना लगाना और घोड़े के सवारी करना सीख लिया था। आशीष को क्रिकेट में भी काफी दिलचस्पी थी। उसका मन करता कि वो सारा दिन क्रिकेट के मैदान में ही बिताये। लेकिन, उसका सपना था टेनिस का चैंपियन खिलाड़ी बनना।

लेकिन, जब आशीष ९ साल का हुआ तब अचानक सब कुछ बदलने लगा। सब कुछ असामान्य होने लगा। डाक्टरों ने आशीष की जांच करने के बाद उसके माता-पिता को बताया कि आशीष को आँखों की एक ऐसी बीमारी हो गयी है जिससे धीरे-धीरे उसके आँखों की रोशनी चली जाएगी। और हुआ भी ऐसे ही। धीरे-धीरे आशीष के आँखों की रोशनी कम होती गयी। टेनिस कोर्ट पर अब उसे दूसरे पाले की गेंद नहीं दिखाई देते थी। किताबों की लकीरें भी धुंधली होने लगी। धीरे-धीरे उसे पास खड़े अपने माता-पिता भी ठीक से नहीं दिखने लगे। अचानक सब कुछ बदल गया। एक प्रतिभाशाली और होनहार बालक की दृष्टि अचानक ही कमज़ोर हो गयी । आँखों पर मोटे-मोटे चश्मों के बावजूद उसे बहुत ही कम दिखाई देता था। दृष्टि कमज़ोर होने ही वजह से आशीष को मैदान से दूर होना पड़ा। खेलना-कूदना पूरी तरह बंद हो गया।

अचानक ही आशीष अलग -थलग पड़ गया। उसके सारे दोस्त सामान्य बच्चों की तरह काम-काज, पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद कर रहे थे।

लेकिन, आशीष अक्सर ठोकरें खाता, चलते-चलते गिर-फिसल जाता। सब कुछ धुंधला-धुंधला हो गया। सपने भी अन्धकार में खो गये। चैंपियन बनना तो दूर की बात मैदान पर जाना भी मुश्किल हो गया।

फिर भी आशीष ने माँ-बाप की मदद और उनके परिश्रम की वजह से पढ़ाई-लिखाई जारी रही।

बड़ी मेहनत से स्कूल की पढ़ाई पूरी कर आशीष जब कालेज पहुंचा तो उसके लिए रास्ते और भी मुश्किल-भरे हो गये। उसके सारे दोस्त और साथी अपने भविष्य और करियर को लेकर बड़ी-बड़ी योजनाएँ बना रहे थे। कोई बड़ा खिलाड़ी बनाना चाहता , तो कोई इंजीनियर। कईयों ने डाक्टर बनने के इरादे से पढ़ाई आगे बढ़ाई।

लेकिन, लगातार कमजोर होती आँखों की रोशनी आशीष की परेशानियां बढ़ा रही थी। दृष्टिहीनता की वजह से वो न खिलाड़ी बन सकता था और न ही इंजीनियर या फिर डाक्टर। उसके लिए भविष्य और भी मुश्किलों से भरा नज़र आ रहा था।

किशोरावस्था में दूसरे दोस्त जहाँ पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ मौज़-मस्ती कर रहे थे , आशीष अकेला पड़ गया था। नए सामजिक माहौल में एकाकी होकर मानसिक पीड़ा का अनुभव कर रहा था आशीष। वो अक्सर 'भगवान' से ये सवाल पूछने लगा कि आखिर उसी के साथ ऐसा क्यों हुआ ?

इसी अवस्था में आध्यात्मिक गुरु बालाजी ताम्बे के वचनों ने आशीष में एक नयी उम्मीद जगाई। उन्होंने आशीष से कहा कि समस्या को सिर्फ समस्या की तरह मत देखो , समस्या का हल निकालने की कोशिश करो। इस कोशिश से ही कामयाबी मिलेगी। आध्यात्मिक गुरु ने आशीष से ये भी कहा कि उसकी सिर्फ एक ही इन्द्रीय ने काम करना बंद किया है और शरीर के बाकी सारे अंग बिलकुल ठीक हैं। इस वजह से उसे अपने बाकी सारे अंगों का सदुपयोग करते हुए आगे बढ़ना चाहिए ना कि निराशा में जीना।

आध्यात्मिक गुरु की इन बातों से प्रभावित आशीष ने नयी उम्मीदों, नए संकल्प और नए उत्साह के साथ काम करना शुरू किया।

आशीष ने दृष्टिहीनता पर अफ़सोस करने के बजाय जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल करने की ठान ली। दृष्टिहीनता के बावजूद आशीष ने नए सपने संजोये और उन्हें साकार करने के लिए मेहनत करना शुरू किया।

आशीष के माता-पिता के अलावा एक और बहन ने पढ़ाई में उसकी मदद की। ये बहन आगे चलकर डर्मिटोलॉजिस्ट बनीं। बिज़नेस, इकोनॉमिक्स और मैनेजमेंट की पढ़ाई में आशीष की मदद करते करते ये बहन भी इन विषयों की जानकार बन गयी।

लेकिन, आशीष की दूसरी बहन गरिमा भी उसी बीमारी का शिकार थी जिसने आशीष की आँखों की रोशनी छीनी थी। आशीष की तरह ही गरिमा ने भी अपने परिवारवालों की मदद से पढ़ाई-लिखाई जारी रखी और आगे चलकर लेखक-पत्रकार बनीं। गरिमा अब आयुर्वेदिक डाक्टर हैं और इन दिनों आध्यात्मिक गुरु बालाजी तांबे की संस्था में काम कर रही हैं।

ये आशीष की मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि उसने मुंबई के नरसी मोनजी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज की अपनी क्लास में सेकंड रैंक हासिल किया। आशीष को उसके शानदार प्रदर्शन के लिए डन एंड ब्रैडस्ट्रीट बेस्ट स्टूडेंट अवार्ड दिया गया। लेकिन, नरसी मोनजी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज में प्लेसमेंट के दौरान एक कॉर्पोरेट संस्था के अधिकारियों ने आशीष को सरकारी नौकरी ढूंढने की सलाह दी थी। इन अधिकारियों का कहना था कि केवल सरकार नौकरियों में विकलांग लोगों के लिए आरक्षण होता है। चूँकि आशीष को अपने आध्यात्मिक गुरु की बातें याद थीं वो निराश नहीं हुआ और अपने काम को आगे बढ़ाया। आशीष को उसकी प्रतिभा के बल पर आईएनजी वैश्य बैंक में नौकरी मिल गयी। लेकिन , इस नौकरी ने आशीष को पूरी तरह से सन्तुष्ट नहीं किया। वो ज़िंदगी में और भी बड़ी कामयाबी हासिल करने के सपने देखने लगा।

आशीष ने नौकरी छोड़ दी और उन्नत स्तर की पढ़ाई के लिए अमेरिका के व्हार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस में दाखिल लिया। बड़े और दुनिया-भर में मशहूर इस शैक्षणिक संस्थान से आशीष ने एमबीए की पढ़ाई की। महत्वपूर्ण बात ये है कि व्हार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस में दाखिला पाना आसान बात नहीं है। अच्छे से अच्छे और बड़े ही तेज़ विद्यार्थी भी इस संस्थान में दाखिल पाने से चूक जाते हैं।

एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद आशीष को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित बैंकिंग संस्थानों में एक जेपी मोर्गन के लंदन ऑफिस में नौकरी मिल गयी।

आशीष जेपी मोर्गन में काम करते हुए दुनिया का पहला दृष्टिहीन ट्रेडर बन गया।

ये एक बड़ी कामयाबी थी। इस कामयाबी की वजह से आशीष का नाम दुनिया-भर में पहले दृष्टिहीन ट्रेडर का रूप में मशहूर हो गया।

दृष्टिहीनता को आशीष ने अपनी तरक्की में आड़े आने नहीं दिया। अपनी प्रतिभा और बिज़नेस ट्रिक्स से सभी को प्रभावित किया। अपने बॉस को भी कभी निराश होने नहीं दिया।

2010 में आशीष को विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा आशीष को एक समारोह में ये पुरस्कार दिया गया। आशीष को कई संस्थाओं ने भी सम्मान और पुरस्कार दिए।

आशीष के बारे में एक दिलचस्प बात ये भी है कि वे नेत्रहीनों के लिए बनाई जाने वाली छड़ी का बहुत बढ़िया तरीके से इस्तेमाल करते हैं। और तो और उनकी बहन गरिमा तो छड़ी का इस्तेमाल ही नहीं करतीं। कई बार कई लोगों को शक होता है कि गरिमा वाकई दृस्तिहीन हैं या नहीं।

आशीष और गरिमा दोनों इन दिनों विकलांग लोगों को उनकी ताकत का एहसास दिलाने के लिए अपनी और से हर संभव प्रयास कर रहे हैं। दोनों का कहना है कि विज्ञान और प्रोद्योगिकी में इतनी तरक्की हो गयी है कि विकलांग व्यक्तियों को अब पहले जितनी तकलीफें नहीं होतीं।

एक और महवपूर्ण बात दृष्टिहीन होने के बावजूद आशीष स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर की मदद से कंप्यूटर पर अपने ई मेल पढ़ते है। सारी रिपोर्ट्स का अध्ययन करते हैं। दूसरों के प्रेजेंटेशन समझ जाते हैं। और तो और अरबों रुपयों के ट्रांसक्शन्स की जानकारी रखते हैं और उन्हें संचालित भी।

फुर्सत के समय में आशीष दूसरे दृष्टिहीन लोगों के साथ क्रिकेट खेलते हैं और टैंगो भी बजाते हैं। अपने कुछ दोस्तों के साथ वे क्लब जाकर पार्टी भी करते हैं।