Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

टैगोर की 'बाग़बान' और 'निंदिया चोर' के बाद गुलज़ार की सूची में हैं 270 देशी साहित्यकार

हिंदी फिल्मों के इतिहास में गीत के लिए ऑस्कर जीतने वाले गुलज़ार 20 से अधिक फिल्मफेयर और अनगित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। फिल्म निर्माण के विभिन्न क्षेत्र में भरपूर जी चुके गुलज़ार का पहला इश्क़ आज भी शायरी ही है और वे अपनी शायरी की वज्ह से अपना बड़ा क़द रखते हैं। शायद यही वज्ह है कि वे देशी भाषाओं मेंं छुपी शायरी के राज़ किताब दर किताब खोलने में लगे हुए हैं।

टैगोर की 'बाग़बान' और 'निंदिया चोर' के बाद गुलज़ार की सूची में हैं 270 देशी साहित्यकार

Tuesday July 12, 2016 , 7 min Read

बीते सात-आठ सालों से विभिन्न भारतीय भाषाओं का समकालीन साहित्य पढ़ रहे गीतकार गुलज़ार का दावा है कि उनकी सूची में 270 साहित्यकार हैं, जिन्हें वे हिंदी-हिंदुस्तानी में लाना चाहते हैं। गुलज़ार जहाँ अपने गीत, फिल्मलेखन, निर्देशन और निर्माण को लेकर शोहरत रखते हैं, वहीं इन दिनों वे साहित्य अनुवाद को लेकर भी जाने जाते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर की दो किताबें बाज़ार में आने के बाद उनका यह रूप भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। ये दो किताबें उसकी शुरूआत भर हैं। गुलज़ार ने बताया कि उन्होंने विभिन्न भाषाओं का साहित्य पढ़ा और अनुदित किया है, उसमें से 270 की सूची बनायी है, जो एक एक करके सामने आएँगीं।

गुलज़ार के पता नहीं अभी कितने रूप हैं, लेकिन संपूर्ण सिंह कालरा से गुलज़ार बने इस पंजाबी हिंदुस्तानी गीतकार का मानना है कि भारत की अन्य भाषाओं का साहित्य उन्हें अपनी ओर खींच रहा है और वे बांगला के बाद असमिया, ओडिया, पंजाबी, मराठी, मल्याली, तेलुगु और तमिल सहित विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों को हिंदुस्तानी(हिंदी) में लाना चाहते हैं और इसके लिए काम तेज़ी से जारी है।

image


हार्पर कुलीन्स पब्लिशर द्वारा प्रकाशित पुस्तकों ‘बाग़बान’ और ‘निंदिया चोर’ के पठन की खास महफिल में भाग लेने के लिए गुलज़ार जब हैदराबाद आये तो उनके साथ कई सारे विषयों पर खुलकर गुफ़्तगू हुई। सबसे पहले तो उनके बंगाली प्रेम की बात निकली। वे हंसते हुए मज़ाक में कहने लगे,

- बंगला भाषा शुरू से बहुत अच्छी लगती है, फिर बंगाली भी अच्छे लगते थे, फिर बंगाली लड़कियाँ भी अच्छी लगती थीं। मुझे जब बंगालन (राखी) से प्रेम होगा तो भला बंगाली से क्यों नहीं। मेरे पहले गुरू बिमल राय थे। जब उनके साथ मैं काम करने लगा था, तो खुद ब खुद ही बंगाली आती गयी। बंगाली(भाषा), बंगाल और बंगालियों ने मुझे उसी समय अपनी ओर आकर्षित किया था, जब मैं दिली के युनाइटेड मिशन स्कूल में गुरुदेव की चीज़ें ऊर्दू में पढ़ रहा था। वहीं पर शरतचंद्र, बंकिमचंद्र और मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों को पढ़ा। यहीं पर ग़ालिब को जानने का मौका मिला। यह सब मौलवी मुजीब उर रहमना की वज्ह से, क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ सिखाया है।

बात जब बचपन की निकली तो गुलज़ार साहब ने अपनी पुरानी यादों को भी ताज़ा किया, उन्होंने बताया कि वे पंजाब में बाबा बुल्लेशा, बाबा फरीद और नानक को सुनते हुए बड़े हुए। साथ ही संस्कृत के श्लोक जो पूजा पाठ में गाये जाते थे, उन्हें अंजाने में ही संगीत और कविता का आनंद देते रहे। जब स्कूल गये तो वहाँ ग़ालिब को पढ़ा। वे बताते हैं,

- कोई भी हिंदुस्तानी तीन चार भाषाओं के साथ पलता बढ़ता है। चाहे माँ के काम काज और पूजा पाठ में गायन हो या फिर दूध वाले और चरवाहे का गाना, हर जगह वह संगीत के साथ जीता है और कविता उसमें छुपी होती है। मेरी जड़ों में भी वही संगीत शायरी और कविता रही। देश के ज्यादातर लोगों को इसी तरह का सेक्युलर माहौल विरासत में मिलता है। महत्वपूर्ण यह है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे।
image


गुलज़ार मानते हैं कि भारतीय भाषाओं का अनुवाद दूसरी भारतीय भाषाओं में जितना अच्छा होगा, वह अंग्रेज़ी में नहीं हो सकता। कैकई और कुंती के अपने अपने मुहावरे हैं, वे दूसरी भारतीय भाषा में उस पूरी संस्कृति के साथ चले आते हैं, क्योंकि वहाँ कैकई और कुंती के साथ रामायण पहुँचा है। यही बात अंग्रेज़ी में कहने के लिए पूरा संदर्भ बताना पड़ेगा। पूरी रामायण समझानी पड़ेगी। वो आगे बताते हैं, हिंदी पूरे भारत में जाती है, दूसरी भाषाएँ अपने अपने रिजन में रहती हैं। कई ऐसी रचनाएँ इन रीजनल भाषाओं में हैं, जिन्हें हिंदुस्तानी में लाकर पूरे देश के लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। विशेषकर उत्तर पूर्व की भाषाओं में खूब लिखा जा रहा है।

गुलज़ार ने कहा कि भारत के लिए आज भी अगर कोई लिंक भाषा है तो वह हिंदुस्तानी ही है, चाहे उसे लोग हिंदी कहें या उर्दू। यही सारे देश और देश की दूसरी भाषाओं को एक दूसरे से जोड़ सकती है। उन्होंने कहा, 'यह एक महान भाषा है, जिसे हम सब बोलते हैं। इसमें कोई एक भाषा नहीं है। एक वाक्य पूरा करने में इसमें दूसरी भाषा के शब्द आ ही जाते हैं। यही हिंदुस्तानी है। जो देश की सांस्कृतिक मिट्टी से गहरे जुड़ी है।'

गुलज़ार इन दिनों टैगोर के हिंदी अनुवाद को लेकर हिंदुस्तान घूम रहे हैं। गुलज़ार ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने इन किताबों में टैगोर के विभिन्न रूप खोजने का प्रयास किया है और जो टैगोर अब तक भारत और दुनिया की दूसरी भाषाओं में केवल गीतांजली में कैद थे अब उसे उनकी दूसरी रचनाओं के द्वारा पेश करने की पहल की है।
image


गुलज़ार कहते हैं,

- 50 साल तक टैगोर को विश्वभारती ने अपने क़ैद में रखा और फिर ज्योति बाबू ने टैगोर की उम्र 10 साल और कम कर दी। (उस अवधि को 10 साल तक बढ़ा दिया।) जब अधिकार उनके पास नहीं रहे तो दुनिया टैगोर की दूसरी रचनाओं को अनुवाद के द्वारा दूसरी भाषाओं में पढ़ने को बेचैन है। हम ज्यादातर केवल गीतांजली के बारे में जानते हैं। टैगोर का साहित्य काफी संपन्न है। उन्हें जानना है तो उनकी दूसरी रचनाएँ भी पढ़नी पड़ेंगी। क्या टैगोर दाढी वाले चेहरे के साथ साठ साल की उम्र में ही पैदा हुए थे। वो तो बच्चे भी रहे, युवा भी रहे और जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुत खूबसूरती से लिखा। वो सब चीज़ें केवल बंगाली में कैद थीं, अब एक एक करके बाहर आ रही हैं। टैगोर ने बड़ी बारीकी से दृश्यों को अपने साहित्य में अंकित किया है। मैं जब में पढ़ता गया तो उसे बहुत गहराई से महसूस किया। मैं उनका मिज़ाज उनका मतलब जानने के लिए उनकी ज़िंदगी को पढ़ता गया। कई सारे संदर्भ आते गये। मैं जब उनको पढ़ रहा था तो मुझे मछली नहीं, बल्कि मछली की आँख को देखना था, इसलिए टैगोर, उनका विचार उनका माहौल इन रचनाओं मे लाने की कोशिश की।

गुलज़ार पंजाबी हैं। हिंदी और ऊर्दू में शायरी करते हैं। अंग्रेज़ी से अजनबी नहीं हैं और उनका बंगाली प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है। इसलिए 'बाग़बान' और 'निंदिया चोर' में टैगोर की जो कविताएँ गुलज़ार साहब ने पेश की हैं, वह सीधे बंगाली से ही अनुदित हैं, हालाँकि इन पुस्तकों में खुद रवींद्रनाथ टैगोर की ओर से किया गया उन कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद भी शामिल है, लेकिन गुलज़ार का मानना है कि वह अंग्रेज़ी अनुवाद एक अनुवादक का नहीं, बल्कि एक रचनाकार का है, लेकिन हिंदी में जो गुलज़ार ने अनुवाद किया है, उसमें टैगोर के बंगाली साहित्य और उसके संदर्भों को समेटने की कोशिश है। गुलज़ार कहते हैं टैगोर के वो रूप इन कविताओं में झलकेंगे, जो केवल गीतांजली पढ़कर सामने नहीं आ सकते।

गुलज़ार कहते हैं कि उन्होंने बहुत सारे अनुवाद किये हैं, लेकिन टैगोर जैसे बुद्धिजीवी कवि की रचनाओं का अनुवाद बड़ी हिम्मत का काम है। यह आसान नहीं था, उनकी कविताओं में छुपे संदर्भों को समझने के लिए उन्होंने टैगोर के जीवन को खूब पढ़ा। एक संदर्भ का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि गांधीजी ने टैगोर से कहा था कि देश के युवाओं में क्रांति लाने का काम ज़रूरी है। तब टैगोर न कहा था कि .. मैं देश की आज़ादी के लिए अपनी कविताओं में ही चर्खा कातूँगा, अगर चर्का कातूँगा तो कई सारा धागा खराब कर दूँगा। टैगोर ने जिस रथ की बात अपनी रचनाओं में किया था, वह आज़ादी का रथा और टैगोर ने अपना साहित्य ही आज़ादी के आंदोलन को समर्पित कर दिया।

image


एक प्रश्न के उत्तर में गुलज़ार ने कहा, 'हिंदी फिल्मों की भाषा हमेशा हिंदुस्तानी रही है, लेकिन कुछ दिनों से कान्वेंट से पढ़े और अमेरिका से लौटे फिल्मकारों ने हिंदुस्तानी भाषा और संस्कृति की ख़ुशबू से निकट से संपर्क नहीं हुआ है, लेकिन गुलज़ार ने विश्वास जताया कि एक दिन ऐसे लोग फिल्मनगरी में ज़रूर आएँगे, जो अपनी भाषा गढ़ेंगे, जिसमें वर्तमान के असली रूप की झलक होगी, जिसे अवाम बोलते हैं और ज़ुबान अवाम से ही बनती है। देहात और गावों की असली भाषा उसी समय फिल्मों में आएगी, जब इन्हीं गावों से निकलकर कोई फिल्मकार सामने आएगा,श्याम बेनेगल की तरह।'

हिंदी फिल्मों के इतिहास में गीत के लिए ऑस्कर जीतने वाले गुलज़ार 20 से अधिक फिल्मफेयर और अनगित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। फिल्म निर्माण के विभिन्न क्षेत्र में भरपूर जी चुके गुलज़ार का पहला इश्क़ आज भी शायरी ही है और वे अपनी शायरी की वज्ह से अपना बड़ा क़द रखते हैं। शायद यही वज्ह है कि वे देशी भाषाओं मेंं छुपी शायरी के राज़ किताब दर किताब खोलने में लगे हुए हैं।