इस महिला वन अधिकारी ने आदिवासी इलाके में बनवाए 500 टॉयलेट
वन अधिकारी बनने से लेकर स्वच्छ भारत कैंपेन में अहम भूमिका अदा करने वाली सुधा की तारीफें हर तरफ हो रही हैं। सुधा की जिंदगी का एक ही मकसद है पर्यावरण को सुरक्षित करना। वह कहती हैं कि खुले में शौच करना पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
उन्होंने बताया कि इसी वजह से यहां के लोग खुले में शौच करने को अभिशप्त थे। अगर किसी को कुछ सामान की जरूरत होती है तो उसे 15 से 20 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। क्योंकि परिवहन की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
पूरा देश स्वच्छ भारत अभियान की तैयारी में जोर शोर से लगा हुआ है। देश को स्वच्छ बनाने की मुहिम में भले ही आप कुछ न कर रहे हों, लेकिन कई सारे ऐसे लोग हैं जो इस काम को अंजाम देने में पूरे जी जान से लगे हुए हैं। ऐसी ही एक महिला वन अधिकारी हैं केरल की पीजी सुधा। राज्य में वन अधिकारी के पद पर तैनात सुधा की उम्र 50 होने वाली है। वे राज्य को देश में खुले में शौचमुक्त बनाने के प्रयास में जोर शोर से लगी हैं। उनके प्रयासों की बदौलत ही उन्हें केरल के मुख्यमंत्री के साथ खुले में शौच करने के खिलाफ अभियान में शामिल होने का मौका मिला था।
वन अधिकारी बनने से लेकर स्वच्छ भारत कैंपेन में अहम भूमिका अदा करने वाली सुधा की तारीफें हर तरफ हो रही हैं। सुधा की जिंदगी का एक ही मकसद है पर्यावरण को सुरक्षित करना। वह कहती हैं कि खुले में शौच करना पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इससे कई तरह की बीमारियां और सामाजिक समस्याएं भी जन्म लेती हैं। लेकिन फिर भी लोग शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित नहीं होते। खुले में शौच से महिला सुरक्षा पर भी बुरा असर पड़ता है।
सुधा ने बताया कि इस इलाके में सड़क, परिवहन, पानी, बिजली की काफी सारी समस्याएं हैं। इसलिए लोगों को कभी शौचालय बनवाने का ध्यान नहीं आता। अगर कोई शौचालय बनवाने के बारे में योजना बनाता है तो उसके लिए सारी सामग्री को जुटाना अपने आप में एक चुनौती बन जाती है। सुधा ने गांव वालों को शौचालय बनवाने के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध करवाने में मदद की। इन समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'निर्माण करना कोई बड़ी चुनौती नहीं है बल्कि भवन निर्माण सामग्री को जुटाना काफी मुश्किल होता है।'
उन्होंने बताया कि इसी वजह से यहां के लोग खुले में शौच करने को अभिशप्त थे। अगर किसी को कुछ सामान की जरूरत होती है तो उसे 15 से 20 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। क्योंकि परिवहन की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा जंगली जानवरों के आसपास घूमने से मुश्किलें आती हैं। सुधा ने बाकी आदिवासियों को भी शौचालय बनवाने के लिए जागरूक किया। उनकी पहल का असर हुआ कि आज इलाके में 500 से ज्यादा शौचालय बन चुके हैं। उनके कामों की वजह से ही उन्हें मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से पुरस्कार भी मिल चुका है।
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