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'रूरल ब्रीजेज', ग्रामीण भारत को तकनीक से जोड़ने का प्रयास

रूरल ब्रीजेज : ग्रामीण भारत को प्रौद्योगिकी से सक्षम बनाने वाला एक उद्यमितापूर्ण वेंचर

'रूरल ब्रीजेज', ग्रामीण भारत को तकनीक से जोड़ने का प्रयास

Wednesday July 01, 2015 , 13 min Read

योरस्टोरी ने हाल ही में यह समझने के लिए रूरल ब्रीजेज के संस्थापक चंद्र शेखर रेड्डी से बातचीत की कि वे ग्रामीण भारत के लिए मानक तकनीकी उत्पाद क्यों बनाते हैं।

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हमें रूरल ब्रीजेज के बारे में कुछ बताइए।

रूरल ब्रीजेज (http://ruralbridges.com) का अस्तित्व लगभग आठ महीने से है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि ग्रामीण भारतीयों के जीवन में मूल्यवर्धन कैसे किया जाय। हमलोगों ने दो रास्ते चुने जिनके जरिए हमारी समझ में अधिकतम मूल्यवर्धन किया जा सकता था। पहला था ग्रामीण भारत को सामान्य रूप से प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराना और खास तौर से खेती से इसकी शुरुआत करना। और दूसरा क्षेत्र ग्रामीण भारत में कौशल निर्माण का था जिसमें हमलोगों ने मूल्यवर्धन करने की सोची। लिहाजा इसका मकसद था शहरी और ग्रामीण भारत में जीवन की गुणवत्ता और अवसरों के लिहाज से बरकरार फासले को पाटना।

ग्रामीण भारत में अधिकांश लोग खेती पर भरोसा करते हैं। वे जिन समस्याओं का सामना करते हैं, उनका अच्छा डॉक्यूमेंटेशन किया गया है। उनके द्वारा प्रयुक्त विधियां आदिम हैं और पिछले कई दशकों में उनमें प्रौद्य़ोगिकी का अधिक प्रवेश नहीं हुआ है। अतः हमारा लक्ष्य ग्रामीण भारत में प्रौद्योगिकी पहुंचाना और यह सुनिश्चित करना है कि ग्रामीण भारतीय लोगों के कौशलों का विकास करके उन्हें लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराया जाय।

इसी दृष्टिकोण से हमलोगों ने दो कंपनियों की स्थापना की है - रूरल ब्रिजेज और एडुब्रिज। रूरल ब्रिजेज नाम इसलिए है कि हमलोग दो भारत के बीच का फासला पाटना चाहते हैं। रूरल ब्रिजेज ग्रामीण भारत के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराती है जबकि एडुब्रिज ने कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। दोनो कंपनियां चल रही हैं। सेवामूलक कंपनी होने के कारण एडुब्रिज तेजी से विकसित हो रही है और वह चंद कंपनियों में है जिन्हें राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) से फंडिग प्राप्त हुई है। वहीं रूरल ब्रिजेज में हम शहरी परिप्रेक्ष्य में मौजूद प्रौद्योगिकियों पर नजर रखते हैं और ग्रामीण परिप्रेक्ष्य की जरूरत के अनुसार उनमें सुधार लाते हैं।

आपने रूरल ब्रिजेज की शुरुआत क्यों की? अपनी बाध्यता के क्षणों के बारे में बताएं।

हम सभी (संस्थापक) लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले हैं। हमलोग सौभाग्यशाली रहे कि हमलोगों की पढ़ाई IIT और IIM में हुई और हमलोगों ने सबसे अच्छी कंपनियों में काम किया। हमने देखा है कि समाज का सबसे बड़ा खतरा देश में पैदा की जा रही विषमता है। मेरी समझ में भारत के संपन्न लोग अन्य देशों के संपन्न लोगों से अधिक संपन्न हैं और यहां के गरीब अन्य देशों के गरीबों से अधिक गरीब हैं। इसलिए हमने तलाश शुरू की कि इस फासले को कम करके समाज में कैसे योगदान किया जाय। हमारा विश्वास है कि अगर हम दो हिंदुस्तानों के बीच का फासला घटाना शुरू नहीं करते हैं, तो समाज के रूप में हम असफल हो जाएंगे। और इस समस्या से जूझने, अवसर पैदा करने और जरूरतमंद लोगों को साथ लाने के लिए हमलोगों ने रूरल ब्रिजेज की शुरुआत की।

जहां वैश्विक स्तर पर हमारी पहचान प्रौद्योगिकी में मजबूत देश के बतौर हो रही है, वहीं जिस क्षेत्र से अधिकांश भारतीय अपनी जीविका अर्जित करते हैं, वहां प्रौद्योगिकी वस्तुतः पहुंची ही नहीं है। हमलोगों ने महसूस किया कि इन क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी को ले जाना काफी उपयोगी हो सकता है। इसके लिए किसी को शहरी क्षेत्रों में मौजूद प्राद्योगिकियों को समझना होगा और प्रक्रियाओं को खेती, संरक्षण, सप्लाई चेन आदि के लिए प्रभावी बनाने के लिए उनमें उसके अनुरूप सुधार करना होगा।

अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं। अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि और पहले के कार्यानुभव के बारे में भी बताएं।

मैंने REC वारंगल से इंजिनीयरिंग की और मास्टर डिग्री IIM लखनऊ से लिया। उसके बाद मैंने प्रॉक्टर एंड गैंबल में काम किया जहां ग्रामीण भारत के साथ मेरा पहली बार महत्वपूर्ण रूप से जुड़ना हुआ क्योंकि ग्रामीण भारत के 18,000 गांवों में वितरण की एक परियोजना का मैं प्रोजेक्ट लीडर था। मैं देश में काफी घूमा और समझा कि हम ग्रामीण भारत में व्यवसाय कैसे कर सकते हें और कैसे उन्हें टिकाऊ और उन्नतिशील बना सकते हैं। बाद में, मैंने दो वर्षों तक मैक्किंसे में प्रोजेक्ट कंसल्टेंट के बतौर काम किया। उसके बाद, मैं व्यक्तिगत कारणों से बंगलोर आ गया हूं और डेढ़ वर्षों से यहां हूं। मैं रूरल ब्रिजेज और एडुब्रिज में काम करता हूं जबकि दिन में मैं दूसरी जगह काम करता हूं। मैं एक दूरसंचार कंपनी में कॉर्पोरेट स्ट्रेटेजी के वीपी के बतौर काम करता हूं।

दूसरे सह-संस्थापक राजशेखर भी सीएस इंजीनियर हैं। उन्होंने 10 वर्षों तक सिस्को में काम किया और कंपनी को पूर्णकालिक रूप से चलाने के लिए नौकरी छोड़ दी। तीसरे सह-संस्थापक गिरीश का और मेरा उन क्षेत्रों में सहयोग रहता है जहां हम कोई मूल्यवर्धन कर सकते हैं। गिरीश की पृष्ठभूमि IIM बंगलोर की है। उन्होंने पहले प्रोक्टर एंड गैंबल तथा एडेलवीस में काम किया है। राजशेखर प्रौद्योगिकी और कार्यसंचालन की देखरेख करते हैं, मैं मार्केटिंग संभालता हूं और गिरीश रणनीतिक साझीदारी संभालते हैं।

आपलोगों का काम कब से शुरू है? आप कहां आधारित होकर काम कर रहे हैं?

हमलोग कोई आठ महीने से काम कर रहे हैं। हमलोग बंगलोर आधारित हैं।

आपकी टीम कितनी बड़ी है? क्या आपलोग और लोगों को भी इसमें शामिल करना चाह रहे हैं?

हमलोग वस्तुतः नौ लोग हैं। और हां, हमलोग और लोगों को लेना भी चाह रहे हैं। अभी हमारे पहले उत्पाद की सफलतापूर्वक फील्ड टेस्टिंग हुई है और उसके बहुत अच्छा रिस्पौंस मिला है। हमलोग मार्केटिंग रिसोर्स के लिए दो लोगों की तलाश में हैं। हमलोग रूरल मैनेजमेंट पृष्ठभूमि वाले लोगों की तलाश में हैं। हमलोगों को मार्केटिंग इंटर्न को भी लेने में कोई आपत्ति नहीं है।

आपलोग किन सेवाओं/ उत्पादों की पेशकश करते हैं?

हमलोग पहला उत्पाद किसानशक्ति के नाम से ला रहे हैं। अनिवार्यतः, इससे किसानों को अपना कृषि उपकरण कहीं से भी चलाने में मदद मिलती है। वे लैंडलाइन या मोबाइल फोन के जरिए अपना पंप और मोटर कहीं से भी चला सकते हैं। यह GSM आधारित उत्पाद है। इस उत्पाद को सामने लाने के पहले हमलोगों ने पहले यह समझा कि किसानों को मोटर/ पंप चलाने में ज्यादा दिक्कत किन चीजों को लेकर आती है। ग्रामीण भारत में बिजली की आपूर्ति बहुत अनियमित है इसलिए किसानों को देर रात में या तड़के सुबह, जब भी बिजली उपलब्ध होती है, उपकरण को चलाने के लिए उस जगह पर जाना पड़ता है।

बिजली की गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत बार ग्रिड पर अनपेक्षित दबाव के कारण बिजली की गुणवत्ता संदिग्ध रहती है और उसके कारण महत्वपूर्ण उपकरण समय पर काम नहीं कर पाते हैं। जैसे तीन फेज की जगह दो फेज में लाइन आने से आपका मोटर जल जाता है, आदि। अतः किसानों के नजरिए से हमलोगों ने समझने की कोशिश की कि वास्तव में उनकी जरूरतें क्या हैं। सबसे बुनियादी समस्या तो स्पष्टतः मोटर का स्विच ऑन-ऑफ करना है। उसके बाद हमलोगों ने एक ग्रुप स्टडी पर ध्यान केंद्रित किया। उसके बाद हम वैसे फीचर को लेकर सामने आए जिनकी उनको जरूरत हो और उससे उत्पाद किसानों के लिए अधिक उपयोगी बन जाए। हमारा उपकरण पहले सुनिश्चित करता है कि फॉल्ट की स्थिति की जांच की जाय और उसके बाद ही मोटर चलाया जाय।

आपने फंड कैसे हासिल किया? क्या आपकी फंड हासिल करने की कोई योजना है?

अभी तक हमलोगों ने अपनी जेब से पैसे लगाए हैं। हालांकि हमलोग फंड हसिल करने की भी योजना बना रहे हैं। चूंकि हमलोग प्रोडक्ट कंपनी हैं और जब तक कि हमलोग उत्पाद की बड़े पैमाने पर जरूरत का औचित्य नहीं प्रमाणित कर दें, फंड हासिल करना बहुत मुश्किल है। इसलिए हमें लगता है कि फंड हासिल करने के लिए तीन से छः महीने का समय संभवतः उपयुक्त होगा।

आपका रेवेन्यू मॉडल क्या है?

स्पष्ट है कि हमलोग अपना उत्पाद बेचते हैं। उस उत्पाद से विज्ञापन जनित राजस्व प्राप्त करने का हमलोगों का बिल्कुल इनोवेटिव तरीका है। तीन से छः महीने के अंदर हमलोगों का पूरे देश में किसानों का नेटवर्क बन जाएगा। हमलोग जिन किसानों के साथ काम करेंगे, उनका डेटाबेस बनते ही हमलोग किसानों तक पहुंच सकते हैं और उन्हें उर्वरक कंपनियों या बीज कंपनियों आदि से मिलने वाले नए ऑफर के बारे में जानकारी दे सकते हैं। इस प्रकार, कहिए कि 10 हजार किसानों का आधार होते ही हमलोगों के लिए विज्ञापन जनित राजस्व प्राप्त करने की अच्छी संभावना होगी।

आपका आउटरीच मॉडल क्या है?

इसका कुछ हिस्सा गोपनीय है क्योंकि हमलोग अभी बाजार में पूरी तरह नहीं उतरे हैं। लेकिन सबसे स्पष्ट तरीका डिस्ट्रीव्यूटर और सुपर डिस्ट्रीव्यूटर नियुक्त करना है। हमलोगों ने दो किसान मेलों में भाग लिया है - एक कर्नाटक में और एक आंध्र प्रदेश में। रिस्पौंस असाधारण रहा है। अभी हमलोगों के पास डिस्ट्रीव्यूटर के लिए 40-50 आवेदन आ चुके हैं। लेकिन हमलोग अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं। हमलोग अभी दो टेलिकॉम प्रोवाइडरों से बातचीत कर रहे हैं। अगर आप देखें तो एयरटेल, वोडफोन जैसी कंपनियां ग्रामीण ग्राहकों के लिए काफी मूल्यवर्धन का प्रयास कर रही हैं।

जैसे, एयरटेल ग्रामीण ग्राहकों को कृषि संबंधी जानकारी देने के लिए एक को-ब्रांडेड सर्विस दे रही है। ये दूरसंचार कंपनियां ग्रामीण भारत में सेवाएं देने वाली कंपनियों के साथ साझेदारी के लिए इच्छुक हैं। इसलिए उपकरण को सिम-कार्ड के साथ जोड़ देने का विचार है। हमलोग दो सूक्ष्मवित्त संस्थाओं के साथ भी साझेदारी के प्रयास में हैं। अनिवार्यतः, हमलोग वितरण चैनल पर अधिक लागत नहीं आने देना चाहते हैं क्योंकि हमारा उद्देश्य किसानों तक न्यूनतम संभव मूल्य पर उत्पाद पहुंचाना है।

आपके प्रतिस्पर्धी कौन हैं?

हमारा कोई एक बड़ा प्रतिस्पर्धी नहीं है। अभी बाजार में इस बुनियादी मॉडल के अनेक उत्पाद बाजार में मौजूद हैं। यह तो निर्भर करता है कि हम इस उत्पाद को क्या कहते हैं। अगर हम इसे मोटर को नियंत्रित करने में उपयोग किया जाने वाला बेसिक रिमोट कंट्रॉलर कहें तो इसके अनेक प्रतिस्पर्धी हैं। लेकिन हम जो-जो फीचर उपलब्ध करा रहे हैं, उस लिहाज से कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है।

पुणे आधारित एक कंपनी है नैनो गणेश। मेरा विश्वास है कि वह कम से कम दो-तीन वर्षों से इसे बेच रही है। लेकिन मेरी समझ में वह कोई बड़ी कंपनी नहीं है क्योंकि अगर आप हर राज्य में उपलब्ध पंप सेटों की संख्या को देखें, तो बहुत बड़ा अनटैप्ड बाजार है। कोई बड़ा प्रतिस्पर्धी नहीं है लेकिन नैनो गणेश इस क्षेत्र में अग्रणी है क्योंकि सबसे पहले वे लोग ही इस उपकरण का बुनियादी संस्करण लेकर आए।

आपका कंपिटीटिव एडवांटेज क्या है?

हमलोग तो कहेंगे कि इस उत्पाद के जरिए हमलोग किसानों की बिल्कुल सही दुखती रग का समाधान देने में समर्थ हैं। यह उत्पाद कृषि क्षेत्र के मोटर का कंट्रोलर होने के अलावा भी बहुत कुछ है। किसान लोग उत्पाद बनाने में प्रयुक्त चिंतन प्रक्रिया की सराहना करेंगे क्योंकि यह मोटर को नियंत्रित ही नहीं करता है, उसे बचाता भी है जो ग्रामीण बाजार के लिए काफी आगे की चीज है। दूसरे, हमें विश्वास है कि हमें ग्रामीण सप्लाई चेन की गहरी समझ है जिसके कारण हमारा मानना है कि हम उत्पाद को एंड यूजर के लिए प्रतिस्पर्धियों से काफी कम कीमत में उपलब्ध करा सकेंगे।

आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

सबसे बड़ी चुनौती कीमत है। हमलोग किसानों के लिए सिस्टम की कीमत को समझने की कोशिश कर रहे हैं। जब हमलोगों ने इस उत्पाद पर काम करना शुरू किया, तो हम चाहते थे कि इसकी कीमत 3000 से 4000 रु. के बीच हो। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए हैं क्योंकि लागत और विश्वसनीयता के बीच में काफी हेरफेर होता है। इसलिए आप उत्पाद को कैसे मजबूत बनाते हैं और रखरखाव संबंधी सहयोग के लिए आपके पास सेवा प्रदाताओं का नेटवर्क है या नहीं, इसके बीच काफी संबंध है। हमलोग अभी भी कीमत के उस स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं। अभी हमलोग उपकरण आदि की कीमत ही जोड़कर देख रहे हैं। और वर्तमान मूल्य पर भी काफी अच्छी रुचि लगती है लेकिन हम इसे 3,500 रु. के आसपास रखने के शुरुआती मकसद से काम कर रहे हैं।

हमलोगों ने इसका पायलट किया है, हमारे पास इसका स्केलेबल मॉडल है, हमलोगों ने अपने बल्क मैनुफैक्चरर के साथ कंट्रैक्ट साइन किया है और हमलोग वितरकों से ऑर्डर लेने लगे हैं। चार-छः सप्ताह में हमारा उत्पाद बाजार में उपलब्ध होने लगेगा।

एक उद्यमी के रूप में अपनी सफलताओं और असफलताओं के बारे में बताएं।

रूरल ब्रिजेज के नजरिए से इसे देखने के दो तरीके हैं। सफलता या असफलता के बारे में इतना पहले कुछ कहना ठीक नहीं है। अभी तक तो उत्पाद सचमुच अच्छा रहा है, रिस्पौंस भी अच्छा और उत्साहजनक रहा है। उद्यमी के रूप में मेरा एकमात्र अनुभव एडुब्रिज के साथ रहा है। एडुब्रिज थोड़ा पुराना है क्योंकि हमलोग सेवा कंपनी का विपणन तेजी से कर सकते हैं। कौशल निर्माण के नजरिए से हममें इंडियन एंजेल नेटवर्क ने काफी रुचि दिखाई, एनएसडीसी ने काफी रुचि दिखाई। प्रसंगवश, हमलोगों ने NSDC से फंडिंग लेने को चुना जिसका मुख्य कारण उनके द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला सरकारी नेटवर्क था। मुझे लगता है कि मात्र 24 कंपनियों को ही NSDC से फंडिंग मिली है। सेंटम और मनिपाल ग्रुप जैसे अनेक बड़े कॉर्पोरेट समूहों को NSDC से फंडिंग मिली है इसलिए महज हम तीनों के स्टार्टअप के संदर्भ में उसी प्लेटफॉर्म से फंडिंग पाना एक सफलता है। हमलोग कोई दस लाख डॉलर फंडिंग प्राप्त कर चुके हैं। अतः, उस नजरिए यह अभी तक की यात्रा काफी अच्छी रही है। लेकिन मेरी व्यक्तिगत जिंदगी में कुछ अवरोध हैं क्योंकि उद्यमिता के लिए चौबीसो घंटे प्रतिबद्ध होना पड़ता है। तनावमुक्त होना और रिलैक्स रहना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन हमलोगों द्वारा महाविद्यालयों में बनाए गए नेटवर्क के कारण हमारा काम सुगम हुआ है। जैसे कि IIM नेटवर्क और मैक्किंसे नेटवर्क हमलोगों को सहायता की पेशकश करने में बिल्कुल आगे रहे हैं। लेकिन रूरल ब्रिजेज के लिए हमलोगों की असली परीक्षा अगले तीन-चार महीनों में होने वाली है।

दो वर्षों के बाद आप रूरल ब्रिजेज को कहां पहुंचते देखते हैं?

हमलोग जिन उत्पादों का निर्माण करना चाहते हैं उनका रोडमैप हमारे पास मौजूद है। आने वाले वर्षों में हम रूरल ब्रिजेज और एडुब्रिज, दोनो के लिए बड़े पैमाने का ग्रामीण नेटवर्क बनता देख रहे हैं जो ग्रामीण भारत के लिए सेवाओं और उत्पादों, दोनो की उपलब्धता में मददगार होगा। हमारे चार-पांच उत्पाद पाइपलाइन में हैं जिनको पूरा होने में तीन वर्ष लगने का अनुमान है। हमलोगों का एक फोकस्ड ग्रुप नवीकरणीय ऊर्जा वाली सामग्रियों पर भी है। हमलोग शोध कर रहे हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा को हम ग्रामीण भारतीयों के पास घरेलू प्रकाश व्यवस्था और बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराने के लिहाज से कैसे ले जाएं। तीन से पांच वर्षों में आप निश्चित तौर पर देखेंगे कि ग्रामीण बाजारों में हमारी ओर से चार-पांच उत्पाद आ गए हैं।

योरस्टोरी के पाठकों से आप किस तरह के सहयोग की आशा कर रहे हैं?

इस समय हमलोग मार्केटिंग रिसोर्स की नियुक्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमलोग ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में काम करने वाले लोगों के साथ सहयोग करने के लिए खुशी-खुशी तैयार हैं क्योंकि सप्लाई चेन का खर्च कम करना हर किसी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। जैसे, अगर कोई कंपनी ग्रामीण भारत में ऐसे उत्पाद बेचती है जिसे हमसे प्रतिस्पर्धा नहीं है, तो कीमत में कमी के लिए उनके साथ कॉलेबरेशन करना और वितरण के लिए समझौता करना काफी मायने रखता है।

स्वयंसेवी के बतौर आने और उत्पाद के विकास के लिए काम करने वाले लोगों का स्वागत है। अभी हमलोग इनक्यूबेटर जैसा सेटअप बनाने का प्रयास कर रहे हैं जहां हमलोग एकाधिक उत्पादों के विकास संबंधी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इसलिए उस खास क्षेत्र के विशेषज्ञों को ग्रामीण भारत के लिए उत्पाद विकास में अगर रुचि हो, तो उनकी मदद करके हमें खुशी होगी।

योरस्टोरी की ओर से हम रूरल ब्रिजेज टीम के लिए सफलता की कामना करते हैं। हमें आशा है कि वे इनोवेशन जारी रखेंगे और आने वाले दिनों में ग्रामीण भारत में जीवन में बेहतरी लाने वाले नए-नए उत्पाद बनाएंगे।

रूरल ब्रिजेज पर यह स्टोरी आपको कैसी लगी? अपनी सोच हमें बताएं। आप अपना फीडबैक हमें [email protected] पर दे सकते हैं।