Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

अल्फाज़ नहीं मिलते, सरकार को क्या कहिए

विशेषज्ञों के सुझाव पर सरकारें समय-समय पर शिक्षा व्यवस्थाओं में बदलाव करती रहती हैं। उन बदलावों का प्रतिफल किस रूप में सामने आता है, यह एक गंभीर प्रश्न है।

अल्फाज़ नहीं मिलते, सरकार को क्या कहिए

Tuesday June 06, 2017 , 3 min Read

होशियार हो जाइए, अब सचमुच 'यूजीसी' की विदाई होने जा रही है। 'हीरा' का ब्ल्यूप्रिंट तैयार हो रहा है। सरकार की मंशा नेक है। सतह पर एक सवाल भी छूटा रह गया है, कि शिक्षा का मौलिक अधिकार तो मिल चुका, पर प्राइमरी शिक्षा कब तक पटरी पर आएगी? आज भी देश के लाखों नौनिहाल दोराहे पर हैं। ऐसे में हाईयर एजूकेशन एम्पॉवरमेंट रेगुलेशन एजेंसी सक्रिय होने के बाद एक उम्मीद ये भी जागती है, कि देर-सवेर प्राइमरी एजूकेशन के सच पर भी शायद सरकार की नजर जरूर जाए!

image


यूजीसी और एआईसीटीसी को हटाकर एक सिंगल रेग्यूलेटर का आना सबसे क्लीन और बड़ा रिफॉर्म माना जा रहा है। नया कानून अमल में आने में समय लग सकता है, इसीलिए फिलहाल एक्ट्स में संशोधन का अंतरिम उपाय विचारणीय है।

'पुर नूर बशर कहिये या नूरे खुदा कहिए, अल्फाज़ नहीं मिलते सरकार को क्या कहिए....' इन पंक्तियों के संदर्भ तो कुछ और रहे होंगे लेकिन इस वक्त इन्हें बांचने, गुनगुनाने के अर्थ कुछ और निकाल लेने से हायर एजुकेशन सेक्टर में एक ताजे बदलाव-पलटाव के चित्र दिमाग पर कौंध उठते हैं और कानों में एक धमाकेदार वाक्य गूंजता है- छह दशक पुराने यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) का आस्तित्व खत्म होने जा रहा है और अब एआइसीटीई (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजूकेशन) तथा यूजीसी नहीं, HEERA (हाईयर एजूकेशन इम्पॉवरमेंट रेगुलेशन एजेंसी) होगी देश के लाखों नौजवानों के दिल-दिमाग पर। यूजीसी और एआईसीटीसी को हटाकर एक सिंगल रेग्यूलेटर का आना सबसे क्लीन और बड़ा रिफॉर्म माना जा रहा है। नया कानून अमल में आने में समय लग सकता है, इसीलिए फिलहाल एक्ट्स में संशोधन का अंतरिम उपाय विचारणीय है।

"नया रेग्युलेटरी कानून संक्षिप्त हो सकता है। टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल एजुकेशन को अलग करने का चलन अब पुराना हो गया है। एक रेग्युलेटर होने से इंस्टिट्यूशंस के बीच तालमेल बेहतर होने की संभावना है। यूजीसी को खत्म करने के लिए यूपीए सरकार के समय गठित यशपाल समिति, हरी गौतम समिति ने सिफारिश की थी, लेकिन इसको कभी अमल में नहीं लाया गया।"

केंद्र सरकार ने यह फैसला तो तीन-चार महीने पहले ही ले लिया था लेकिन अनुगूंज अब हो रही है। मानव संसाधन मंत्रालय और नीति आयोग 'हीरा' एक्ट लाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए एक कमेटी भी गठित हो गई है, जिसमें नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत और हाईयर एजूकेशन सचिव केके शर्मा सहित अन्य सदस्य इसके ब्लूप्रिंट पर जुटे हुए हैं।

ये भी पढ़ें,

ईश्वरीय सत्ता को चुनौती और भारतीय परंपरा

विशेषज्ञों के सुझाव पर सरकारें समय-समय पर शिक्षा व्यवस्थाओं में बदलाव करती रहती हैं। उन बदलावों का प्रतिफल किस रूप में सामने आता है, यह एक गंभीर प्रश्न है। इस सभी का उद्देश्य एक है कि शिक्षा के क्षेत्र में लर्निंग क्राइसिस का समाधान कैसे खोजा जाए? भारतीय संसद ने निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक, 2009 में पारित किया था, ताकि बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार मिले। इसे अप्रैल 2010 से जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में लागू भी कर दिया गया था। सरकार की नीतियां ऊपर से चलती हैं, नीचे सतह तक पहुंचते-पहुंचते उनमें ऐसी विकृतियां घुस आती हैं, जिनसे उद्देश्यों को झटका लगता है।

हमारे देश में आज भी प्राइमरी एजुकेशन दो राहे पर है। एक ओर सरकारी प्राइमरी स्कूल और दूसरी तरफ अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का आर्थिक साम्राज्य। आम बच्चों के लिए इस दिशा में सरकारों की जवाबदेही अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं दे सकी है। मोदी सरकार इन चिंताओं से वाकिफ है। उच्च शिक्षा में बदलाव के क्रम में संभव है, देर-सवेर इस दोराहे पर भी सरकार की नजर जाए।

ये भी पढ़ें,

खेल-खेल में बड़े-बड़ों के खेल