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जन्मदिन पर विशेष: सात दशकों से हमें अनमोल गीतों के तोहफे देने वाली लता मंगेशकर

जन्मदिन पर विशेष: सात दशकों से हमें अनमोल गीतों के तोहफे देने वाली लता मंगेशकर

Friday September 28, 2018 , 5 min Read

अपनी जादुई आवाज में भारत रत्न लता मंगेशकर ने 30 हजार से ज्यादा गीतों को अपना सुर दिया है। कम ही लोगों को पता है कि उनको एक बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। वर्ष 1962 में जब वह 33 साल की थीं, उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था।

लता मंगेश्कर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लता मंगेश्कर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर खुद एक बड़े क्लासिकल सिंगर और थियेटर आर्टिस्ट थे। लता तीन बहनों मीना, आशा, उषा मंगेशकर और भाई हृदयनाथ में सबसे बड़ी हैं। 

इंदौर में मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर के यहां 28 सितंबर 1929 को पैदा हुईं स्वर कोकिला लता मंगेशकर आज 89 वर्ष की हो गईं। दशकों से अपने कोकिल कंठ से भारतीय गीत-संगीत को समृद्ध करने वाली लता मंगेशकर ने अपनी आवाज और अपनी सुर साधना से बहुत छोटी उम्र में ही गायन में महारत हासिल कर ली थी और विभिन्न भाषाओं में गीत गाने लगी थीं। पिछली पीढ़ी उनके शोख और रूमानी सुरों का सुख लेती रही थी, मौजूदा पीढ़ी उनकी परिपक्व गायकी पर सुध-बुध खो रही है। अपनी जादुई आवाज में भारत रत्न लता मंगेशकर ने 30 हजार से ज्यादा गीतों को अपना सुर दिया है। कम ही लोगों को पता है कि उनको एक बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। वर्ष 1962 में जब वह 33 साल की थीं, उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था।

लेखिका पद्मा सचदेव ने अपनी किताब 'ऐसा कहां से लाऊं' में इस बात का खुलासा किया है। पद्मा जी लिखती हैं - 'एक दिन सुबह उनके पेट में तेज दर्द होने लगा। थोड़ी देर में उन्हें दो-तीन बार उल्टियां हुईं, जिसमें हरे रंग की कोई चीज थी। उन्होंने बताया कि वो बिल्कुल चलने की हालत में नहीं हैं। उनके पूरे शरीर में तेज दर्ज होने लगा। डॉक्टर अपनी एक्सरे मशीन के साथ उन्हें चेक करने के लिए आए और उन्हें इंजेक्शन दिया, जिससे नींद आ जाए। दर्द की वजह से वो सो भी नहीं पा रही थीं। अगले तीन दिनों तक ऐसा था कि वो मौत के बेहद करीब थीं। आखिरकार करीब 10 दिन बाद वो ठीक हो पाईं। उनके डॉक्टर ने बताया कि उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था।'

लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर खुद एक बड़े क्लासिकल सिंगर और थियेटर आर्टिस्ट थे। लता तीन बहनों मीना, आशा, उषा मंगेशकर और भाई हृदयनाथ में सबसे बड़ी हैं। उनके बचपन का नाम हेमा है। बाद में एक थियेटर कैरेक्टर 'लतिका' के नाम पर वह लता हो गईं। उन्होंने पांच साल की उम्र से ही अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। तेरह साल की उम्र में पहली बार मराठी फिल्म ‘पहली मंगलागौर’ में गाना गाने वालीं लता ने शादी नहीं की है। हर साल वे अपना जन्मदिन बहन आशा भोसले और बाकी फैमिली मेंबर्स के साथ मनाती हैं। उनको जीवन में अपनों की कई अनहोनियों का सामना करना पड़ा है।

वर्ष 2015 का एक और ऐसा ही वाकया उनके 86वें जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले का है।, जब आशा भोसले के बेटे और म्यूजिक डायरेक्टर हेमंत भोसले की मौत को गई थी। उस बार की बर्थ डे पार्टी रोक दी गई थी। उनकी बहन आशा भोसले ने पहली शादी मात्र सोलह साल की उम्र में घर से भागकर अपनी से दूनी उम्र के गणपत राव भोसले से की थी। एक दशक बाद वह रिश्ता टूट गया था। बीस साल अकेले रहने के बाद 1980 में उन्होंने अपने से छह साल छोटे राहुल देव बर्मन से शादी कर ली। वह उनसे पहले ही दुनिया छोड़ गए। आशा की तीन संतानें हेमंत, आनंद और बेटी वर्षा रहीं। वर्षा का भी अपने पति से शादी के कुछ वक्त बाद ही तलाक हो गया। बाद में वर्षा ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या की कोशिश की। उस समय तो जान बच गई। दूसरी बार खुद को गोली से उड़ा लिया। निश्चित ही ये सारी घटनाएं लता जी को भी विचलित करती रहीं।

यह एक सुखद संयोग रहा है कि जितना वक्त देश को स्वाधीन हुए बीता है, उतना ही लता जी की सुर-यात्रा का। सन 1947 में हिंदी फिल्म संगीत में पार्श्वगायन के लिए दत्ता डावजेकर के संगीत निर्देशन में अपने करियर का पहला गीत ‘पा लागूं कर जोरी' उन्होंने गाया था। जिंदगी में शायद ही कोई इंसान प्यार-मोहब्बत की आपबीती से मुक्त रहा हो। लता को भी एक महाराजा से प्यार हो गया था, जो उनके भाई का दोस्त भी थे। अगर शादी होती तो लता एक राज्य की महारानी बन जातीं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

बचपन में वह फिल्म चंडीदास देखने के बाद कहा करती थीं कि बड़ी होकर कुंदनलाल सहगल से शादी करेंगी पर ऐसा किया नहीं। एक जमाने में वह डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज सिंह से प्यार करती थीं। उनके भाई हृदयनाथ और राज सिंह एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे। दोनो साथ-साथ क्रिकेट खेलते थे। उनकी मुलाकात उस समय हुई जब राज वकालत की पढ़ाई करने के लिए मुंबई गए। वह दोस्त हृदयनाथ के घर आते-जाते रहे। इसी दौरान लता जी को उनसे इश्क हो गया। यह एक दुखद संयोग रहा कि न तो राज सिंह ने, न लता जी ने जीवन भर शादी न करने का संकल्प निभाया है।

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