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जिंदगी में हार न मानने वाली जिद ने इन ट्रांसजेंडर्स को बना दिया जज

जिंदगी में हार न मानने वाली जिद ने इन ट्रांसजेंडर्स को बना दिया जज

Friday November 23, 2018 , 7 min Read

यह हम सबके लिए फ़क्र का विषय होना चाहिए कि आज हमारे देश में तीन महिला जज ट्रांसजेंडर हैं। जीवन में कभी हार न मानने का जज्बा रखने वाली पश्चिम बंगाल की जोयिता मंडल, महाराष्ट्र की विद्या कांबले और असम की स्वाति बिधान बरुवा बदलते समाज की ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने कभी न हारने की जिद ठान ली।

जोयिता, स्वाति औऱ विद्या कांबले

जोयिता, स्वाति औऱ विद्या कांबले


सामाजिक बदलाव के दौर में आज ट्रांसजेंडर की दुनिया में और भी बहुत कुछ बदल रहा है, जिस पर फ़क्र किया जाना चाहिए। इसी साल अगस्त में केरल सरकार ने ट्रांसजेंडर्स समुदाय के हक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।

कुछ कामाबियां ऐसी होती हैं, जिन पर पूरे समाज को फ़क्र होता है, लेकिन तमाम लोग ऐसी हैरतअंगेज सफलताओं पर भी अपने व्यक्तित्व में रघुवीर सहाय की कविता- 'हँसो हँसो जल्दी हँसो' के स्वयं व्यंग्य-विद्रूप हो उठते हैं कि हंसो लेकिन सबसे पहले खुद की ऐसी करतूत पर बार-बार शर्माते हुए। तेजी से बदलते मौजूदा वक्त में किसी को हंसना है तो ट्रांसजेंडर के साथ समाज और सृष्टि की विडंबनाओं पर नहीं, अपनी मूर्खतापूर्ण समझ पर हंसे। यह सबके लिए फ़क्र का विषय होना चाहिए कि आज हमारे देश में तीन महिला जज ट्रांसजेंडर हैं।

पश्चिम बंगाल की जोयिता मंडल पिछले साल देश के पहली ट्रांसजेंडर जज बनीं। उन्हें 8 जुलाई, 2017 को पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर की लोक अदालत में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उनके बाद फरवरी 2018 में महाराष्ट्र की विद्या कांबल दूसरी ट्रांसजेंडर जज, बाद में 14 जुलाई, 2018 को असम की स्वाति बिधान बरुवा देश की तीसरी ट्रांसजेंडर जज बन गईं। तमिलनाडु बार काउंसिल से जुड़ीं सत्यश्री शर्मिला देश की पहली ट्रांसजेंडर वकील हैं।

आज ट्रांसजेंडर्स कम्यूनिटी में और भी तमाम ऐसे चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी खुद की पहचान बनाकर दुनिया में, समाज में मिसाल पेश की है। राजस्थान पुलिस में कॉन्स्टेबल ट्रांसजेंडर गंगा कुमारी को इस पद तक पहुंचने से पहले लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी है। कोझिकोड से ताल्लुक रखने वाली पहली मलायलम एक्ट्रेस अंजलि अमीर ने बीस साल की उम्र में सर्जरी के बाद मनोरंजन जगत में कदम रखा। जेंडर की बात खुलने पर एक बार उन्हें एक टीवी शो से निकाल दिया गया था। केरल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट तिरुवनंतपुरम की ट्रांसजेंडर जारा शेख एमएनसी में जॉब करने वाली पहली ट्रांसजेंडर है। उन्होंने हाल ही में टैक्नोपार्क में यूएसटी ग्लोबल कंपनी के ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट में बतौर सीनियर एसोशिएट जॉइन किया है। इससे पहले वह अबु धाबी और चेन्नई की कई कंपनियों में काम कर चुकी हैं।

दादर (मुंबई) के एक मराठा परिवार में जन्मीं ट्रांसजेंडर सोशल एक्टिविस्ट गौरी सावंत पिछले सत्रह वर्षों से इस समुदाय के सम्मान और अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। अभी पिछले ही महीने अक्तूबर में देहरादून (उत्तराखंड) निर्वाचन आयोग ने ट्रांसजेंडर को पुरुष की श्रेणी में माना है। नगर निगम मेयर पद के लिए निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी रजनी रावत की ओर से नामांकन पत्र जमा किया जा रहा था, श्रेणी (पुरुष/महिला) तय करने को लेकर अधिकारी असमंजस में पड़ गए। काफी देर तक कोई निष्कर्ष नहीं निकलने पर शासन से मार्गदर्शन लिया गया। शासन की ओर से वर्ष 2008 में एक ट्रांसजेंडर प्रत्याशी को पुरुष की श्रेणी में दर्शाया गया था।

सामाजिक बदलाव के दौर में आज ट्रांसजेंडर की दुनिया में और भी बहुत कुछ बदल रहा है, जिस पर फ़क्र किया जाना चाहिए। इसी साल अगस्त में केरल सरकार ने ट्रांसजेंडर्स समुदाय के हक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। सरकार ने एक योजना बनाई है जिसके अंतर्गत सेक्स चेंज करवाने के लिए हर ट्रांसजेंडर को दो लाख रुपए अस्पताल खर्च की प्रतिपूर्ति के तौर पर दिए जाएंगे। केवल इतना ही नहीं, जो ट्रांसजेंडर पहले ही अपना सेक्स चेंज करवा चुके हैं, उन्हे इसके लिए आवेदन का अवसर है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने अपने फेसबुक अकाउंट पर इस फैसले की घोषणा की। केरल देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने वर्ष 2015 में ट्रांसजेंडरों के लिए नीतिगत फैसले लिए। राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए हर सरकारी और सहायता प्राप्त कॉलेजों में दो सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया। इसके साथ ही वहां साक्षरता मिशन ट्रांसजेंडर समुदाय को ट्रेनिंग देकर समानता परीक्षा पास करने में मदद कर रहा है। हाल ही में राज्य के सामाजिक न्याय विभाग ने ट्रांसजेंडरों के लिए स्व-रोजगार योजना की शुरुआत की है। कोच्चि मेट्रो में भी ट्रांसजेंडरों विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं।

एचआर एंड मार्केटिंग से एमबीए भुवनेश्वर (ओडिशा) की मेघना साहू ओला कैब्स की पहली ट्रांसजेंडर ड्राइवर हैं। ऐसा करके उन्होंने उन लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है जिनके मन में ट्रांसजेंडर को लेकर गलत छवि पनपती है। मेघना बताती हैं की ट्रांसजेंडर होने के नाते उन्हें शुरू से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इसी साल अगस्त में पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली ट्रांसजेंडर छात्रा धनंजय चौहान के जीवन पर ऐसी पहली डॉक्यूमेंट्री बनी है। बचपन में बधाई से मिलने वाले पैसे से उनकी गुरु काजल मंगलमुखी ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया था। अब वह किन्नरों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। किन्नरों के इसी संघर्ष को बायोग्राफिकल फीचर डॉक्यूमेंट्री में प्रसारित किया गया है। ओजस्वी शर्मा इसके डायरेक्टर हैं। उनका कहना है कि यह डोक्यूमेंट्री एक किन्नर के जीवन का दर्द बयां करती है।

सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, अन्य भी मुल्कों में ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़ी प्रतिभाएं समाजा का मान-सम्मान बढ़ा रही हैं। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के इतिहास में तो ऐसा पहली बार हो रहा है, जब वहां की सुप्रीम कोर्ट में दो ट्रांसजेंडर जज नियुक्ति हो रहे हैं। चीफ जस्टिस साकिब निसार का कहना है कि ट्रांसजेंडर को ऊंचे अधिकार देना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। अदालत उन्हें मुख्यधारा में लाना चाहती है।

वर्ष 2009 में पाकिस्तान दुनिया का पहला ऐसा देश बना था जिसने थर्ड जेंडर को जगह दी थी। पाकिस्तान में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं। पिछले साल से उनको जनगणना में भी शामिल कर लिया गया है। पाकिस्तान में ही ट्रांसजेंडर न्यूज़ एंकर के बाद वहां का पहला एजुकेश्नल और वोकेश्नल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी खोला गया है। लाहौर के इस स्कूल का नाम है 'द जेंडर गार्जियन', जिसमें प्राइमरी से 12वीं तक के ट्रांसजेंडर छात्रों को पढ़ने का अवसर दिया जा रहा है। इस स्कूल के करांची और इस्लामाबाद में विस्तार की घोषणा हो चुकी है।

असम की ट्रांसजेंडर न्यायाधीश स्वाति बिधान बरुवा कहती हैं कि अधितकर ट्रांसजेंडर पढ़े-लिखे नहीं होते, कोई ढंग का काम नहीं, भिक्षाटन से काम चलाते रहते हैं। कई बार उनको पेट भर खाना तक नसीब नहीं होता है। जब तक उनकी ज़िंदगी नहीं बदलती, वह अपना संघर्ष जारी रखेंगी। वर्ष साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर का दर्जा दिया था। उसके बाद से उन्हें लगा कि ट्रांसजेंडरों की ज़िंदगी में बदलाव होगा लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। ट्रांसजेंडरों की बेहतरी के लिए ऐसे कई और उदाहरण समाज के सामने रखने होंगे, तब जाकर सोसायटी में एक नया मांइडसेटअप बनेगा।

असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस) में अधिकतर ट्रांसजेंडरों के नाम नहीं हैं, जबकि ये तमाम ट्रांसजेंडर यहीं के मूल निवासी हैं। जब वह बारह साल की थीं, तभी से उन्हें लिपस्टिक लगाना, नाखून बड़े करना, लड़कियों जैसे कपड़े पहनना, सजना-संवरना अच्छा लगता था लेकिन घर वालों को जब इस बात की भनक लगी तो उनकी खूब पिटाई हुई। इसके बाद वह एक तरह से घर में कैद हो गई थीं। किसी भी रिश्तेदार के आने पर उन्हे मिलने नहीं दिया जाता था। जीवन में चेंज के लिए उन्हें दुखद संघर्ष करना पड़ा। जब वह जज बनीं, ज्वॉइनिंग के पहले दिन अपने घर से टैक्सी लेकर ड्यूटी समय से आधा घंटे पहले ही कोर्ट पहुंच गई थीं। उस पहले ही दिन उन्होंने कोर्ट के दो दर्जन से अधिक विवादित मामले निबटा डाले।

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