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कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं: अनवर जलालपुरी

वो महान शायर, जिन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी में उतारा...

कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं: अनवर जलालपुरी

Friday July 07, 2017 , 4 min Read

दुनिया के तमाम देशों में अपनी शायरी से नामचीन अनवर जलालपुरी की प्रसिद्धि के साथ जुड़ा हुआ है उनका एक और काबिलेगौर हुनर, उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी में उतारने का मुश्किल काम किया है। आइए सुपरिचित होते हैं उनके इस बेमिसाल काम से...

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वो शायर जिसने ख्वाब देखा एक ऐसी दुनिया का जिसमे ज़ुल्म, ज्यादती की कोई जगह नहीं है।

अनवर जलालपुरी उत्तर प्रदेश में आंबेडकर नगर जिले के जलालपुर कस्बे से संबंध रखते हैं। सारी दुनिया उन्हें मुशायरों के संचालन के तौर पर अच्छे से पहचानती है। साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन हमेशा से उनके स्वभाव में रहा। उनकी ही बात पर यदि यकीन किया जाये, तो उन्होंने ग्रैजुएशन का फॉर्म भरते समय अंग्रेजी, उर्दू और अरबी लिटरेचर भर दिया, यानी कि ये बात कहीं उनके भीतर स्वभाव में बैठी हुई थी। उन्होंने इस्लाम को पढ़ने के साथ-साथ हिंदू की धर्म किताबें भी पढ़ीं।

मीर, नजीर (अकबराबादी), मीर अनीस, गालिब, इकबाल उनके पसंदीदा शायर रहे। मौलाना आजाद और गांधी के व्यक्तित्व ने उन्हें काफी प्रभावित किया। 

देश के मशहूर शायर अनवर जलालपुरी ने गीता के बाद उमर खय्याम की 72 रुबाइयों और टैगोर की गीतांजलि का भी उतनी ही आसान जुबान में अनुवाद किया। वह अपनी शायरी के माध्यम से समाज को हमेशा बड़े पैग़ाम देने की कोशिश करते रहते हैं। नयी पीढ़ी के लिए उनकी शायरी किसी टीचर की तरह राह दिखाती है। वह हर वक्त एक ऐसी दुनिया का ख्वाब देखते हैं, जिसमे ज़ुल्म, ज्यादती की कोई जगह नहीं है। वह बताते हैं कि छात्र जीवन से उनके दिमाग में एक बात बैठी हुई थी कि कुरान तो पढ़ी ही है, फिर हिंदू धर्म की किताबें भी क्यों न पढ़ ली जाएं। उसके बाद उन्होंने गीता, रामायण और उपनिषदों का अध्ययन किया। उनके अनुसार "मेरे दिमाग़ में सन 1983 के आसपास उन्हें गीता का अध्ययन करते समय लगा कि इसकी तो तमाम बातें कुरान और हदीसों से मिलती-जुलती हैं। जब मैंने काम शुरू किया तो यह इतना विस्तृत विषय हो गया कि मैंने सोचा कि मैं ये काम कर नहीं पाऊंगा। मैं चूंकि शायर हूं इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं पूरी गीता को शायरी बना दूं, तो यह ज़्यादा अहम काम होगा।"

उसके बाद उन्होंने तय किया इसे जन सामान्य की भाषा में लिखा जाना चाहिए। बात यदि उनके शब्दों में की जाये, तो "मुझे और अधिक सह उस वक्त मिली, जब मोरारी बापू ने भी चाहा कि मुझे ऐसा जरूर करना चाहिए। इसके बाद गीता के अन्य उर्दू अनुवाद की किताबें मैंने संकलित कीं। उनमें गीता पर रजनीश के शब्दों ने मुझे प्रभावित किया। इसके बाद गीता का उर्दू अनुवाद कुछ इस तरह क्रमशः आगे बढ़ता गया। पहले अन्य टीकाओं का अध्ययन करता, फिर उनके सारांश मिसरे और शेर में उतारता गया। गीता में तहदारी बहुत है। उसका एक श्लोक, अर्थ और व्याख्या पढ़िए, और कुछ दिन बाद फिर पढ़िए तो उनके जुदा-जुदा मायने निकलने लगते हैं। गीता में कृष्ण जिस शैली में बात करते हैं, वह मुझे बहुत पसंद आई। यही कुरान का स्टाइल है।"

खुदा इंसानों को मुखातिब होते हुए कहता है, ये दुनिया, ये पहाड़, ये जमीन, ये आसमान, ये चांद-सूरज, अगर ये मेरा जलवा नहीं, ये मेरी निशानियां नहीं तो किसकी हैं? गीता का कर्मयोग उनकी शायरी में कुछ इस तरह पेश किया गया है-

नहीं तेरा जग में कोई कारोबार।

अमल के ही ऊपर तेरा अख्तियार।

अमल जिसमें फल की भी ख़्वाहिश न हो।

अमल जिसकी कोई नुमाइश न हो।

अमल छोड़ देने की ज़िद भी न कर।

तू इस रास्ते से कभी मत गुज़र।

धनंजय तू रिश्तों से मुंह मोड़ ले।

है जो भी ताल्लुक उसे तोड़ ले।

फ़रायज़ और आमाल में रब्त रख।

सदा सब्र कर और सदा ज़ब्त रख।

तवाज़ुन का ही नाम तो योग है।

यही तो ख़ुद अपना भी सहयोग है।

अनवर जलालपुरी की कई पुस्तकें भी साया हो चुकी हैं, मसलन, ज़र्बे ला इलाह, जमाले मोहम्मद, खारे पानियों का सिलसिला, खुशबू की रिश्तेदारी, जागती आँखें, रोशनाई के सफीर आदि। वह खुद को मीरो ग़ालिब और कबीरो तुलसी का असली वारिस मानते हुए दलील देते हैं-

कबीरो तुलसी ओ रसखान मेरे अपने हैं।

विरासते ज़फरो मीर जो है मेरी है।

दरो दीवार पे सब्जे की हुकूमत है यहाँ,

होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है।

मैंने हर अहेद की लफ्जों से बनायीं तस्वीर।

कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं।