कभी घर-घर जाकर बेचते थे सामान, फ़्रेश मीट के बिज़नेस से बने करोड़ों के मालिक
दीपांशु गुरुग्राम स्थित स्टार्टअप जैपफ्रेश के को-फ़ाउंडर हैं। कंपनी स्थानीय तौर पर मछली पालन करने वालों और पॉल्ट्री आदि चलाने वालों से सीधे ताज़ा मीट ख़रीदती है और इसके बाद इस मीट को साफ़-सुथरे और व्यवस्थित प्लान्टों में प्रॉसेस किया जाता है।
हाल में ज़ैपफ़्रैश दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद, गुरुग्राम, फ़रीदाबाद और नोएडा में डिलिवरी की सुविधा मुहैया करा रहा है। कंपनी का दावा है कि हर साल उनके रेवेन्यू में 4 गुना तक इज़ाफ़ा हो रहा है।
आज हम दीपांशु मनचंदा की कहानी आपसे साझा करने जा रहे हैं, जिन्होंने बतौर सेल्समैन अपने करियर की शुरुआत की थी। वह कुरकुरे कंपनी के लिए काम किया करते थे। आज की तारीख़ में दीपांशु ज़ैपफ़्रैश कंपनी के सीईओ हैं, जो रोज़ाना मीट और सीफ़ूड के 1,000 ऑर्डर्स पूरे करता है। वे लोग जिन्हें नॉन-वेज खाने का शौक़ होता है, उनमें से भी अधिकतर लोगों को लोकल मार्केट में जाकर मीट या मछली ख़रीदना नहीं पसंद होता। वहीं दूसरी तरफ़ लोग फ़्रोज़ेन मीट से भी किनारा करते हैं क्योंकि उन्हें ताज़े मीट जैसा ज़ायका नहीं मिलता। साथ ही, उन्हें प्रेज़रवेटिव्स का भी डर होता है।
इन सभी समस्याओं का हल निकालने के लिए दीपांशु मनचंदा ने ज़ैपफ़्रैश की शुरुआत की। दीपांशु गुरुग्राम आधारित इस स्टार्टअप के को-फ़ाउंडर हैं। कंपनी स्थानीय तौर पर मछली पालन करने वालों और पॉल्ट्री आदि चलाने वालों से सीधे ताज़ा मीट ख़रीदती है और इसके बाद इस मीट को साफ़-सुथरे और व्यवस्थित प्लान्टों में प्रॉसेस किया जाता है। ग्राहकों द्वारा ऑर्डर मिलने पर इन्हें ख़ास आकार में काटकर डिलिवर किया जाता है। हाल में ज़ैपफ़्रैश दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद, गुरुग्राम, फ़रीदाबाद और नोएडा में डिलिवरी की सुविधा मुहैया करा रहा है। कंपनी का दावा है कि हर साल उनके रेवेन्यू में 4 गुना तक इज़ाफ़ा हो रहा है। कंपनी के फ़ाउंडर्स ने जानकारी दी कि रोज़ाना उनके पास 1 हज़ार तक ऑर्डर्स आते हैं।
33 वर्षीय दीपांशु मनचंदा कंपनी के को-फ़ाउंडर और सीईओ हैं। एमबीए के दिनों में उन्होंने फ़्रिटो-ले कंपनी के सेल्स डिपार्टमेंट में इंटर्नशिप की है। वह कॉर्पोरेट दफ़्तरों में जाकर कुरकुरे के पैकेट बांटा करते थे। दीपांशु कहते हैं कि वह हमेशा से ही एफ़एमसीजी सेक्टर में काम करना चाहते थे। दीपांशु ने बताया कि इंटर्नशिप के दौरान उन्हें जो काम मिला था, वह उन्होंने पूरी ईमानदारी से किया और टॉप परफ़ॉर्मर्स में भी शामिल रहे, लेकिन इसके बाद भी उन्हें नौकरी का ऑफ़र नहीं दिया गया।
इसके बाद वह अमेरिकन ऐक्सप्रेस से जुड़े और क्रेडिट कार्ड सेलिंग का काम करने लगे। अमेरिकन ऐक्सप्रेस के बाद दीपांशु ने मोबिक्विक में स्ट्रैटजिक लीड के तौर पर काम किया।
विभिन्न कंपनियों के साथ अलग-अलग प्रोफ़ाइल पर काम करने के बाद भी दीपांशु का रुझान एफ़एमसीजी सेक्टर से नहीं हटा और इसलिए उन्होंने 2013 में अपनी कंपनी शुरू की। उन्होंने 'चॉको लीफ़' नाम से अपना पहला फ़ूड वेंचर शुरू किया। इस स्टार्टअप की शुरुआत दिल्ली से हुई और यह ऑनलाइन बेकरी थी। जल्द ही दीपांशु को लगा कि बेकरी का मार्केट काफ़ी फैला हुआ है और उन्हें दूसरे वेंचर के बारे में सोचना चाहिए। रिसर्च और डिवेलपमेंट पर 8 महीने खर्च करने के बाद, दीपांशु ने 27 वर्षीय अपनी साथी श्रुति गोचवाल के साथ मिलकर 2015 में ज़ैपफ़्रेश लॉन्च किया। श्रुति, मोबिक्विक में दीपांशु के साथ काम करती थीं। हाल में, ज़ैपफ़्रेश 150 लोगों की टीम के साथ काम कर रहा है।
दीपांशु और श्रुति ने एफ़एमसीजी और ख़ासतौर पर पैकेज़्ड मीट के मार्केट में उतरने के बारे में सोचा, क्योंकि यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से अनऑर्गनाइज़्ड तरीक़े से चल रहा था। दीपांशु दावा करते हैं कि ज़ैपफ़्रेश भारत का पहला तकनीक आधारित फ़्रेश मीट ब्रैंड है। दीपांशु की कंपनी के पास एफ़एसएसएआई (FSSAI)और आईएसओ (ISO) द्वारा प्रमाणित है और हरियाणा के स्थानीय फ़ॉर्म्स से ताज़े मीट की सप्लाई लेती है। इसके अलावा मछली और सीफ़ूड गुज़रात और आंध्र प्रदेश से मंगाया जाता है।
जैपफ़्रेश का कहना है कि जो मांस वह बेच रहे हैं, उसमें किसी तरह के ऐंटीबायोटिक्स और फ़ॉर्मलिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। चिकन, मटन और सीफ़ूड के साथ-साथ स्टार्टअप कबाब और सॉस आदि की डिलिवरी भी करता है। ग्राहक वेबसाइट और ऐप के माध्यम से अपने ऑर्डर बुक करा सकते हैं। कंपनी की डिलिवरी सर्विस भी तेज़ है और ग्राहकों का ऑर्डर बुकिंग के दिन या कुछ घंटों के भीतर ही डिलिवर कर दिया जाता है। सप्लाई चेन पर नज़र रखने और ऑर्डर ट्रेस करने के लिए ज़ैपफ़्रैश ने अपनी इन-हाउस तकनीक विकसित की है। कंपनी डिमांड का पहले ही पता लगाती है और उस हिसाब से ही फ़ॉर्म्स से सप्लाई लेती है।
30 लाख की बूटस्ट्रैप्ड फ़ंडिंग की मदद से ज़ैपफ़्रेश की शुरुआत की गई थी। इस फ़ंडिंग में सेविंग्स और लोन दोनों ही शामिल थे। इसके बाद कंपनी ने एसआईडीबीआई और डाबर इंडिया के वाइस-चेयरमैन अमित बर्मन की मदद से 20 करोड़ रुपए का फ़ंड जुटाया। अमित बर्मन का मानना है कि ओम्नीवोर्स या सर्वाहारी आबादी के बढ़ने से ज़ैपफ़्रेश का कस्टमर बेस मज़बूत हो रहा है। ज़ैपफ़्रेश बीटूसी और बीटूबी दोनों ही रेवेन्यू मॉडल्स पर काम करती है और बिग बास्केट के माध्यम से भी अपने उत्पाद बेचती है।
कंपनी कोल्ड चेन कंपनी कोल्ड एक्स के साथ मिलकर भी काम कर रही है। दीपांशु कहते हैं कि उनकी कंपनी द्वारा निर्धारित मीट की क़ीमतें उतनी ही हैं, जितना स्थानीय दुकानदार चार्ज करते हैं। दीपांशु ने बताया कि बाज़ार के हालात के हिसाब से मीट के दामों में बदलाव होता रहता है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) द्वारा 2014 में किए गए सर्वे के मुताबिक़, भारत में 15 साल से अधिक उम्र वाली आबादी में से 71 प्रतिशत मांसाहारी हैं और हर साल भारत में 30 बिलियन डॉलर की लागत के मीट की खपत होती है। हाल में कंपनी मूलरूप से दिल्ली-एनसीआर में ही अपने उत्पाद और सुविधाएं पहुंचा रही है, लेकिन कंपनी की योजना है कि अगले साल तक अन्य मेट्रो शहरों में भी ऑपरेशन्स शुरू किए जाएं।
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